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बाबू मोशाय, ये जिंदगी अब दुनिया के नाम

'बाबू मोशाय', मुस्कुरा रहे थे, दूसरी ओर टाटा मेमोरियल हॉस्पिटल, मुंबई में इन्हें लेकर बहस चल रही थी।

By JagranEdited By: Published: Mon, 25 Jun 2018 10:19 AM (IST)Updated: Mon, 25 Jun 2018 10:19 AM (IST)
बाबू मोशाय, ये जिंदगी अब दुनिया के नाम
बाबू मोशाय, ये जिंदगी अब दुनिया के नाम

आगरा(अजय दुबे): 'बाबू मोशाय', मुस्कुरा रहे थे, दूसरी ओर टाटा मेमोरियल हॉस्पिटल, मुंबई के कैंसर विशेषज्ञों की टीम उनकी रिपोर्ट पर बहस कर रही थी। कुछ देर सन्नाटा, डॉक्टरों के चेहरे पढ़ 'बाबू मोशाय' बोले कि 'ये जिंदगी अब दुनिया के नाम है'। मैं एक मिनट जिंदा रहूं या कुछ महीने, ये शरीर आपका है। यह सुन डॉक्टरों ने पीठ थपथपाने लगे। इलाज के तीन महीने बाद डॉक्टर भी हैरान हैं, ट्यूमर का आकार कम होता जा रहा है।

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आनंद मूवी के बाबू मोशाय की तरह रीयल लाइफ में निजी कंपनी में कार्यरत ट्रांस यमुना कॉलोनी निवासी 55 वर्षीय प्रेम चंद गुप्ता हैं। बीती जनवरी में सिर में ट्यूमर डायग्नोज हुआ, फोर्टिस हॉस्पिटल, दिल्ली में डॉ. राना पाटिल ने ऑपरेशन किया, जिसमें कैंसर डिटेक्ट होने के बाद फरवरी में वे टाटा मेमोरियल चले गए। वहां फोर्थ स्टेज का फेफड़ों का कैंसर डायग्नोज हुआ, जो दिमाग तक पहुंच चुका था। यहां डॉ. प्रभाष ने उन्हें एक टेबलेट (गेफिटिनिव ओरल कीमोथैरेपी) दी, इस स्टेज में यही टेबलेट तीन से चार माह तक काम करती है। हॉस्पिटल से आने के बाद उनके मित्र डॉ. डीपी शर्मा ने उन्हें हौसला दिया। अगले दिन खुशमिजाज प्रेम चंद गुप्त दोबारा डॉक्टर के पास पहुंचे। मैंने उनसे कहा कि यह जिंदगी आपके लिए है। 1985 में एमए (भूगोल ) से आगरा विवि टॉपर प्रेम चंद ने कहा कि आप मेरे कैंसर पर रिसर्च करें, शायद फोर्थ स्टेज के फेफड़ों के कैंसर का इलाज मिल जाए। डॉक्टरों ने पीठ थपथपाई और बाबू मोशाय के इलाज में डॉक्टरों की टीम जुट गई। ट्यूमर का साइज हुआ कम

उन्नीस मार्च से डॉक्टरों ने प्रेम चंद्र गुप्ता के कैंसर पर इलाज शुरू किया, उनकी सैंपल विदेश में भेजे और निश्शुल्क जांच कराईं। रेडियोथैरेपी व कीमोथैरेपी देना शुरू किया। इलाज के करीब तीन महीने बाद सिर में दो ट्यूमर थे, इसमें से सिर का एक ट्यूमर 95 फीसद खत्म हो चुका है, दूसरे का आकार स्थिर है। फेफड़े के ट्यूमर का साइज आधा हो गया है।

कैंसर का मतलब मौत नहीं है, यह लड़ाई है जिंदगी की। वही लड़ाई लड़ रहा हूं, मैं जिंदा रहूं या ना रहूं लेकिन कैंसर को मात मिलनी चाहिए।

प्रेम चंद्र गुप्ता, कैंसर मरीज फोर्थ स्टेज में फेफड़ों के कैंसर में जिंदगी की उल्टी गिनती शुरू हो जाती है। मगर, यह केस कुछ अलग है, तीन महीने में ट्यूमर का साइज कम हो गया है।

डॉ. डीपी शर्मा, फिजीशियन


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