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एयरपोर्ट पर बने एयर कार्गो हब

जागरण संवाददाता, आगरा: ताजनगरी में सिविल एन्क्लेव के निर्माण को जनहित याचिका दायर करने वाली सिविल सो

By JagranEdited By: Published: Sat, 26 May 2018 08:05 PM (IST)Updated: Sat, 26 May 2018 08:05 PM (IST)
एयरपोर्ट पर बने एयर कार्गो हब
एयरपोर्ट पर बने एयर कार्गो हब

जागरण संवाददाता, आगरा: ताजनगरी में सिविल एन्क्लेव के निर्माण को जनहित याचिका दायर करने वाली सिविल सोसायटी ऑफ आगरा ने अब खेरिया एयरपोर्ट पर एयर कार्गो का मुद्दा उठाया है। इलाहाबाद हाईकोर्ट में विचाराधीन जनहित याचिका में पूरक हलफनामा दाखिल कर एयर कार्गो हब बनाने की मांग की है।

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शनिवार को हरियाली वाटिका, घटिया में हुई सिविल सोसायटी ऑफ आगरा की प्रेसवार्ता में डॉ. संजय चतुर्वेदी ने बताया कि खेरिया एयरपोर्ट को कार्गो एक्सपोर्ट और इंपोर्ट करने की अनुमति 21 नवंबर, 1994 से है। आगरा व कानपुर एयरपोर्ट को रीजनल कनेक्टिविटी स्कीम में पहले चरण में विकसित किया जाना था। सरकार ने इन्हें ठंडे बस्ते में डाल दिया है, जिसका हम विरोध करते हैं। एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ इंडिया ने अभी तक कार्गो एप्रूवल का नया जीएसटी नंबर नहीं लिया है।

सोसायटी के महासचिव अनिल शर्मा ने बताया कि उन्होंने जनहित याचिका में पूरक हलफनामा लगाया है। इसमें नए सिविल एन्क्लेव के लिए खरीदी गई जमीन जरूरत से कम होने की बात कही है। जमीन की कमी से एयर कार्गो की सुविधा संभव नहीं हो सकेगी, जबकि यह निर्यातकों व आयातकों के लिए आवश्यक है। उन्होंने शहर के कारोबारियों और माननीयों से सरकार पर चार हेक्टेअर जमीन खरीदने को दवाब डालने की अपील की। प्रेसवार्ता में सोसायटी के अध्यक्ष पार्षद शिरोमणि सिंह, राजीव सक्सेना मौजूद रहे।

हलफनामा में उठाए यह मुद्दे

सिविल एन्क्लेव की योजना को अस्तित्व में आने से पूर्व ही निरंतर चोट पहुंचाई जा रही है। चिह्नित जमीन में से चार हेक्टेअर कम जमीन खरीदी गई।

-मेमोरेंडम ऑफ अंडरस्टैंडिंग को अधिकारियों के स्तर पर बदला नहीं जा सकता है। कम जमीन लेने से पूर्व में घोषित अनेक सुविधाएं जमीन कम उपलब्ध होने से संभव नहीं होंगी।

-जमीन कम खरीदने से उन लोगों के हित पूरे हो रहे हैं, जो आगरा में जरूरत के अनुसार इंटरनेशनल एयरपोर्ट नहीं बनने देना चाहते हैं।

-आगरा के पर्यटन व निर्यात उद्योग को चोट पहुंचाना इसका मकसद है।

-आगरा में सरकार चिह्नित जमीन खरीदने में अक्षम है और इसे सही साबित करने को पैसे बचाने का प्रचार किया जा रहा है। जबकि वाराणसी, बरेली, लखनऊ, इलाहाबाद में जमीन खरीद को 700 करोड़ रुपये अतिरिक्त खर्च किए जा रहे हैं।


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