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गांव-गांव बिखरी ब्रज की लोक संपदा अब नहीं बची

आगरा कॉलेज मैदान में ब्रज साहित्य संस्कृति और लोक संपदा पर हुई गोष्ठी पदमश्री मोहन स्वरूप भाटिया ने कहा टीवी फिल्मों के कारण खत्म हो रहे लोकगीत

By JagranEdited By: Published: Sun, 20 Oct 2019 06:00 AM (IST)Updated: Mon, 21 Oct 2019 06:08 AM (IST)
गांव-गांव बिखरी ब्रज की लोक संपदा अब नहीं बची
गांव-गांव बिखरी ब्रज की लोक संपदा अब नहीं बची

आगरा,जागरण संवाददाता। टीवी, फिल्मों के कारण हमारे सभी लोक गीत समाप्त होते जा रहे हैं। कभी गांव में बिखरी ब्रज की लोक संपदा अब नहीं बची है। ब्रज की संस्कृति और लोक संपदा को बचाए रखने के नाम पर कई सरकारी योजनाएं बनीं। करोड़ों रुपये आए, लेकिन कहां खर्च हुए यह किसी को नहीं पता।

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आगरा कॉलेज मैदान में चल रहे आगरा साहित्य उत्सव और राष्ट्रीय पुस्तक मेले में शनिवार को पदमश्री मोहन स्वरूप भाटिया ने यह बात कही। वह 'ब्रज साहित्य संस्कृति और लोक संपदा' पर हुई गोष्ठी में विचार व्यक्त कर रहे थे। उन्होंने कहा कि ब्रज के लोक गीतों और संस्कृति में बहुत संपदा छुपी हुई है। गीतों का जो संकलन मैंने किया, वह अब गांव में भी नहीं गाए जाते। ब्रज के लोक गीतों में पेड़-पौधे, पर्यावरण, पारिवारिक संबंध, जल संरक्षण, धर्म जैसे हर विषय समाहित थे। मोहन स्वरूप भाटिया के गीतों को डॉ. सीमा मोरवाल ने स्वर दिए तो श्रोताओं ने जमकर तालियां बजाई। उठो-उठो री सुहागिन नार, बुहारी देलो अंगना.., सुनो बराती वेदन में एक अचरज पायो है.. जैसे गीत गाए। महाराष्ट्र के जलगांव से आई प्रियंका सोनी व राज बहादुर राज ने ब्रज साहित्य व परंपराओं के महत्व पर प्रकाश डाला। संचालन दीपक सरीन ने और धन्यवाद ज्ञापन अमी आधार निडर ने किया।

1827 में हुई आगरा की पहली भगत

मथुरा के साहित्यकार खेमचंद यदुवंशी ने भगत, ख्याल, लावणी, रामलीला और मंडल नृत्य पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि आगरा की पहली भगत मोती कटरा में वर्ष 1827 में हुई थी। यह मथुरा में विलुप्त होने के बाद पंजाब प्रांत में घूमते हुए वापस आई और फिर मथुरा पहुंची। 16वीं सदी में मथुरा में भगत विधा बहुत समृद्ध थी। क्रांतिकारी आंदोलन को कम करने के लिए अंग्रेजों ने भगत सब्जपरी के13 मंचन कराए गए थे। उस समय एक मंचन की कीमत 10 हजार रुपये दी गई थी। 14वें मंचन से पूर्व होलीगेट, मथुरा में सब्जपरी के सूत्रधार भगवती प्रसाद को क्रांतिकारियों ने गोलियों से भून दिया था। लघु कथाओं की हुई प्रस्तुति

साहित्य साधिका समिति 'लघु कथा और पाठक' पर संगोष्ठी आयोजित की। कार्यक्रम का शुभारंभ मीरा परिहार ने सरस्वती वंदना से किया। मुख्य अतिथि डॉ. प्रीति आनंद ने लघु कथाओं के महत्व पर प्रकाश डाला। रमा वर्मा श्याम ने स्वागत गीत प्रस्तुत किए। लघु कथा के सैद्धांतिक सत्र पर डॉ. नीलम भटनागर, डॉ. सुषमा सिंह व यशोधरा यादव ने प्रकाश डाला। सांस्कृतिक गिरावट को रोकने का प्रयास करती लघु कथाएं प्रस्तुत की गई। डॉ. रेखा कक्कड़, सविता मिश्रा, नूतन अग्रवाल, मीना गुप्ता, पूनम जाकिर, अलका अग्रवाल, निकिता श्रीवास्तव, डॉ. शशि सिंह, विजया तिवारी, माया अशोक, राजकुमारी चौहान, डॉ. पूनम तिवारी, कल्पना श्रीवास्तव, डॉ. मधु पाराशर, राजश्री ने लघु कथाएं प्रस्तुत कीं। संचालन डॉ. पुनीता पचौरी व डॉ. मनिंदर कौर, धन्यवाद ज्ञापन कमला सैनी ने किया। भारतीय सेना का हिस्सा बनना युवाओं के लिए गौरव की बात

साहित्य उत्सव में शनिवार को सत्र 'शौर्य-भारतीय सेना: क्या आप में है वो दम' हुआ। इसमें युवाओं को भारतीय सेना के शौर्य से परिचित कराते हुए बताया गया कि भारतीय सेना का हिस्सा बनना हर युवा के लिए गौरव की बात है। यह सौभाग्य हर किसी को नहीं मिलता। पुष्पेंद्र सिंह तोमर ने युवाओं को भारतीय सेना का हिस्सा बनने के लिए ध्यान में रखने वाली बातों व ट्रेनिंग से संबंधित जानकारी दी। ब्रिगेडियर मनोज कुमार ने युवाओं को एसएससी व आर्मी की तैयारी के लिए टिप्स दिए। द आउटडोर मिलिट्री स्कूल के कैंडिडेट ने सैनिक ड्रिल की प्रस्तुति दी। संयोजक कर्नल जीएम खान रहे। 40 लाख की पुस्तकें बिकीं

राष्ट्रीय पुस्तक मेले के आयोजक पियूष भार्गव ने बताया कि शनिवार तक करीब 40 लाख रुपये की पुस्तकों की बिक्री हो चुकी है। रविवार तक यह आंकड़ा 50 लाख रुपये तक पहुंचने का अनुमान है। आज होगा समापन

साहित्य उत्सव का समापन रविवार सुबह 11 बजे होगा। एससी आयोग के अध्यक्ष डॉ. रामशंकर कठेरिया और राज्य मंत्री डॉ. जीएस धर्मेश समापन में मौजूद रहेंगे। पुस्तक मेला देर रात तक चलेगा।


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