मुश्किल हो लाख चाहें, चलते रहना ही जिदगी है
बच्चे दे रहे कोरोना से लड़ने की सीख अनुभव कर रहे साझा
आगरा, जागरण संवाददाता। अब तक सिर्फ पक्षियों और जानवरों को ही कैद होते देखा था, लेकिन कभी उनकी पीड़ा का अहसास ही नहीं हुआ। न कभी सोचा था कि ऐसे भी दिन आएंगे, जब खुद मनुष्य ही अपने इस जाल का स्वयं शिकार हो जाएगा।
सारे मुल्कों को नाज था अपने परमाणु पर
कायनात बेबस हो गई एक छोटे से विषाणु पर
जब मार्च में लाकडाउन का ऐलान हुआ, तो बेहद खुशी हुई कि चलो अब कुछ दिन सुकून से कटेंगे और स्कूल नहीं जाना पड़ेगा। पापा-मम्मी और पूरे परिवार के साथ घर पर फुल इंज्वाय करेंगे, लेकिन जब इस समस्या को अपने नजदीक पाया, आसपास में, रिश्तेदारों में, दोस्तों के घर, तो अहसास हुआ कि यह सुकून का नहीं, बल्कि जीने-मरने का प्रश्न है और ऐसे में पढ़ाई के बारे में तो कुछ सोचा भी नहीं था। लेकिन लाकडाउन से इतना जरूर सीखा कि मौत नजदीक हो, तो भी जीने की उम्मीद नहीं टूटनी चाहिए, तभी जीने की जिद्दोजहद जीतती है।
मैं धन्यवाद करता हूं अपने स्कूल के सलाहकार, प्रधानाचार्य व सभी शिक्षकों का जो इस मुश्किल समय में भी रुके नहीं और हमारे लिए पारंपरिक तरीके की शिक्षा को आधुनिक शिक्षा पद्धति में बदल दिया। जब सब मेहनत कर रहे थे, तो स्वयं को बदलने की यहां तक कि जिन को मोबाइल व लैपटाप चलाना नहीं आता था, वह भी हाइटेक एप के जरिए हमें पढ़ाते नजर आए। उनका यह समर्पण और अपने पेशे के प्रति ईमानदारी का भाव देखकर हमारा शीश उन जैसे आदर्श शिक्षकों के साथ सम्मान में झुक गया और हम सारी मस्ती छोड़कर पढ़ाई में लग गए। एक छात्र होने के कारण मैं महसूस कर सकता हूं कि हमारी जिदगी में इन आठ महीनों में कितने बदलाव आए हैं। हो सकता है कि हमने बहुत कुछ खोया हो, लेकिन उम्मीद नहीं खोई और मिलकर संघर्ष करना सीखा, जो सबसे महत्वपूर्ण हैं।
कहते हैं न कि
नन्हीं चींटी जब दाना लेकर चलती है,
चढ़ती दीवारों पर कई बार फिसलती है।
मन का विश्वास रगों में साहस भरता है,
चढ़कर गिरना, गिरकर चढ़ना न अखरता है।।
इन्हीं उम्मीद भरे शब्दों के साथ हम पूरे साहस के साथ इस मुश्किल घड़ी का न सिर्फ सामना कर रहे हैं, बल्कि कोरोना संक्रमण से बचने के लिए शारीरिक दूरी व अन्य नियमों का सख्ती से पालन भी कर रहे हैं। अपने आप को सुरक्षित रखने के लिए हमने शारीरिक दूरी, मास्क का नियम न सिर्फ अपनाया, बल्कि लोगों को भी घर से बाहर निकलने पर इनका अनुपालन करने के लिए प्रेरित किया। साथ ही उन्हें बताया कि अनजान सतहों व चीजों को छूने के बाद नियमित रूप से दिन में कई बार हाथों को सैनिटाइज या साबुन से अच्छी तरह साफ जरूर करें। इसी का नतीजा है कि चाहे छोटा हो या बड़ा, अब यह आदत हमारी जीवन शैली का अहम हिस्सा बन चुकी है और इन सभी नियमों का पालन हमें लंबे समय तक करना है क्योंकि लाकडाउन खत्म हुआ है, कोरोना नहीं।
आशा है कि जिदगी फिर से पहले की तरह चमकेगी। हम स्कूल जाएंगे, दोस्तों से मिलेंगे, पार्कों में रौनक होगी और जीवन दोबारा अपनी ही रफ्तार से चल निकलेगा। नितिज्ञा आसवानी, कक्षा 10, सुमीत राहुल मेमोरियल गोयल सीनियर सैंकेंडरी स्कूल, कमला नगर।