त्योहार पर संभल कर रहें मीठे जहर से, कहीं स्वाद के साथ सेहत न हो जाए खराब
मिठाई खरीदने से पहले ठिठक रहे कदम। खोवा की मिठाइयों में अधिक मिलावट।
आगरा [जेएनएन]: दीपावली की खुशियों को मनाने में मिठाइयों की अहम भूमिका है। पूजन से लेकर एक-दूसरे का मुंह मीठा कराने में इनका प्रयोग किया जाता है। लोग खूब शौक और स्वाद से मिठाइयां खाते भी हैं। लेकिन मिलावट के इस दौर में मिठाइयों ने मीठे जहर का रूप ले लिया है। ङ्क्षसथेटिक खोवा, अखाद्य रंगों आदि के जरिए बनाई जा रही मिठाइयों से तमाम बीमारियां होने की आशंका बढ़ रही है।
दीपावली आते ही मिलावटखोर सक्रिय हो जाते हैं। एक पखवाड़े पहले से ही नकली, मिलावटी मिठाइयों की तैयारी होने लगती है। मांग को देखते हुए सबसे अधिक मिलावट खोवे की मिठाइयों में ही की जाती है। काला जाम, गुलाब जामुन, मिल्क केक, बर्फी, पेड़ा जैसी मिठाई तो दीपावली पर शुद्ध मिलने की बात सोचना भी बेमानी है। खोवे के अलावा अन्य मिठाइयां भी कोई बहुत सुरक्षित नहीं होतीं। जिसके चलते मिठाई खरीदने से पहले हर व्यक्ति के जेहन में एक आशंका भरा सवाल जरूर रहता है। रोडवेज बस स्टैंड या अन्य सवारी वाहन स्टैंड, कचहरी, तहसील आदि के आसपास दुकानों पर तो मिठाइयों में तमाम मिलावटी पदार्थ और अखाद्य रंग मिला दिए जाते हैं।
किस तरह की मिलावट
सबसे अधिक खपत खोवे से बनी मिठाइयों की होती है। इसके लिए माफिया मिलावटी या ङ्क्षसथेटिक खोवा का प्रयोग करते हैं। वहीं बेसन का लड्डू, सोनपपड़ी आदि के लिए उपयोग किए जाने वाले बेसन में खेसारी दाल के आटा तक की मिलावट की जाती है। मिठाइयों को अधिक आकर्षक दिखाने के लिए उनमें मेटेलिक रंगों का इस्तेमाल किया जाता है। छेना से तैयार होने वाली मिठाइयों में ङ्क्षसथेटिक छेना का प्रयोग किया जाता है। वहीं मिठाइयों को बनाने के लिए घी में भी मिलावट आम बात है।
यूं बरतें सावधानी
- रंग-बिरंगी मिठाइयां खरीदने से बचें।
- विश्वसनीय दुकानों से ही मिठाई खरीदें।
- मिठाई खरीदते समय चखकर देख लें।
- सस्ते के चक्कर में न पड़ें, गुणवत्ता देखें।
- संभव हो तो घर में ही मिठाई तैयार करें।