Navratra Special: बागवां की क्यारी में खिल रहीं कुमारियां, दो साल में बदल गए आंकड़े Agra News
02 साल में हजार के मुकाबले 868 से 926 पर पहुंचा लिंगानुपात बदलाव की बयार से हो रहा ‘बेटों वाली सोच के असुर’ का संहार।
आगरा, अजय दुबे। शिक्षा, परीक्षा, प्रतियोगिता में लगातार बढ़त हासिल करने के साथ चेतना, संवेदना और सांत्वना के गुणों से संपन्न बेटियों ने समाज की सोच बदल दी है। लोग अब बेटों के मुकाबले बेटियों को तरजीह दे रहे हैं। इसकी पुष्टि मदर एंड चाइल्ड ट्रैकिंग सिस्टम के जरिए हासिल आंकड़े कर रहे हैं।
बेटी के जन्म से पहले उसे कोख में ही मारने की आसुरी सोच का संहार बदलाव की बयार कर रही है। मदर एंड चाइल्ड ट्रैकिंग सिस्टम के ताजा आंकड़ों के अनुसार 2018-19 में प्रति एक हजार बेटों पर 926 बेटियां हैं। सीएमओ डॉ. मुकेश वत्स का कहना है कि बेटी के जन्म लेने पर लोग खुशी मना रहे हैं, यह आंकड़ों में भी दिखाई देने लगा है। यह बदलाव आगरा के लिए इसलिए भी सुखद है क्योंकि पिछली जनगणना के आंकड़ों में निराशाजनक तस्वीर देखने को मिली थी। 2001 के मुकाबले 2011 की जनगणना में बेटियों की संख्या में कमी देखी गई थी। लेकिन, अब तस्वीर बदल रही है।
80 फीसद मेडल बेटियों को
इंटमीडिएट से लेकर विवि की परीक्षा में बेटियां बेटों को पीछे छोड़ रही हैं। 11 अक्टूबर को होने जा रहे विवि के दीक्षा समारोह में 80 फीसद मेडल बेटियों को मिलेंगे। वहीं, बुजुर्ग मां बाप की सेवा भी बेटियां ही कर रही हैं, बेटे अपने माता पिता को वृद्धाश्रम भेज रहे हैं।
जनगणना के निराशाजनक आंकड़े
2001- 866 बेटियां प्रति एक हजार बेटों पर
2911- 861 बेटियां प्रति एक हजार बेटों पर
दिखाई देने लगा बदलाव
2017- 868 बेटियां प्रति एक हजार बेटे
2018- 19- 926 बेटियां प्रति एक हजार बेटे
(मदर एंड चाइल्ड ट्रैकिंग सिस्टम के स्थानीय आंकड़े)
विशेषज्ञों की राय
अब एक बच्चा बेटी है तो भी परिजन खुश हैं और पहला बच्चा बेटी है तो भी खुशी कम नहीं हो रही है।
डॉ. सरोज सिंह, विभागाध्यक्ष स्त्री रोग विभाग एसएन मेडिकल कॉलेज
शहर के साथ ही गांव देहात के लोग भी बेटी होने पर मिठाई बांट रहे हैं। उनके लिए बेटियां बेटों से कम नहीं हैं।
डॉ. आशा शर्मा, प्रमुख अधीक्षक लेडी लॉयल महिला चिकित्सालय
बेटियां चंद्रयान की टीम का हिस्सा बनने से लेकर हर क्षेत्र में अव्वल हैं। परिवार की अर्निग सदस्य भी हैं। वे अब बोझ नहीं रहीं, दो परिवार को बेहतर तरीके से संभाल रही हैं।
डॉ. अनुपमा शर्मा, स्त्री रोग विशेषज्ञ
पिछले कुछ सालों में मध्यमवर्गीय परिवार का आकार बढ़ा है, यह शिक्षित वर्ग है, यह बेटियों को भार नहीं समझता। अभिभावक अब बेटियों के बजाय बेटों के भविष्य को लेकर चिंतित दिखते हैं।
प्रो. मोहम्मद अरशद, समाजशास्त्र विभाग आंबेडकर विवि