ये कैसी वादा खिलाफी, शहीद बेटे के स्मारक की राशि का पांच साल से इंतजार
दंतेवाड़ा में 6 अप्रैल 2010 को नक्सली हमले में 76 जवानों के साथ शहीद हुए थे आगरा के निर्वेश।
आगरा, अली अब्बास। वादे हैं वादों का क्या, शहीद बेटे का स्मारक बनाने में अपनी जमा पूंजी खर्च करने वाले 64 वर्ष के बुजुर्ग पिता बरबस ही बोल पड़ते हैं। नक्सली हमले में शहीद हुए आगरा के लाल के स्मारक की राशि का प्रशासन ने पांच साल बाद भी भुगतान नहीं किया। कलक्टेट के दर्जनों चक्कर काट चुके बूढ़े मां-बाप भी अब नाउम्मीद हो चुके हैं।
चित्रहाट के नौगंवा निवासी 22 वर्षीय निर्वेश कुमार पुत्र प्रीतम सिंह केंद्रीय अर्ध सैनिक बल में जवान थे। नक्सल प्रभावित दंतेवाड़ा में नक्सलियों के खिलाफ ऑपरेशन ग्रीन हंट के दौरान छह अप्रैल 2010 को वे शहीद हो गए थे। इसे अब तक सबसे बड़ा नक्सली हमला माना जाता है। इसमें कई सौ नक्सलियों ने घेराबंदी करके 76 जवानों को शहीद कर दिया था। निर्वेश के पिता प्रीतम सिंह के अनुसार उस समय केंद्र सरकार ने सभी जवानों का स्मारक बनवाने की घोषणा की थी।
इस संबंध में जिन जिलों के जवान शहीद हुए वहां के स्थानीय प्रशासन को पत्र भेजा गया था। करीब चार साल तक जब शहीद बेटे का स्मारक नहीं बनवाया गया। उन्हें चिंता सताने लगी कि उनके बाद शहीद बेटे का नाम गांव भूल जाएगा। पिता के अनुसार डाक विभाग से सेवानिवृत्त होने के बाद उन्होंने जमा पूंजी से बेटे निर्वेश स्मारक का निर्माण कराया। उसका छह अप्रैल 2014 को आइजी सीआरपीएफ ने लोकार्पण किया।
पिता के अनुसार प्रशासन द्वारा स्मारक में खर्च रकम के भुगतान को सीआरपीएफ के अधिकारियों ने स्थानीय प्रशासन को कई पत्र लिखे। काफी प्रयास के बाद अधिशासी अभियंता ग्रामीण अभियंत्रण विभाग द्वारा स्मारक के निर्माण का एस्टीमेट 3.12 लाख बनाकर प्रशासन को दिया। इसके भुगतान के लिए वह पांच साल से प्रशासनिक अधिकारियों के चक्कर काट रहे हैं। गृह मंत्रलय से लेकर मुख्यमंत्री समेत हर संबंधित विभाग को पत्र लिख चुके हैं। मगर, किसी के कानों पर जूं नहीं रेंगी। पिता का कहना था कि इतने चक्कर काटने के बाद अब वह भी उम्मीद खोने लगे हैं।
पिता हर साल कराते हैं भागवत
शहीद बेटे की पुण्य तिथि पर पिता प्रीतम सिंह और मां शांति देवी हर वर्ष भागवत कराते हैं। इसमें आसपास गांव के लोग बड़ी संख्या में शामिल होते हैं। शहीद के बड़े भाई सुभाष किसान हैं। बहन मिथलेश की शादी हो चुकी है।
नौ नक्सलियों को मारने के बाद शहीद हुए थे निर्वेश
निर्वेश नक्सलियों से बहादुरी से लड़े थे। इसकी कहानी खुद उनके साथी जवानों ने परिजनों को बताई थी। छह अप्रैल 2010 की सुबह साढ़े पांच बजे निर्वेश और उनके साथियों की साढ़े चार घंटे मुठभेड़ चली थी। केंद्रीय अर्ध सैनिकबलों के जवानों को शहीद निर्वेश के शव के पास नौ नक्सलियों की लाश मिलीं थी। वह बंदूक में आखिरी गोली होने तक नक्सलियों से लोहा लेते रहे थे।