स्टीविया की खेती ने घोली जिंदगी में मिठास
ज्योत्यवेंद्र दुबे, आगरा: खेतों में गेहूं-धान की फसल अब गुजरे जमाने की बातें होती जा रही हैं। अब किस
ज्योत्यवेंद्र दुबे, आगरा: खेतों में गेहूं-धान की फसल अब गुजरे जमाने की बातें होती जा रही हैं। अब किसान नई-नई फसलों से बेहतर मुनाफा कमा रहे हैं। ऐसे ही एक किसान ने औषधीय फसलों की खेती कर अपनी सारी समस्याओं का इलाज कर दिया। एक अकेले किसान के लिए कुछ अलग करना कितना मुश्किल है, इसका अंदाजा लगा पाना भी संभव नहीं है। लेकिन अपनी कड़ी मेहनत और जानकारी से उन्होंने ये साबित कर दिया कि जिले की मिट्टी में भी औषधीय फसलें उगाई जा सकती हैं। हम बात कर रहे है मैनपुरी विकास खंड घिरोर के गाव दरवाह निवासी रोहित दीक्षित की। रोहित ने अपने भाई राहुल की मदद से स्टीविया और ऐलोवेरा की खेती की शुरुआत की, जिससे वे आज अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं। दो साल पहले रोहित ने अपनी भूमि पर स्टीविया (मीठी तुलसी) लगाई थी। तब किसी को नहीं पता था कि रोहित की ये पहल एक नई मिसाल बनेगी। एक एकड़ में रोहित ने जयपुर से लाकर इन पौधों को लगाया था। इसकी सिंचाई के लिए रोहित ने अपने खेत में डिप सिंचाई सिस्टम की भी व्यवस्था कराई। आज रोहित स्टीविया की बिक्री कर मुनाफा कमा रहे हैं। रोहित बताते हैं कि उनके भाई राहुल एक प्राइवेट कंपनी में नौकरी करते हैं। उन्हीं ने स्टीविया की खेती के बारे में बताया था। इसके बाद उन्होंने इंटरनेट व अन्य माध्यमों से जानकारी लेकर इसकी शुरुआत की। वे बताते हैं कि स्टीविया की पत्ती की बिक्री होती है। प्रत्येक 60 दिन पर पत्ती तोड़ी जाती है, जिसको सुखाने के बाद बिक्री होती है। इसकी कीमत 80 रुपये से 100 रुपये किलो तक मिल जाती है। वहीं एक एकड़ से पहली साल एक टन और उसके बाद 2.5 टन प्रतिवर्ष उत्पादन होता है। पाच सालों तक ये उत्पादन लगातार चलता रहा है। वे बताते हैं कि अगर किसान कंपनियों से पहले ही स्टीविया की बिक्री का समझौता कर लेते हैं तो अधिक बेहतर होगा। इसके अलावा रोहित ऐलोवेरा की खेती भी कर रहे हैं। जिसमें एक एकड़ में पहले साल 15 टन और अगले चार सालों में 20-25 टन तक उत्पादन होता है। हालाकि इसकी कीमत छह रुपये से लेकर दस रुपये तक मिलती है। मधुमेह रोगियों के लिए चीनी का विकल्प
स्टीविया की पत्तियों को सुखाकर शुगर फ्री टेबलेट बनाने में प्रयोग किया जाता है। जो मधुमेह रोगियों के लिए चीनी का एक विकल्प है। इसके चलते बाजार में भी इसकी बड़ी माग रहती है। रोहित बताते हैं कि कई कंपनिया ऑनलाइन भी इसकी खरीदारी करती है। हा इसकी पत्ती को सुखाने में थोड़ा ध्यान रखना पड़ता है। सुखाते समय इसे सीधे सूरज की रोशनी में नहीं रखा जाता है। क्योंकि इससे पत्तियों का रंग काला पड़ जाता है। इसलिए जाली में इन पत्तियों को सुखाया जाता है। दो लाख की होती है कमाई
जब रोहित ने स्टीविया और ऐलोवेरा की खेती शुरू की तो उन्हें नहीं पता था कि इससे उन्हें कितना मुनाफा होगा। लेकिन पहले साल उन्हें एक एकड़ स्टीविया से 90 हजार और एलोवेरा से 80 हजार रुपये का मुनाफा हुआ। रोहित बताते हैं कि पहले इस खेती में बमुश्किल 50 हजार रुपये की ही फसल हो पाती थी। वहीं स्टीविया और ऐलोवेरा का एक और फायदा है कि इसका उत्पादन अगले वर्ष से तकरीबन दोगुने से भी अधिक हो जाएगा। जो सिलसिला पाच साल तक निरंतर चलता रहेगा। फिर आपको इसमें दोबारा बुवाई, जुताई या अन्य किसी खर्च की जरूरत नहीं है। जिससे भी कहीं न कहीं फायदा होता है। खेती के साथ रोहित अपनी घी व मसालों की एजेंसी भी देख रहे हैं।