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'फूलों' ने बेदखल किए बगिया से 'बागबां', ये खबर पढ़ कर भीग जाएंगी आपकी आंखें

अपनों की बेरुखी से वृद्धाश्रम पहुंच गए 22 बुजुर्ग। आंखों में पल रहे सपने अपनों के खिलाफ सिल ली जुबां।

By Tanu GuptaEdited By: Published: Fri, 07 Jun 2019 05:07 PM (IST)Updated: Fri, 07 Jun 2019 05:07 PM (IST)
'फूलों' ने बेदखल किए बगिया से 'बागबां', ये खबर पढ़ कर भीग जाएंगी आपकी आंखें
'फूलों' ने बेदखल किए बगिया से 'बागबां', ये खबर पढ़ कर भीग जाएंगी आपकी आंखें

आगरा, मनोज कुमार। अंगुलियां थाम के खुद चलना सिखाया था जिसे/ राह में छोड़ गया राह पे लाया था जिसे/ उसने पोछे ही नहीं अश्क मेरी आंखों से/ मैंने खुद रो के बहुत देर हंसाया था जिसे। ... युवा होते भारत का एक सच यह भी है कि बूढ़े दरख्त मुरझा रहे हैं। शायद इन्हीं परिस्थितियों पर कवि कुंवर बेचैन ने ये पंक्तियां लिखीं। यह तथ्य मस्तिष्क को झंझोडऩे वाला है कि अकेले रामलाल वृद्धाश्रम में बीते 15 दिन में 22 बुजुर्गों को उनके अपनों ने ही यहां भेज दिया। फिर यह अपने लब सिले हैं। जिस बगीचे के फूलों को अपने खून से सींचकर उसे मुरझाने से बचाया, उन फूलों ने ही बुजुर्ग हो रहे बागबां को बगीचे से बेदखल कर दिया, पर ये उन अपनों के खिलाफ कुछ भी नहीं बोलते। बुढ़ापे में अपनों के लाठी बनने का सपना आंखों में ही दम तोड़ गया है। मदर्स डे और फादर्स डे पर माता-पिता को अपना आदर्श बताने वाले बच्चे उन्हें खुद छत न दे पाए। जो बुजुर्ग बच्चों को एसी में रखते थे, आज वह गर्मी में तप रहे हैं।

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ये स्याह हकीकत है, उस समाज की जो सभ्य होने का दंभ भरता है। बेबसी और अपनों की बेरुखी से टूट चुके बुजुर्गों का नया ठिकाना रामलाल वृद्धाश्रम है। ये हकीकत और डराती है कि यहां आने वाले बुजुर्गों में 60 फीसद से अधिक ऐसे परिवार से ताल्लुक रखते हैं, जो ताजनगरी में संपन्न लोगों में शुमार हैं। आंकड़े सभ्य समाज को आईना दिखाने के लिए काफी हैं। जो 22 लोग बीते पखवारे यहां आये उनमें दस ऐसे हैं, जिनके बच्चों को समझाकर उन्हें वापस घर भेज दिया गया, लेकिन 12 अब भी अपनी बगिया के फूलों के आने की राह देख रहे हैं। हलवाई की बगीची के अखिल तिवारी हों या फिर कमला नगर के महेश चंद्र। कान्हा की नगरी से आभा बंसल हों या आवास विकास कॉलोनी के भगवान स्वरूप गुप्ता। अपनों का दिया दर्द, आंखों में आंसू बनकर कैद हो गया, लेकिन जिन बच्चों को जिंदगी का सबक सिखाया, उनके खिलाफ जुबां एक शब्द भी बोलने को तैयार नहीं। बुजुर्गों के दिल में दर्द का अथाह सागर है और आंखों में अश्कों का समंदर। लाख कोशिशों के बाद भी किसी ने जुबां नहीं खोली। उनकी चुप्पी बताती है कि बागबां अपनी बगियां के फूलों को न तोड़ सकता है और न ही मुरझाने दे सकता है।  

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