Rubber Dam in Agra: आगरा को है इंतजार, रबर डैम की कब बाधाएं होंगी पार
Rubber Dam in Agra आगरा में दशकों पुरानी है आस कैसे बुझेगी प्यास। शहर में बूंद-बूंद पानी को तरस रहे लोग यमुनपार में नहीं है उपलब्धता। गिरता जा रहा है भूगर्भ जलस्तर सिंचाई के लिए है बड़ा संकट।
आगरा, अंबुज उपाध्याय। बूंद-बूंद पानी को शहर से लेकर ग्रामीण क्षेत्र तरस रहा है। शहर की दर्जनों कालोनियों में लोग आए दिन पानी नहीं आने को लेकर आक्रोश जताते हैं। यमुना पार क्षेत्र में टैंकर से कालोनियों में पानी सप्लाई होता है, तो कई बार पानी को लेकर गंभीर विवाद भी हुए हैं। ग्रामीण क्षेत्र में सिंचाई से लेकर पीने के पानी दोनों का संकट है, लेकिन इसके निदान के लिए काेई ठोस कदम नहीं उठाया जा रहा है। भूगर्भ जलस्तर गिरता जा रहा है और जलसंचय को बनाए जाने वाले रबर डैम की प्रक्रिया और जटिल होती जा रही है। अब छह की जगह आठ एनओसी (अनापत्ति प्रमाण पत्र) लेनी है।
यमुना पर बैराज निर्माण के लिए तीन दशक पहले प्रक्रिया शुरू हुई। अधिकारियों के उदासीन रवैये और राजनीतिक दबाव के कारण ये स्वरूप नहीं ले सका। स्थानीय अधिकारी माडल देखने दूसरे देश गए और बैराज को बदल वर्ष 2016 में प्रस्तावित स्थल पर ही रबर डैम की योजना तैयार की गई थी। वर्ष 2017 में सूबे के मुखिया योगी आदित्यनाथ बने जिसके बाद ताज बैराज की संस्तुति दी गई। मुख्यमंत्री स्वयं इसका शिलान्यास करके गए थे, लेकिन अभी तक प्रस्तावित छह एनओसी में से तीन ही मिल पाई है। वहीं अब दो एनओसी और लेनी होंगे, जिससे निर्माण को लेकर आशंका गहराने लगी है। बारिश के दिनों में गोकुल बैराज से जितना पानी छोड़ा जाता है, वह बह कर आगे निकल जाता है। ऐसे में कैलाश मंदिर से नगला पैमा तक यमुना सूखी दिखाई देती है। यमुना में पानी कम और सिल्ट ज्यादा नजर आती है। रबर डैम बनने से यमुना में 3.5 लाख क्यूसेक पानी रोका जा सकेगा, जिससे आगरा का भूगर्भ जलस्तर बढ़ेगा। इससे पर्यटकों को ताजमहल के पीछे मोहक दृश्य दिखाई देगा तो जलसंकट से जूझती फसलों, शहर को भरपूर पानी की उपलब्धता रहेगी।
ये लेनी होगी एनओसी
ताज बैराज खंड ने केंद्रीय जल आयोग, ताज ट्रिपेजियम जोन (टीटीजेड), अंतर्देशीय जलमार्ग प्राधिकरण, भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण, नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) और केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय में एनओसी के लिए आवेदन किया था। इनमें से केंद्रीय जल आयोग, अंतर्देशीय जलमार्ग प्राधिकरण और एएसआई ने एनओसी दे दी है। केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय, एनजीटी और टीटीजेड से स्वीकृति मिलना अभी बाकी है। वहीं अब नेशनल एंवायरमेंटल इंजीनियरिंग रिसर्च इंस्टीट्यूट (नीरी) और सेंट्रल इम्पावर्ड कमेटी (सीईसी) की एनओसी भी लेनी होगी।
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ये है आंकड़ा
- 2.83 लाख हेक्टेयर कृषि योग्य भूमि है।
- 72,000 हेक्टेयर में आलू उत्पादन होता है।
- 1,32,000 हेक्टेयर में गेहूं उत्पादन होता है।
- 62,000 हेक्टेयर में सरसों उत्पादन होता है।
- 1,15,000 हेक्टेयर में बाजरा उत्पादन होता है।
- 5,200 हेक्टेयर में धान उत्पादन होता है।