Net Addiction: कहीं इस लत की गिरफ्त में आपका लाड़ला भी तो नहीं...? ध्यान से पढ़ें दुष्प्रभावों को
Net Addiction कोरोना काल ने बच्चों को बनाया नेट एडिक्शन का शिकार। कोरोना काल में छह से 18 साल की आयु के बच्चों में बढी इंटरनेट की लत। मानसिक स्वास्थ्य संस्थान एसएन मेडिकल कालेज और मनोचिकित्सकों के पास लेकर पहुंच रहे स्वजन।
आगरा, अली अब्बास। केस एक: कमला नगर में रहने वाले एक बड़ी कंपनी में अधिकारी ने कोराेना काल में वर्क फ्राम होम के चलते घर में नेट कनेक्शन ले लिया। इससे नवीं में पढ़ने वाले पुत्र को भी आनलाइन क्लास में आसानी हो गई। आनलाइन क्लास के चलते पिता ने बेटे ने लैपटाप लेकर दे दिया। बेटे ने लैपटाप पर पढाई के साथ ही दर्जनों वेब सीरीज और क्राइम से संबंधित सीरियल देख डाले। उसके व्यवहार में उग्रता आ गई। उसने अपने सगे संबंधियों को अर्नगल मैसेज भेजना शुरू कर दिया। विरोध करने पर बात-बात पर मारपीट करने उनके घरों पर जाना शुरू कर दिया। बेटे के व्यवहार में आए बदलाव से परेशान परिवार को उसकी काउंसिलिंग मनोचिकित्सक से करानी पड़ रही है।
केस दो: हरीपर्वत इलाके का रहने वाला 18 साल का युवक बीएससी का छात्र है। वह दिन में परिवार से अलग-अलग और गुमसुम रहता था। मगर, रात में तीन-तीन बजे तक वह इंटरनेट पर सक्रिय रहता। माता-पिता ने इसे लेकर टोका तो वह उनसे झगड़ा शुरू हो गया। उनकी बातों को मानना छोड़ दिया। पिता ने बेटे की आदत को छुड़ाने के लिए नेट कनेक्शन बंद करा दिया। इससे बेटा बेचैन हो गया। इसे लेकर पिता से झगड़ा हो गया। बेटे की हालत देख पिता को उसे मानसिक स्वास्थ्य संस्थान में काउंसिलिंग के लिए लेकर आना पड़ा।
केस तीन: सदर इलाके का रहने वाला किशोर आठवीं में पढ़ता है। कोरोना काल के चलते पिता ने उसे नया लैपटाप खरीदकर दे दिया। वह आनलाइन क्लास के साथ ही अन्य इंटरनेट साइट्स भी खोल लेता। क्लास की जगह इन साइट्स पर अधिक सक्रिय रहता। परीक्ष्रा परिणाम आने पर उसकी पढाई का स्तर एकदम से नीचे आया देख पिता को शक हुआ। उन्होंने बेटे पर नजर रखना शुरू किया तो क्लास के साथ अन्य साइट्स पर भी सक्रिय रहने का पता चला। बेटे की आदत छुड़ाने में नाकाम होने पर मनोचिकित्सक के पास काउंसिलिंग के लिए लाना पड़ा।
केस चार: सिकंदरा इलाके की रहने वाली 11 साल की छात्रा की करीब एक साल से इंटरनेट पर काफी समय बिताने लगी थी। वह देर रात तक इंटरनेट पर सक्रिय रहती। इससे उसकी सोने और जागने की आदत में बदलाव आ गया। यही नहीं सिर में भारीपन और दर्द की शिकायत रहने लगी। अभिभावकों ने उसकी इंटरनेट पर देर रात सक्रिय रहने की आदत को छुड़ाने का प्रयास किया। इससे वह तनाव में रहने लगी, बेटी की हालत देख अभिभावक उसे काउंसलर के पास लेकर पहुंचे।
पिछले साल मार्च में आई कोरोना संक्रमण की लहर ने बच्चाें को खेल के मैदान से दूर कर दिया। उन्हें अपना अधिकांश समय घर में ही गुजारना पड़ा। इसने अनचाहे की उनके हाथों में मोबाइल को थमा दिया। अभिभावकों ने भी बच्चों को संक्रमण का शिकार होने से रोकने के लिए कम ही बाहर निकलने दिया।इससे बच्चों का अधिकांश समय मोबाइल पर बीतने पर वह नेट एडिक्शन के शिकार हो रहे हैं। पिछले साल मार्च से इस साल जून के दौरान नेट एडिक्शन के शिकार होने वाले बच्चों की संख्या बढ़ी है।
मानसिक स्वास्थ्य संस्थान में हर सप्ताह करीब 1200 लोगों की आेपीडी होती है। इनमें 15 से 20 मामले में नेट एडिक्शन के होते हैं। जबकि कोरोना काल से पहले यह आंकड़ा चार से पांच का था। इसी तरह एसएन मेडिकल कालेज में भी इस तरह के केसों की संख्या बढ़ी है।मनोचिकित्सक इसका कारण बच्चों के हाथों में ज्यादा देर तक मोबाइल रहना मानते हैं। कोराेना काल में बच्चों की आनलाइन क्लास के चलते इंटरनेट और मोबाइल तक उनकी पहुंच काफी आसान हुई। वह पढ़ाई के अलावा भी बहुत कुछ इंटरनेट पर देख रहे हैं।
बच्चों पर हो रहे ये दुष्प्रभाव
-नींद न आने की शिकायत और भूख न लगना
-स्वभाव में चिड़चिड़ापन और उग्र होना, बात-बात पर खीझना।
-पढ़ाई समेत अन्य मामलों में ध्यान केंद्रित न होना
-मोबाइल का डाटा समाप्त होने पर बेचैनी की समस्या
-समूह में कम समय देने से बच्चों में सामाजिकता की समझ विकसित होने में समस्या आ रही है।
-समूह में दूसरों के बच्चों के साथ खेलने से भाव व्यक्त करने का तरीका आता है।नेट एडिक्शन बच्चों को भावहीन बना रहा है।
-बच्चों में काम को जिम्मेदारी से करने की भावना की जगह लापरवाही की समस्या
-इंटरनेट पर लगातार सक्रिय रहने से सिर दर्द और आंखों में दर्द व धुंधलेपन की शिकायत।
सुझाव
-नेट के अलावा कई ऐसे इंडोर गेम हैं जैसे कैरम, पतंगबाजी, शतरंत आदि में बच्चों को व्यस्त रखें।
-बच्चों में होमवर्क को नेट की जगह किताब से करने की आदत डालें।
-बच्चों को नेट के साथ ही किताबें पढ़ने की अादत भी डालें
-अभिभावकों को चाहि की बच्चे की आनलाइन क्लास के बाद उसके साथ कुछ वक्त बिताएं।
-कुछ न कुछ हाबी बनाक रखें। जिससे कुछ हासिल भले ही न हो लेकिन उसे करने में मजा आए।
-काेशिश करें कि सप्ताह में कम से कम एक दिन इंटरनेट से दूर रहने का प्रयास करें।
-वर्चुअल दुनिया के मित्रों के साथ वास्तविक मित्रों के साथ भी समय बिताएं।
-बच्चा यदि आनलाइन खत्म करने के बाद भी देर तक इंटरनेट पर सक्रिय है तो उसे बीच-बीच में चेक करते रहें।
देर रात तक नेट पर विभिन्न चीजो को देखने से बायोलाजिकल क्लाक प्रभावित हो रही है। इसके शारीरिक दुष्प्रभाव हो रहे हैं। रात ाको 12 बजे शरीर में गहरी नींद वाले हार्मोंस सक्रिय होते हैं, वहीं सुबह करीब चार बजे शरीर में सकारात्मक ऊर्जा वाले हार्मोस सक्रिय होते हैं। नेट एडिक्शन से इन हामोंस की बायोलाजिकल क्लाक गड़बड़ा रही है। जो आगे चलकर थकान और हताशा के रूप में सामने आ सकती है।
डाक्टर दिनेश राठौर प्रमुख अधीक्षक मानसिक स्वास्थ्य संस्थान एवं चिकित्सालय
वर्जन
नेट एडिक्शन के शिकार बच्चो को दो आयु वर्ग में बांट सकते हैं। पहला छह से 12 साल की आयु का है, जो वीडियो और गेम में व्यस्त रहता है। जबकि दूसरा समूह 12 से 18 साल की उम्र का है। इस आयु वर्ग के बच्चे इंटरनेट की विभिन्न इंटरनेट साइट्स पर जाते हैं। जिनके देखने से उनके मन मस्तिष्क पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। इससे उनका स्वभाव उग्र होने का डर रहता है।
यूसी गर्ग मनोचिकित्सक