Child Baggers: ताजनगरी में अनूठी पहल, यहांं भीख में पेट भरता है जेब नहीं
Child Baggers ताजमहल आगरा किला फतेहपुर सीकरी सहित तमाम एतिहासिक स्थलों के चलते आगरा में पर्यटकों का जमावड़ा रहता है। इन स्थानों के आसपास और प्रमुख तिराहे -चौराहों पर मासूमों को अधिक भीख मिलने की सोच वाले गैंग काफी समय से सक्रिय रहे हैं।
आगरा, यशपाल चौहान। तेज धूप, पसीने से लथपथ बदन। लाल चेहरा, बिखरे बाल। हाथ फैलाए 10 साल के बालक को तीन घंटे बीतने पर भी एक रुपया न मिला। हां, बिस्कुट, चाकलेट और केले इतने आ चुके थे कि पेट भर जाए। सेंट जांस चौराहे पर यह अकेला नहीं। अधिकांश चौराहों पर यही हाल था। भीख के बदले लोग खाने की वस्तुएं देते दिखे। शुक्रवार की दोपहर अचानक ऐसा नहीं हुआ। पिछले करीब तीन महीने से आम हुए ये नजारे
बच्चों से भीख मंगवाने वाले गैंग की कमर तोड़ने का संदेश दे रहे हैं, जो कि हर रोज शहर में तेजी से फैल रहा है। प्रशासन जिस काम को लंबे समय बाद भी नहीं कर पाया, वह काम अब जागरूक हुए लोगों की यह मुहिम करती दिख रही है, जो कि इंटरनेट मीडिया पर भी वायरल होने के साथ लोगों को प्रेरित कर रही है।
यह मुहिम आगरा की उस छवि तो तो़ड़ने का प्रयास भी कहा जा सकता है, जिसके लिए विदेशी पर्यटकों में यहां का इंप्रेशन खराब होता है। मासूमों के हाथाें में कटोरे के दृश्य संवेदनशील लोगों को झकझोरते हैं। दरअसल, ताजमहल, आगरा किला, फतेहपुर सीकरी सहित तमाम एतिहासिक स्थलों के चलते आगरा में पर्यटकों का जमावड़ा रहता है। इन स्थानों के आसपास और प्रमुख तिराहे -चौराहों पर मासूमों को अधिक भीख मिलने की सोच वाले गैंग काफी समय से सक्रिय रहे हैं। इस गैंग से बच्चों को बचाने के लिए अभियान के दावे पुलिस व प्रशासन करता रहा, पर हालात न बदलने पर लोगों ने ही भीख की बजाय खाने का सामान देना शुरू कर दिया। इनमें शामिल खंदारी निवासी समाजसेवी सुनीत चौहान का मानना है कि जब भीख के रुपये गैंग तक नहीं पहुंचेंगे तो वे बच्चों का उपयोग स्वतः ही बंद कर देंगे। समय लग सकता है, पर यह सोच सकारात्मक परिणाम जरूर देगी। एेसे बच्चों को देने के लिए वे भी अपनी गाड़ी में बिस्कुट के पैकेट रखते हैं। यह अलग बात है कि कुछ बच्चे बिस्कुट लेकर मुस्करा देते हैं तो कुछ उदास भी हो जाते हैं और वे फिर रुपये मांगने लगते हैं। इसकी बजह जानने पर लोहामंडी के व्यापारी प्रकाश शर्मा को एेसे कई बच्चों से कोई जवाब नहीं मिला, पर उनका मानना है कि भिक्षावृत्ति कराने वाले गैंग को खत्म करना है तो बच्चों को रुपये की जगह खाने-पीने का सामान ही देना जरूरी है।
मुंबई से मिली सोच
यह तो किसी को नहीं पता कि भीख में खाने की वस्तुएं देने की शुरूआत कब और किसने शुरू की, जिससे सहमत होने वाले लोगों की संख्या बढ़ती जा रही है। पर, इसकी सराहना खूब होने लगी है। विभव नगर के कारोबारी युवराज परिहार बताते हैं कि वे 10 साल पहले मुंबई गए थे। रेलवे स्टेशन से चचेरे भाई के साथ उनके घर जा रहे थे। रास्ते में एक दिव्यांग बालक उनकी गाड़ी की खिड़की पर आया। हाथ जोड़कर भीख मांगने लगा। रुपये देने से चचेरे भाई ने रोक दिया। बताया कि यहां गैंग बच्चों से भीख मंगवाता है। इनको भर पेट खाना भी नहीं मिलता। रुपये गैंग के पास ही जाएंगे। चचेरे भाई ने सीट के नीचे रखे बिस्कुट के पैकेट मासूम को थमा दिए। आगरा आकर उन्होंने यही किया और अपने साथियों को भी इसके लिए प्रेरित किया।