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Child Adoption: दुनिया वालों देखो मुझे मां-बाप मिल गए, जन्म लेने के चंद घंटे बाद फेंक गए थे मेरे अपने

Child Adoption दुनिया में लाने के बाद कडा़के की ठंड में खेत में डालकर चले गए थे अपने। अबोध को रेलवे के एक अधिकारी और उनकी पत्नी ने लिया गोद। बेटी के बाद दंपती के नहीं हुई थी कोई संतान बहन को राखी बांधने के लिए चाहिए था छोटा भाई।

By Tanu GuptaEdited By: Published: Thu, 06 May 2021 08:28 AM (IST)Updated: Thu, 06 May 2021 08:28 AM (IST)
Child Adoption: दुनिया वालों देखो मुझे मां-बाप मिल गए, जन्म लेने के चंद घंटे बाद फेंक गए थे मेरे अपने
अबोध को रेलवे के एक अधिकारी और उनकी पत्नी ने लिया गोद। प्रतीकात्मक फोटो

आगरा, अली अब्बास। नौ महीने कोख में रखने वाली मां दुनिया में लाने के चंद घंटे बाद ही नन्हीं सी जान को कड़़ाके की ठंड में खुले आसमान तले अकेला छोड़ गई थी। शायद यह सोचकर कि नन्हीं सी जान की किस्मत में होगा तो वह जिंदगी की जंग को जीत लेगा। वर्ना अबोध की इस रात की अब सुबह नहीं होगी। दूसरी ओर विधाता ने भी अबोध के भाग्य को अपने हाथों से लिखने की ठान ली थी। रात भर कड़ाके की सर्दी में मौत से जूझने के बाद सुबह का सूरज उगने के साथ ही अबोध के भाग्योदय की शुरूआत हो चुकी थी। मगर, इससे पहले उसे परीक्षा देनी थी। एक महीने तक अस्पताल में रहकर मौत को मात देने के बाद अबोध को शिशु गृह भेजा गया। यहां उसे गोद लेने की प्रक्रिया शुरू हुई। सात महीने के अबोध को रेलवे अधिकारी गोद लेने राजकीय शिशु गृह पहुंचे। गोद लेने की प्रक्रिया पूरी करने के बाद मां ने अबोध को गोद में लिया, उसने झट से उनकी उंगली पकड़ ली। शायद वह यह ऐलान कर रहा था, दुनिया वालों देखो मुझे मां-बाप मिल गए।

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राजकीय शिशु गृह में सात महीने पहले चाइल्ड लाइन ने एक अबोध को लाकर रखा था। उसे जन्म देने के बाद हालात के हाथों मजबूर मां कड़ाके की ठंड में खेत में छोड़कर चली गई थी। रात भर सर्दी में पड़े रहने के चलते अबोध बालक का पूरा शरीर नीला पड़ गया था। खेत पर शौच के लिए ग्रामीण उसके रोने की आवाज सुनकर वहां पहुंचे। उन्होंने कपड़े में लिपटे अबोध बालक को देखा। इसकी सूचना पुलिस को दी।अबोध को चाइल्ड लाइन ने पुलिस के माध्यम से अपनी सुपुर्दगी में लिया। रात भर ठंड में रहने से अबोध की हालत काफी बिगड़ चुकी थी। उसे आगरा में एसएन मेडिकल कालेज में भर्ती कराया। यहां करीब एक महीने तक भर्ती रहा। उसे बचाने के लिए डाक्टरों की पूरी टीम लगी रही।

एक महीने बाद अबोध स्वस्थ होकर राजकीय शिशु गृह में लाया गया। यहां उसे निर्धारित प्रक्रिया के तहत स्वतंत्र घोषित करके गोद देने की प्रक्रिया शुरू की गई। उधर, रेलवे के एक अधिकारी और उनकी पत्नी ने केंद्रीय दत्तक ग्रहण संसाधन प्राधिकरण के माध्यम से बच्चे को गोद लेने के लिए आवेदन किया था। अबोध की उसे गाेद लेने वाले अभिभवकों से मैचिंग कराई गई। करीब दो महीने चली प्रक्रिया के बाद अबोध को गोद लेने का रास्ता साफ हुआ। पिछले सप्ताह दंपती ने राजकीय शिशु गृह आकर अबोध को गोद ले लिया। वह उसे अपने साथ लेकर चले गए।

बहन को रक्षा बंधन पर राखी बांधने के लिए चाहिए था भाई

रेलवे अधिकारी की शादी करीब 14 साल पहले हुई थी।उनकी एक बेटी है। इसके बाद उन्हें कोई बच्चा नहीं हुआ। उधर, बेटी की माता-पिता से जिद थी कि उसे एक भाई चाहिए। इससे कि रक्षाबंधन पर वह उसकी कलाई पर राखी बांध सके।काफी सोच-विचार के बाद रेलने अधिकारी और उनकी पत्नी ने शिशु गृह से बेटे को गोद लेने का फैसला किया। इसके पीछे उनका उद्देश्य बेटी को भाई की कमी पूरी करने के साथ ही एक अबोध की जिंदगी को संवारना भी था।

गोद में लेते ही भावुक हो गई मां

रेलवे अधिकारी की पत्नी अपने अबोध को गोद लेने के लिए काफी उत्साहित थीं। यहां आने से पहले वह पूरी रात नहीं सोई थीं। शिशु गृह में आकर उन्होंने कागजी प्रक्रिया पूरी होने का इंतजार नहीं किया। अबोध को उससे पहले ही गोद में लेकर बैठी रहीं।अबोध उनकी उंगली पकड़कर खेलने लगा तो मां भावुक हो गईं। उसे सीने से लगा लिया, उनकी आंखों में खुशी के आंसू छलक उठे। वहीं बेटी ने भी वीडियो काल पर अबोध भाई को कई बार देखा। वह माता-पिता से भाई को जल्दी से घर लेकर आने की कह रही थी।

लखनऊ के दंपती ने ऐन वक्त पर बदल दिया फैसला

अबोध काे गोद लेने के लिए पहले लखनऊ के एक दंपती से मैचिंग हुई थी। वह उसे गोद लेने की तैयारी कर चुके थे। मगर, ऐन वक्त पर उन्होंने किसी कारणवश अपना फैसला बदल दिया। उनके हटते ही दो साल से अबोध को गोद लेने के लिए इंतजार करते रेलवे अधिकारी और उनकी पत्नी का नंबर आ गया। वह यहां आए और बच्चे को देखते ही उसी को गोद लेने का फैसला किया। दंपती ने एक महीने में सारी प्रक्रिया पूरी करके अबोध को गोद ले लिया।

दस दिन में ही बहन के साथ घुलमिल गया अबोध

दुनिया में भले ही कितने वतन हों। मगर प्यार की बस एक जुबां है, जिसे सब समझते हैं। सात महीने के अबोध को भी प्यार की यह जुबां समझते देर नहीं लगी। वह अपनी बहन और मां के साथ दस दिन में ही खूब घुलमिल गया है। दोनों साथ मिलकर दूध पीते हैं, टीवी देखते हैं। मां को देखते ही अबोध उनकी गोदी में आने के लिए मचलने लगता है।

राजकीय शिशु गृह में कारा के माध्यम से सात महीने के अबोध की मैचिंग हुई थी। दत्तक माता-पिता गोद लेने की कानूनी प्रक्रिया पूरी करने के बाद अबोध को अपने साथ ले गए।

विकास कुमार अधीक्षक राजकीय शिशु एवं बाल गृह 


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