Fire in Chemical Factory: जांच समिति ने उप नियंत्रक विस्फोटक से मांगी केमिकल फैक्ट्री के निरीक्षण की रिपोर्ट
Fire in Chemical Factory उप नियंत्रक विस्फोटक विभाग से केमिकल फैक्ट्री के पास 2022 तक का है लाइसेंस। विभाग ने कब-कब किया था फैक्ट्री का निरीक्षण टीम ने मांगी तीन साल का ब्यौरा। जांच में आएगी कइयों पर आंच।
आगरा, जागरण संवाददाता। सिकंदरा हाईवे पर केमिकल और शू मैटेरियल फैक्ट्री में लगी आग की जांच कर रही जांच समिति ने साइट प्लान समेत उपलब्ध अन्य दस्तावेजों का अध्ययन किया है। जांच समिति ने उप नियंत्रक विस्फोटक से केमिकल फैक्ट्री के तीन साल के दाैरान किए गए निरीक्षण से संबंधित रिपोर्ट मांगी है। केमिकल फैक्ट्री के पास उप नियंत्रक विस्फोट से 2022 तक लाइसेंस है।
सिकंदरा मंडी के पास हाईवे स्थित केमिकल और शू मैटेरियल फैक्ट्री में सात सितंबर को हुए भीषण आग लग गयी थी। इसकी जांच एडीएम वित्त एवं राजस्व योगेंद्र कुमार के नेतृ़त्व में बनी समिति द्वारा की जा रही है। जांच समिति केमिकल फैक्ट्री के दिए गए नक्शे की जमीनी हकीकत का भौतिक सत्यापन कर रही है। जांच समिति को प्रथम दृष्टया फैक्ट्री परिसर में केमिकल के रख-रखाव में लापरवाही मिली थी। केमिकल से भरे ड्रम शू मैटेरियल वाले हिस्से में रखे हुए थे। जबकि इन्हें वहां नहीं रखना चाहिए था। परिसर में केमिकल से भरे चार भूमिगत टैंक भी हैं।
जांच समिति ने फैक्ट्री मालिक दीपक मनचंदा से केमिकल के कारोबार से संबंधित दस्तावेज मांगे थे। मालिक का समिति से कहना था कि रिकार्ड आग में जल गया है। इस पर जांच समिति ने विस्फोटक विभाग से केमिकल फैक्ट्री का साइट प्लान मांगा था। विभाग ने 23 सितंबर को साइट प्लान समिति को उपलब्ध करा दिया। यह नक्शा केमिकल के कारोबार के दौरान विभाग को फैक्ट्री मालिक द्वारा दिया गया था। एडीएम वित्त एवं राजस्व योगेंद्र कुमार ने बताया कि उप नियंत्रक विस्फाेटक से केमिकल फैक्ट्री के निरीक्षण की रिपोर्ट मांगी गयी है।
डीएम ने सात दिन में मांगी थी रिपोर्ट
केमिकल एवं शू मैटेरियल फैक्ट्री में सात सितंबर को भीषण आग लगने से दहशत फैल गयी थी। केमिकल से भरे भूमिगत टैंकों तक आग पहुंचने से रोकने के लिए फायर ब्रिगेड की दस घंटे तक जुटी रहीं थीं। हाईवे पर वाहनों को रोक दिया गया था। डीएम प्रभु एन सिंह और एसएसपी बबलू कुमार मौके पर पहुंचे थे। डीएम ने घटना की गंभीरता को देखते हुए जांच समिति गठित की थी। समिति को सात दिन में रिपोर्ट देनी थी। मगर, कभी फैक्ट्री मालिकों तो कभी संबंधित विभागों द्वारा दस्तावेज समय पर उपलब्ध नहीं कराने के चलते एक महीने बाद भी जांच रिपोर्ट तैयार नहीं हो सकी।