August Kranti 2020: गांधी जी के इस आह्वान के बाद आगरा में धधक उठा था क्रांति का ज्वालामुखी
August Kranti 2020 मुंबई में आठ अगस्त को कांग्रेस महासमिति की बैठक में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने अंग्रेजो भारत छोड़ो आंदोलन की घोषणा करते हुए करो या मरो का आह्वान किया था।
आगरा, आदर्श नदंन गुप्त। शान न इसकी जाने पाए, चाहे जान भले ही जाए, विश्व विजय करके दिखलाएं, तब होवे प्रण पूर्ण हमारा, झंडा ऊंचा रहे हमारा। यह गीत पूरे शहर में गूंज रहा था। हर कंठ से भारतमाता के जयघोष निकल रहे थे। हाथों में तिरंगे झंडे लेकर हर गली और मुहल्ले में जुलूस निकाले जा रहे थे। सभी में देश पर सर्वस्व समर्पण करने की भावना थी।
यह माहौल 10 अगस्त 1942 को आगरा में था। मुंबई में आठ अगस्त को कांग्रेस महासमिति की बैठक में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने अंग्रेजो भारत छोड़ो आंदोलन की घोषणा करते हुए करो या मरो का आह्वान किया था। पूरे देश में नौ अगस्त को स्वाधीनता आंदोलन की अंतिम क्रांति की चिंगारी भड़क गई थी। आगरा में देरी से सूचना आने पर 10 अगस्त को आंदोलन शुरू हुए थे। ऐसा कोई मुहल्ला नहीं था, जहां से जुलूस नहीं निकाले जा रहे थे। विभिन्न स्थानों से निकाले गए जुलूस दरेसी पर पुरानी चुंगी के मैदान के पास पहुंच गए। यहां एक विशाल सभा का आयोजन किया गया।
अचानक इतनी भीड़ देखकर अंग्रेजी प्रशासन के हाथ-पांव फूल गए। पुलिस ने सभा स्थल को चारों ओर से घेर लिया। सभा भंग करने की अपील बार-बार पुलिस अधिकारियों ने की, लेकिन देशभक्त मानने वाले नहीं थे। जोश बढ़ता ही जा रहा था। सभा की अध्यक्षता बाबूलाल मीतल कर रहे थे। पुलिस ने वहां गोली चला दी। एक गोली छीपीटोला निवासी परशुराम के लगी और वह वहीं शहीद हो गए। इसके बाद भगदड़ मच गई। सैंकड़ों लोगों की गिरफ्तारियां हुईं। जेल भर दी गईं। कम उम्र के लोगों को पुलिस ने गाडिय़ों में भर कर जंगल में छोड़ दिया। पूरे जिले में पुलिस ने जबर्दस्त अत्याचार किए थे। स्वाधीनता सेनानी सरोज गौरिहार के अनुसार परशुराम अगस्त क्रांति के प्रथम शहीद थे। उसके बाद तो पूरे जनपद में आंदोलन शुरू हो गए थे। सरकारी कार्यालय फूंक दिए गए। रेलवे लाइन उखाड़ दीं।
आजादी के बाद शहीद परशुराम के नाम के शिलापट बिजलीघर चौराहे और छीपीटोला चौराहे पर लगाए गए थे, वे भी कई दशकों से गायब हैं।
जनपद में ये हुए थे शहीद
जनपद में विभिन्न स्थानों पर आंदोलन हुए, उनमें सुल्तानपुर की जेल में इंद्रचंद्र पैंगोरिया, दरेसी पर परशुराम, बरहन में केवल सिंह, चमरौला में साहब सिंह, खजान सिंह, सोरन सिंह व उल्फत सिंह शहीद हुए थे। इन शहीदों के आज तक कहीं भी स्मारक नहीं हैं। चमरौला में स्मारक बनाया गया था, लेकिन वह भी अब जर्जर हो चुका है।
इनकी रही थी प्रमुख भूमिका
पं. श्रीकृष्णदत्त पालीवाल, सेठ अचल सिंह, ठाकुर उल्फत सिंह चौहान, पं. श्रीराम शर्मा, जगन प्रसाद रावत, प्रकाशनारायण शिरोमणि, गोपाल नारायण शिरोमणि, शंभूनाथ चतुर्वेदी, पं. कालीचरन तिवारी, बल्लाजी, देवकीनंदन विभव, रोशनलाल गुप्त करुणेश, वासुदेव गुप्ता।