Ram Mandir Ayodhya: रंगु बरसैगौ हां-हां राम रंगु बरसैगौ...ब्रज धाम के हर गीत का आधार हैं राम
Ram Mandir Ayodhya ये ब्रज की खासियत है कि हर मंगलगीत में रामलला के बिना अधूरा है।
आगरा, विनीत मिश्र। मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम जन-जन के आराध्य हैं। कान्हा की नगरी में उनकी आराधना तो प्राचीन काल से हो रही है। ये राम के प्रति अगाध आस्था है कि कान्हा की नगरी में हर मांगलिक कार्यक्रम में भगवान राम का ही गुणगान होता है। लगुन का कार्यक्रम हो या कन्या के द्वार बारात आई हो, हर शुभ कार्यक्रम की शुरुआत यहां राम के नाम से होती है। ये ब्रज की खासियत है कि हर मंगलगीत में रामलाल के बिना अधूरा है।
वरिष्ठ साहित्यकार पद्म श्री मोहन स्वरूप भाटिया कहते हैं कि भारतीय संस्कृति की एकात्मकता के कारण ब्रज में राम और कृष्ण दोनों के प्रति ही समान श्रद्धा है। यही कारण है कि जिस श्रद्धा से श्रीकृष्ण जन्माष्टमी मनाई जाती है, उसी आस्था से रामनवमी। वह कहते हैं कि ब्रजवासियों के हृदय में आदर्श वर के रूप में राम हैं तो आदर्श वधु के रूप में सीता, आदर्श ससुर के रूम में राजा दशरथ हैं, तो आदर्श सास के रूप में माता कौशल्या हृदय में समाई हैं। ब्रज में विवाह में गाए जाने वाले लोकगीत तो यहां की बालिकाओं के कंठहार हैं। जब विवाह में ' राम जाए अजुध्या, आनंद भए-आनंद भए , सुख चैन भए' जब बालिकाएं गाती हैं, तो माहौल राममय हो जाता है। लगता है बारात लेकर साक्षात भगवान राम आ रहे हैं। ब्रज में लगुन का एक लोकगीत हर जुबां पर है, 'रघुनंदन फूले न समाई, लगुन आई हरे-हरे, लगुन आई मोरे अंगना'। ये राम और कृष्ण के बीच के रिश्तों की थाती ही है कि जब कन्या के द्वार पर बारात पहुंचती है, तो कृष्ण नगरी में भी उनका ही नाम होता है। 'राम बारात पौरी पै आई, रंगु बरसैगौ हां-हां राम रंगु बरसैगौ' कानों में जब ये स्वर गूंजते हैं, तो लगता है विवाह में रामनाम का ही रंग बरस रहा है।
ब्रज के गीतों में राम के वनवास की पीड़ा भी
जब भगवान राम को कड़कड़ाती ठंड में वनवास मिला, तो माता कौशल्या की पीड़ा भी ब्रजवासियों ने अपने लोकगीत में व्यक्त कर दी। ब्रज में गाया जाता है लाग्यौ री पूस जो मास, रैन भई जैसे खांड़े की धार। कुश आसन कैसें पौङ्क्षढगे राम, कैसें करें वन में विसराम। मो जनंग जरी के पठयैं तैनें नारि ,बैरिन बन बालक मेरे।