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Ancient Sculpture: यहां तो सात हजार वर्ष पुरानी सभ्यता के भी हैं साक्ष्य, अनदेखी का शिकार हो रहा इतिहास

Ancient Sculptureफतेहपुर सीकरी की रॉक शेल्टर्स में बने हैं चित्र उत्खनन में मिले हैं 4000 वर्ष पुराने साक्ष्य। जगनेर के नौनी खेरा में खेत की खोदाई में मिले हैं 11-12वीं शताब्दी क

By Tanu GuptaEdited By: Published: Mon, 03 Aug 2020 06:21 AM (IST)Updated: Mon, 03 Aug 2020 12:01 PM (IST)
Ancient Sculpture: यहां तो सात हजार वर्ष पुरानी सभ्यता के भी हैं साक्ष्य, अनदेखी का शिकार हो रहा इतिहास
Ancient Sculpture: यहां तो सात हजार वर्ष पुरानी सभ्यता के भी हैं साक्ष्य, अनदेखी का शिकार हो रहा इतिहास

आगरा, निर्लोष कुमार। आगरा को आज दुनियाभर में ताजमहल और मुगलकाल में बने अन्य स्मारकों के लिए जाना जाता है। जगनेर के नौनी खेरा में मिली 11-12वीं शताब्दी की मूॢतयों व मंदिर के पुरावशेषों ने उसके कहीं अधिक प्राचीन होने पर मुहर लगाई है। यहां तो सात हजार वर्ष पुरानी सभ्यता के साक्ष्य भी उपलब्ध हैं, जो कि अनदेखी का शिकार हैं। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआइ) को भी उत्खनन में यहां चार हजार वर्ष पूर्व विकसित मानव सभ्यता के साक्ष्य कई स्थलों से मिले हैं।

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रॉक आर्ट सोसायटी ऑफ इंडिया के सचिव पुरातत्वविद् डॉ. गिरिराज कुमार ने किरावली के रसूलपुर में 12, मदनपुरा में तीन, पतसाल में चार और जाजाली में आठ रॉक शेल्टर्स की खोज की थी। पुस्तक 'तवारीख-ए-आगरा में इतिहासविद राजकिशोर राजे ने रॉक शेल्टर्स के बारे में लिखा है कि इनमें बने चित्र उत्तर पाषाण काल से लेकर गुप्त काल तक के यानि सात हजार वर्ष से 1700 वर्ष तक पुराने हैं। पतसाल के पास खेतों में ऐसे साक्ष्य मिले थे, जिनसे साबित होता है कि यहां आदिमानव रहते होंगे। पतसाल में पेड़-पौधे, पशु समूहों, हथियारों व नृत्य, मदनपुरा में दंतीला हाथी, सांड़, नील गाय और रसूलपुर में जटिल अल्पना चित्र मिले थे। वहीं, एएसआइ द्वारा नवंबर, 2015 में आगरा किला में लगाई गई प्रदर्शनी 'अतीत के झरोखे से में आगरा व उसके आसपास कराए गए उत्खनन में मिले 3500 से 4000 वर्ष पुराने साक्ष्यों की जानकारी दी गई थी।

यहां उत्खनन में मिले पुरावशेष

हाड़ा महल: फतेहपुर सीकरी में अजमेरी गेट के पास प्राचीन टीले का उत्खनन एएसआइ के शंकरनाथ ने 1987-88 व 1988-89 में कराया था। इसमें चार सांस्कृतिक कालों के अवशेष मिले। प्रथम काल की संस्कृति दो हजार ईसा पूर्व (चार हजार वर्ष प्राचीन) में गंगा-यमुना दोआब में निवास करने वाली गेरुए मृदभांड परंपरा से संबंधित थी।

सढ़वारा खेड़ा: फतेहाबाद से 20 किमी दूर खारी नदी के शुष्क तट पर इनायतपुर में सढ़वारा खेड़ा है। यहां 1991-92 में एएसआइ के शंकरनाथ ने उत्खनन कराया था। यहां गैरिक मृदभांड संस्कृति, चित्रित धूसर पात्र परंपरा, आरंभिक ऐतिहासिक काल और मध्यकाल के पुरावशेष मिले थे।

बटेश्वर: बटेश्वर में एएसआइ के उत्तरी मंडल के जेएस निगम ने वर्ष 1974 में उत्खनन कराया था। यहां किला टीला और माता टीला पर हुई खोदाई में चित्रित धूसर पात्र परंपरा, उत्तरी-काली चमकीली पात्र परंपरा, छठी शताब्दी, राजपूत व सल्तनत काल के अलावा मौर्य, शुंग एवं कुषाण काल की संरचनाएं मिली थीं।

बीर छबीली टीला: फतेहपुर सीकरी के बीर छबीली टीले पर 1999-2000 में एएसआइ के डीवी शर्मा द्वारा किए उत्खनन में चार सांस्कृतिक कालों के पुरावशेष मिले थे। इनमें काल खंड छठी से आठवीं सदी, नवीं से 12वीं, 12 से 16वीं और 16 से 18वीं सदी के पुरावशेष मिले थे। इनमें 10वीं सदी की सरस्वती की प्रतिमा अद्वितीय है।

महाभारत कालीन है क्षेत्र

एएसआइ के अधिकारी बताते हैं कि आगरा और उसके आसपास का पूरा क्षेत्र महाभारत कालीन है। ब्रज क्षेत्र के मथुरा, बटेश्वर, अलीगढ़ का सासनी, फीरोजाबाद का चंद्रवाड़ आदि काफी महत्वपूर्ण हैं। समय-समय पर यहां हुए उत्खनन में इसके साक्ष्य भी मिले हैं।

खनन ने पहुंचाई रॉक शेल्टर्स को क्षति

इतिहासविद् राजकिशोर राजे बताते हैं कि फतेहपुर सीकरी में अवैध खनन ने रॉक शेल्टर्स को काफी क्षति पहुंचाई है। उनमें उत्तर पाषाण काल से गुप्त काल तक के बने चित्रों को संरक्षित कराने को एएसआइ या राज्य पुरातत्व विभाग ने कभी ध्यान नहीं दिया। 


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