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Ancient Sculpture: ऐतिहासिक धरोहरों का खजाना है यहां, पहले भी मिलते रहे हैं पुरावशेष

Ancient Sculpture नौनी खेरा में 11वीं शताब्दी के मंदिर के पुरावशेष मिलने से फिर चर्चाओं में आया। कार्लायल को 1871-72 में मिली थी प्रतिमा 3500 वर्ष पुराने साक्ष्य भी मिले।

By Tanu GuptaEdited By: Published: Sun, 02 Aug 2020 06:44 AM (IST)Updated: Sun, 02 Aug 2020 06:44 AM (IST)
Ancient Sculpture: ऐतिहासिक धरोहरों का खजाना है यहां, पहले भी मिलते रहे हैं पुरावशेष
Ancient Sculpture: ऐतिहासिक धरोहरों का खजाना है यहां, पहले भी मिलते रहे हैं पुरावशेष

आगरा, निर्लोष कुमार। आगरा के पास नौनी खेरा में 11-12वीं शताब्दी के राजपूत काल के मंदिर के पुरावशेष मिलने से जगनेर एक बार फिर चर्चाओं में है। ऐसा पहली बार नहीं हुआ है, जब जगनेर में पुरावशेष मिले हों, इससे पूर्व भी समय-समय पर यहां जमीन के अंदर छिपी इतिहास की कड़ियां सामने आती रही हैं।

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जगनेर के नौनी खेरा में किसान गंगाराम कुशवाहा द्वारा गुरुवार को अपने खेत में तालाब की जेसीबी से खोदाई कराई जा रही थी। इसी दौरान प्राचीन मंदिर के पुरावशेष व मूर्तियां निकली थीं। शुक्रवार को भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआइ) की टीम ने गांव मेंं जाकर खोदाई स्थल और मूर्तियों व पुरावशेषों का अवलोकन किया था। एएसआइ द्वारा पुरावशेषों को 11-12वीं शताब्दी का बताया गया है। इनमें मंदिर के आमलक, दो शिवलिंग और भगवान सूर्य की प्रतिमा, दीपस्तंभ का भाग आदि हैं। एएसआइ जिसे सूर्य की प्रतिमा बता रहा है, उसे प्रो. सुगम आनंद ने द्वारपाल की प्रतिमा बताया है। यहां की रिपोर्ट एएसआइ द्वारा संस्कृति मंत्रालय को भेजी जाएगी। जगनेर से पुरावशेष मिलने का यह पहला मामला नहीं है, इससे पूर्व भी यहां से पुरावशेष मिले हैं। वर्ष 1871-72 में एसीएल कार्लायल को कुछ पुरावशेष मिले थे। इनमें आलती-पालती लगाए एक प्रस्तर प्रतिमा थी, जो जैन धर्म से संबंधित प्रतीत होती थी। इसका जिक्र एएसआइ की वर्ष 1871-72 की एनुअल सर्वे रिपोर्ट में है।

वहीं, आगरा-जगनेर रोड पर आगरा से 16 किमी दूर खलुआ को ग्वालखेडा़ नाम से जाना जाता है। यहां एएसआइ के उत्तरी मंडल के टीएस आयंगर ने वर्ष 1965-66 में वाईडी शर्मा के निर्देशन में उत्खनन कराया था। यहां चित्रित धूसर मृदभांड परंपरा, काले व लाल मृदभांड के साथ हड्डी के बाणाग्र, तांबे की चूड़ियां, मिट्टी के मनके, कार्नेलियन के मनके, मिट्टी के मानवशीर्ष व हाथीदांत की डिस्क मिली थीं। चित्रित धूसर मृदभांड सबसे पहले वर्ष 1940-44 में अहिच्छत्र टीले से मिले थे। इस तरह की परंपरा ऊपरी गंगा घाटी में मिलती है। इसे 1500 से 1000 ईसा पूर्व के काल खंड में रखा जाता है। यह करीब 3500-3000 वर्ष पुरानी हुई। नवंबर, 2015 में आगरा किला में एएसआइ द्वारा लगाई गई प्रदर्शनी 'अतीत के झरोखे' में यह जानकारी प्रदर्शित की गई थी।

यह कहते हैं अभिलेख

किताब 'तवारीख-ए-आगरा' में इतिहासविद राजकिशोर राजे ने लिखा है कि एसीएल कार्लायल के अनुसार जगनेर को राजा गज द्वारा बसाया गया था। कुछ लोग जगनेर को 'आल्हा-उदल' ग्रंथ के रचयिता जगनिक से जोड़ते हैं, जो आल्हा-उदल का मामा था। जगनेर के किले में बना ग्वाल बाबा का मंदिर बहुत मशहूर है। वहीं, वर्ष 1931 में प्रकाशित हुई पुस्तक 'मुरक्का-ए-अकबराबाद' के पेज 288 पर दिए विवरण के अनुसार वर्ष 1910 तक यहां अलीवर्दी खां का बनवाया हुआ मशहूर तालाब था, जो अब नहीं है। जगनेर में भरतपुर के राजा सूरजमल ने बाबड़ी बनवाई थी। यहां से कुछ दूर जाजऊ नामक जगह से पूर्व में बौद्धकालीन प्रतिमाएं भी मिल चुकी हैं।

'जगनेर के नौनी खेरा में हाल में निकले पुरावशेष महत्वपूर्ण हैं। इनका विस्तृत अध्ययन किया जाना चाहिए। यह स्थान ऐतिहासिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है। यदि यहां बड़े पैमाने पर उत्खनन कराया जाए तो काफी कुछ पुरावशेष और भी मिलने की पूरी संभावना है। जिससे इस स्थान के प्राचीन इतिहास को और भी स्पष्टता से सामने लाया जा सकता है।'

-राजकिशोर शर्मा राजे, इतिहासविद् 


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