Vocal for Local: तुलसी से महका आंगन तो खिल उठी ब्रज के ग्रामीणाें की जीवन की बगिया
Vocal for Local कंठी-माला बनाकर आत्निर्भर बन गया जैंत गांव। पूरी दुनिया में बन गई जैंत की कंठी माला की पहचान।
आगरा, विनीत मिश्र। ये उस गांव कहानी है, जिसने आत्मनिर्भर बनने की कहानी गढ़ी है। कोरोनाकाल में सरकारें भले ही आत्मनिर्भर बनने का संदेश दे रही हैं, लेकिन ये गांव तो पीढ़ियों पहले ही आत्मनिर्भर बन गया। खेतों में उगाई तुलसी से हर घर का आंगन महक उठा है। ग्रामीणों के हाथों से तैयार कंठी-माला आज दुनिया भर में पहचान पा रही है, तो ग्रामीणों के हाथों को घर बैठे रोजगार मिला।
जैंत, चौमुहां ब्लॉक, मथुरा का एक गांव। मथुरा शहर मुख्यालय से कोई आठ किमी दूर स्थित जैंत गांव ने यूं हीं आत्मनिर्भरता की इबारत नहीं लिखी। तुलसी के खेती और उससे तैयार उत्पादों ने यहां की जिंदगी संवार दी। गांव की आबादी करीब 17 हजार है। 13 सौ परिवारों में करीब सात सौ से अधिक यहां तुलसी की खेती उससे तैयार कंठी-माला के काम में प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से जुड़े हैं। पूरे गांव की अर्थव्यवस्था भी तुलसी की खेती और कंठी माला पर ही टिकी है। जिनके पास खेती है, वह तुलसी उगा रहे हैं और जो खेतीविहीन हैं, वह कंठी माला बनाने में लगे हैं। दरअसल, इस गांव में परंपरागत खेती से इतर तुलसी की खेती करने की शुरुआत ही करीब एक सौ वर्ष पहले हुई थी। ये तुलसी ही मुनाफे कहानी गढ़ रही है। गांव के रामकरन के पास 16 बीघा जमीन है। करीब 9 बीघा में वह तुलसी की खेती करते हैं। ऐसा करने वाले वह परिवार की तीसरी पीढ़ी के सदस्य हैं। रामकरन बताते हैं कि फरवरी से अप्रैल के बीच पौध डाली जाती है। डेढ़ माह में तुलसी की फसल खेतों में लहलहाने लगती है। एक बीघा खेती में लागत 8 से दस हजार आती है और 25 से 35 हजार रुपये बीघा तक फसल बिक जाती है। बेचने के लिए उन्हें कहीं बाहर नहीं जाना पड़ता। रामकरन बताते हैं कि जैंत गांव के ही कई व्यापारी के अलावा वृंदावन के व्यापारी खड़ी फसल खरीद लेते हैं। पैसे का भुगतान कर व्यापारी तुलसी की पत्ती अलग बेचते हैं, फिर उसकी मोटी और पतली लकड़ी अलग-अलग कर लेते हैं। तुलसी को सुखाकर उसे तमाम आयुर्वेदिक दवाएं बनाने वाली कंपनियों को बेच दिया जाता है, तो लकड़ी कंठी-माला तैयार करने के लिए गांव के लोगों को। जैंत में घर-घर तुलसी की कंठी-माला बन रही हैं।
क्या कहना है कारोबार करने वालों का
− जैंत में ही कंठी-माला का कारोबार करने वाले गोविंदा कहते हैं कि चार पीढ़ियों से उनका परिवार कंठी-माला तैयार करने के काम में लगा है। वह खेतों में खड़ी फसल खरीदते हैं, फिर उसी से व्यापार करते हैं। कुछ खुद तैयार करते हैं और गांव के कारीगरों को देते हैं। पतली कंठी माला 10 से 15 रुपये में बिकती है,जबकि उसे तैयार करने में लकड़ी समेत कारीगर को लागत एक से दो रुपये ही आती है। एक कारीगर दिन भर में बीस माला तैयार कर लेता है। तो बड़ी माला करीब दस बन जाती हैं। एक-एक परिवार से चार से पांच सदस्य इस काम में लगे हैं। एक हजार रुपये तक परिवार रोज कमा लेता है।
− जैंत निवासी खेमचंद बताते हैं कि उनके परिवार के आठ सदस्य इस कंठी माला का काम लगाते हैं। वह कहते हैं कि एक सदस्य कंठी माला तैयार कर करीब दो सौ रुपये रोज कमा लेता है। वह लकड़ी खरीदकर लाते हैं और कंठी माला तैयार करते हैं। छोटी माला में करीब 10 रुपये बचत होती है। बीस माला एक व्यक्ति बनाता है। खेमचंद की तीन पीढ़ी इस काम में लगी हैं।
नानगा बाबा ने शुरू किया था काम
कंठी माला बनवाकर थोक विक्रेताओं को बेचने वाले गोविंदा शर्मा बताते हैं कि उनके परिवार में चार पीढ़ियों से ये काम हो रहा था। उनके परबाबा नानगा बाबा ने जैंत गांव में पहली बार करीब सौ वर्ष पहले तुलसी की खेती शुरू की थी। मुनाफा हुआ तो धीरे-धीरे लोगों में रुझान बढ़ा और कंठी माला का कारोबार बढ़ने लगा।
एक नजर
17 हजार है जैंत की कुल आबादी।
13 सौ परिवार हैं जैंत में ।
7 सौ से अधिक परिवार कंठी-माला और तुलसी उत्पादन का काम करते हैं।
5 से छह सदस्य हर परिवार के कंठी माला तैयार कर रहे हैं।
100 वर्ष से अधिक समय से यहां कंठी माला का काम हो रहा है।
35 हजार रुपये बीघा बिक जाता है पौध तैयार खेत
1000 रुपये रोज कम से कम एक परिवार कमा लेता है कंठी माला बनाने में।
विदेशों में भी जैंत की कंठी -माला की धाक
वृंदावन में कंठी-माला का थोक कारोबार करने वाले अजय गोयल बताते हैं कि अमेरिका, रूस समेत ज्यादातर देशों में जहां हिंदू बसे हैं, यहां से कंठी-माला जाता है। इसके अलावा पूरे देश में कंठी-माला यहां से खरीदकर लोग ले जाते हैं। जबकि बाहर के व्यापारी भी यहां से थोक में कंठी माला मंगाते हैं। जैंत को अब विश्व बैंक भी गोद ले रहा है। यहां पर वह तुलसी की खेती और कारोबार को बढ़ावा देगा। विश्व बैंक खेतों तक जाने वाले मार्ग को पक्का कराने के साथ ही यहां कंठी माला तैयार करने को मशीनें भी लगाएगा। इसके लिए प्रस्ताव बनाकर स्वीकृति के लिए लखनऊ भेजा गया है।