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Vat Savitri Vrat 2020: लॉकडाउन में ऐसे करें सुहाग पर्व की पूजा पूरी, पढ़ें कथा भी

Vat Savitri Vrat 2020 22 मई को है वट सावित्री व्रत। घर को शुद्ध कर करें पूजन।

By Tanu GuptaEdited By: Published: Thu, 21 May 2020 05:42 PM (IST)Updated: Fri, 22 May 2020 08:40 AM (IST)
Vat Savitri Vrat 2020: लॉकडाउन में ऐसे करें सुहाग पर्व की पूजा पूरी, पढ़ें कथा भी
Vat Savitri Vrat 2020: लॉकडाउन में ऐसे करें सुहाग पर्व की पूजा पूरी, पढ़ें कथा भी

आगरा, जागरण संवाददाता। वट सावित्री पर्व शुक्रवार को है। लाकडाउन की वजह से इस बार महिलाओं को घर में ही पूजन करना पड़ेगा। इसके लिए महिलाएं बरगद के पेड़ के पत्ते ला कर घरों पर ही कथा सुन कर पति के दीर्घ जीवन की कामना करेंगी। ज्‍योतिषाचार्य डॉ शोनू मेहरोत्रा के अनुसार वट सावित्री पर्व महिलाओं द्वारा पति की लंबी आयु और उनके सुखद जीवन की कामना के लिए मनाया जाता है। इस दिन महिला बरगद के पेड़ के नीचे बैठकर पूजन करती है। पेड़ पर सूत लपेटते हुए परिक्रमा की जाती है। सती सावित्री ने यमराज से किस तरह अपने पति को मुक्त कराया था, इसकी कहानी सुनी जाती है।

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पेड़ों के तेजी से कटने के कारण बरगद के पेड़ अब कम दिखाई देते है। इसलिए घरों पर उसके पत्ते लाकर उनकी पूजा का प्रचलन बढ़ रहा था, लेकिन अब लाकडाउन के कारण पत्तों को घरों पर लाकर पूजन करना मजबूरी हो गया है।

ऐसे करें पूजा

घर में पवित्र जल का पूरे घर में छिड़काव करने के बाद पूजा स्थल के समीप अपने देव की मूर्ती रखें। उसी के पास में पत्ते को रखें। पत्ते पर तीन या सात बार कच्चा धागा यानि सूत लपेट कर उसका रोली, चावल से पूजन कर फूल अर्पित करें। बायना निकाल कर सास व अन्य बुजुर्गों के चरण स्पर्श कर आशीर्वाद प्राप्त करें।

क्‍या है महत्‍व

डॉ शोनू बताती हैं कि वट सावित्री व्रत में बरगद के पेड़ का महत्व बहुत अधिक होता है। सनातन संस्कृति में ऐसा माना जाता है कि बरगद के पेड़ पर ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों देवताओं का वास होता है। इस दिन विवाहित महिलाएं वट वृक्ष पर जल चढ़ाकर उसमें कुमकुम अक्षत लगाती हैं। पेड़ में रोली लपेटी जाती है। एकदम विधि-विधान के साथ वट वृक्ष की पूजा की जाती है। ऐसा करने से महिलाओं को अखंड सौभाग्य की प्राप्ति होती है। महिलाओं के द्वारा वट सावित्री व्रत त्रयोदशी से तिथि से ही प्रारंभ हो जाता है। हालांकि कुछ महिलाएं केवल अमावस्या के दिन ही यह व्रत करती हैं। इस दिन वट वृक्ष की पूजा के साथ-साथ सावित्री सत्यवान की पौराणिक कथा को भी सुना जाता है। पौराणिक मान्यता के अनुसार, कहा जाता है कि सावित्री ने वट वृक्ष के नीचे ही अपने मृत पति सत्यवान को जीवित किया था। इसलिए इस व्रत का नाम वट सावित्री पड़ा।

व्रत कथा

पौराणिक कथा के अनुसार, अश्वपति नाम का एक राजा था। राजा के घर कन्या के रूप में सावित्री का जन्म हुआ। जब वह विवाह योग्य हुई तो राजा ने अपने मंत्री के साथ सावित्री को अपना पति चुनने के लिए भेज दिया। सावित्री ने अपने मन के अनुकूल वर सत्यवान को चुन लिया। सत्यवान महाराज द्युमत्सेन का पुत्र थे जिनका राज्य हर लिया गया था और वो अंधे हो गए थे।वो अपनी पत्नी सहित वनों में रहते थे। वहीं जब सावित्री विवाह करके लौटीं तो नारद जी ने अश्वपति को बधाई दी। साथ ही नारदमुनि ने भविष्यवाणी करते हुए यह कहा कि सत्यवान अल्पायु के हैं। उनकी जल्द ही मृत्यु हो जाएगी। नारदजी की बात सुनकर राजा अश्वपति का चेहरा मुरझा गया। उन्होंने सावित्री से किसी अन्य को अपना पति चुनने की सलाह दी, परंतु सावित्री ने उत्तर दिया कि आर्य कन्या होने के नाते जब मैं सत्यवान का वरण कर चुकी हूं तो अब वे चाहे अल्पायु हो या दीर्घायु, मैं किसी अन्य को अपने हृदय में स्थान नहीं दे सकती।

सावित्री ने नारदजी से सत्यवान की मृत्यु का समय ज्ञात कर लिया। नारदजी द्वारा बताये हुए दिन से तीन दिन पूर्व से ही सावित्री ने उपवास शुरू कर दिया। नारदजी द्वारा निश्चित तिथि को जब सत्यवान लकड़ी काटने जंगल के लिए चले तो सास−ससुर से आज्ञा लेकर वह भी सत्यवान के साथ चल दी। सत्यवान जंगल में पहुंचकर लकड़ी काटने के लिए वृक्ष पर चढ़ा। वृक्ष पर चढ़ने के बाद उसके सिर में भयंकर पीड़ा होने लगी। वह नीचे उतरा। सावित्री ने उसे बरगद के पेड़ के नीचे लिटा कर उसका सिर अपनी जांघ पर रख लिया।

देखते ही देखते यमराज ने ब्रह्माजी के विधान की रूपरेखा सावित्री के सामने स्पष्ट की और सत्यवान के प्राणों को लेकर चल दिये। 'कहीं−कहीं ऐसा भी उल्लेख मिलता है कि वट वृक्ष के नीचे लेटे हुए सत्यवान को सर्प ने डंस लिया था।सावित्री सत्यवान को वट वृक्ष के नीचे ही लिटाकर यमराज के पीछे−पीछे चल दी। पीछे आती हुई सावित्री को यमराज ने उसे लौट जाने का आदेश दिया। इस पर वह बोली महाराज जहां पति वहीं पत्नी। यही धर्म है, यही मर्यादा है।

सावित्री की धर्म निष्ठा से प्रसन्न होकर यमराज बोले कि पति के प्राणों के अतिरिक्त कुछ भी मांग लो। सावित्री ने यमराज से सास−श्वसुर के आंखों की ज्योति और दीर्घायु मांगी। यमराज तथास्तु कहकर आगे बढ़ गए। सावित्री यमराज का पीछा करती रही। यमराज ने अपने पीछे आती सावित्री से वापस लौट जाने को कहा तो सावित्री बोली कि पति के बिना नारी के जीवन की कोई सार्थकता नहीं। यमराज ने सावित्री के पति व्रत धर्म से खुश होकर पुनः वरदान मांगने के लिए कहा। इस बार उसने अपने ससुर का राज्य वापस दिलाने की प्रार्थना की।

तथास्तु कहकर यमराज आगे चल दिये। सावित्री अब भी यमराज के पीछे चलती रही। इस बार सावित्री ने यमराज से सौ पुत्रों की मां बनने का वरदान मांगा। तथास्तु कहकर जब यमराज आगे बढ़े तो सावित्री बोली आपने मुझे सौ पुत्रों का वरदान दिया है, पर पति के बिना मैं मां किस प्रकार बन सकती हूं। अपना यह तीसरा वरदान पूरा कीजिए।

सावित्री की धर्मिनष्ठा, ज्ञान, विवेक तथा पतिव्रत धर्म की बात जानकर यमराज ने सत्यवान के प्राणों को अपने पाश से स्वतंत्र कर दिया। सावित्री सत्यवान के प्राण को लेकर वट वृक्ष के नीचे पहुंची जहां सत्यवान का मृत शरीर रखा था। सावित्री ने वट वृक्ष की परिक्रमा की तो सत्यवान जीवित हो उठा। प्रसन्नचित सावित्री अपने सास−ससुर के पास पहुंची तो उन्हें नेत्र ज्योति प्राप्त हो गई। 


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