धुएं में उड़ती नहीं, धुएं से बढ़ रही फिक्र
- सीओपीडी के मरीजों की बढ़ रही संख्या सांस की नलिकाओं में हो रही रुकावट - एसएन के टीबी एंड चेस्ट डिपार्टमेंट की स्टडी में प्रारंभिक नतीजों में 35 फीसद नॉन स्मोकर्स
आगरा, अजय दुबे। मैं जिंदगी का साथ निभाता चला गया / हर फिक्र को धुएं में उड़ाता चला गया ..। 1961 में आयी फिल्म 'हम दोनों' का यह गीत गुनगुनाते हुए बेफिक्री की चादर तानकर सोने वालों के लिए यह खबर फिक्र बढ़ाने वाली है। धुआं चाहे सिगरेट का हो, वाहनों का या चूल्हे का, सेहत के लिए काल बन रहा है। धुएं से सांस की नलिकाओं में रुकावट होने लगी है। हाल यह है कि बुढ़ापे की बीमारी समझी जाने वाली क्रॉनिक ऑब्सट्रेक्टिव पल्मोनरी डिजीज (सीओपीडी) अब 35 की उम्र में ही सेहत पर हमला बोल रही है। इसके मरीजों को सांस लेने में परेशानी होने लगती है, तबीयत बिगड़ने पर कृत्रिम ऑक्सीजन देनी पड़ रही है।
एसएन मेडिकल कॉलेज के टीबी एंड चेस्ट डिपार्टमेंट में इसी साल सीओपीडी पर स्टडी शुरू की गई है। आमतौर पर यह बीमारी धूमपान करने से होती है। कई सालों तक सिगरेट और बीड़ी पीने से सांस की नलिकाओं में रुकावट और सूजन आने लगती है। मौसम बदलने पर सांस उखड़ने लगती है। पिछले कुछ सालों में वायु प्रदूषण का स्तर बढ़ने से धूमपान न करने वाले लोगों को भी यह समस्या हो रही है।
एसएन की स्टडी में छह महीने में 400 मरीजों पर अध्ययन किया गया। इसमें से 35 फीसद धूमपान का सेवन नहीं (नॉन स्मोकर्स) करते, लेकिन ये सीओपीडी के शिकार हो रहे हैं। इसमें महिलाओं की संख्या भी बढ़ रही है। माना जा रहा है कि ग्रामीण क्षेत्र में लकड़ी व उपले वाले चूल्हों के इस्तेमाल से महिलाएं सीओपीडी की शिकार हो रही हैं।
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नॉन स्मोकर्स के इलाज में समस्या
नॉन स्मोकर्स सीओपीडी के मरीजों के इलाज में समस्या आ रही है। मौसम बदलने पर ये मरीज सिर्फ दवाओं से ठीक नहीं हो रहे हैं। इन्हें ऑक्सीजन पर रखना पड़ रहा है।
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क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज
एसएन के टीबी एंड चेस्ट डिपार्टमेंट में
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ये है हाल
- 150 से 200 तक मरीज रोजाना पहुंच रहे एसएन के टीबी एंड चेस्ट डिपार्टमेंट की ओपीडी में
- 15 से 20 फीसद तक ओपीडी में पहुंचने वाले मरीज सीओपीडी के शिकार
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टीबी एंड चेस्ट डिपार्टमेंट आने वाले सीओपीडी के मरीजों की हिस्ट्री ली जा रही है। स्टडी के प्रारंभिक रिजल्ट में 35 फीसद मरीज नॉन स्मोकर्स मिले हैं, इसमें 35 से 50 साल के मरीज हैं। इसमें ग्रामीण क्षेत्र की महिलाओं की संख्या 20 फीसद है।
-डॉ. जीवी सिंह, टीबी एंड चेस्ट डिपार्टमेंट, एसएन मेडिकल कॉलेज