श्रद्धा के समंदर में उठने लगा भक्ति का तूफान, उमस को भी भक्त दे रहे मात Agra News
गिरिराजजी के जयकारे के साथ उमडऩे लगे भक्त। रोशनी से चकाचौंध हुआ मेला क्षेत्र। 16 जुलाई तक है आयोजन।
आगरा, जेएनएन। श्रद्धा के समंदर में मचलती विश्वास की लहरें धीमे धीमे भक्ति के तूफान में परिवर्तित होने लगी हैं। जातिवाद का भेदभाव मिटाती गोवर्धन की धरा विभिन्न संस्कृति और भाषाओं का अदभुत संगम बन रही है। गिरिराज प्रभु के प्रति अटूट विश्वास की डोर में बंधे भक्त खिंचे चले आ रहे हैं और कारवां बनने लगा है। तेजी के साथ यह मेला विराट रूप लेता जा रहा है। 21 किमी में फैले विशाल पर्वतराज की परिक्रमा करने देश ही नहीं अपितु विदेश से भी श्रद्धालु आते हैं।
शुक्रवार को एकादशी पर गिरिराज प्रभु की नगरी में श्रद्धालु बड़ी संख्या में पहुंचे थे। इसी के साथ मेला लगातार विराट रूप लेने लगा। शनिवार सुबह से भी आस्था का सैलाब विगत दिवस की भांति ही हिलोरे मार रहा है। गर्मी, उमस और आग उगलते सूर्य का हठ भक्तों के विश्वास से हारने लगा है। भक्तों की पदचाप थमने का नाम नहीं ले रही। शाम होते ही परिक्रमा करने वालों का रेला एकदम से बढ़ेगा। परिक्रमा करने वालों में हर आयु वर्ग के लोग हैं। चारों दिशाओं से गोवर्धन की तरफ बढ़ते श्रद्धालुओं का जोश और उत्साह गिरिराज प्रभु के प्रति उनके विश्वास की कहानी कह रहा है। शुक्रवार की शाम होते ही भक्त मोतियों से बिखरने लगे और आधी रात तक मानव माला में परिवर्तित हो गए। मुडिय़ा मेला का पहला दिन व्यावस्थाओं के नाम सामान्य रहा, परिक्रमा मार्ग में सफाई दिखी। गिरिवर निकुंज पर परिक्रमार्थियों के लिए एकादशी का प्रसाद वितरण हुआ। करीब चार बजे सात सीटर हैलीकॉप्टर सेवा शुरू हुई। जिसका किराया तीन हजार रूपए रखा गया। पूर्णिमा मेला में आने वाले श्रद्धालु परिक्रमा लगाकर नंदगांव, बरसाना, कृष्ण जन्मभूमि मथुरा, वृंदावन, गोकुल, महावन के मंदिरों में प्रभु के दर्शनों को भी पहुंच रहे हैं।
सुबह की बेला
दुग्धाभिषेक को लगी लंबी कतार
गोवर्धन में मेला के पहले दिन एकादशी होने के कारण गोवर्धन के प्रसिद्ध दानघाटी मंदिर, हर गोकुल मंदिर, मुकुट मुखारविंद मंदिर, जतीपुरा मुखारविंद मंदिर में गिरिराज प्रभु का दुग्धाभिषेक करने के लिए भक्तों की लंबी कतार लगी रही। कई भक्त तो दूध के मानकों के प्रति इतने संवेदनशील नजर आए कि उन्होंने दूध की बजाय पैसे चढ़ा दिए। मंदिरों में झिलमिलाती रोशनी और पुष्प महल का सौंदर्य बरबस ही श्रद्धालुओं को आकर्षित कर रुकने को मजबूर कर रहा है। भक्तों की अधिकता के कारण गिरिराज प्रभु भी देर रात तक जागने के बाद सुबह जल्दी उठ गए। पंचामृत अभिषेक को प्रभु सुबह करीब चार बजे तैयार हो गए। सुबह दूध की धार एक बार शुरू हुई तो दोपहर करीब दो बजे श्रृंगार के समय तक अनवरत बनी रही। दुग्धाभिषेक के अलौकिक दर्शन भक्तों को लुभाते रहे।
शाम की बेला
राजसी ठाठ में बिराजे प्रभु
दोपहर में प्रभु को प्रसाद समर्पित कर शयन करा दिया गया। इसके बाद प्रभु का मनमोहक श्रृंगार भक्तों को आनंदित करता रहा। कस्तूरी तिलक से सुसज्जित मस्तक, कजरारे नयन, ठोड़ी पर हीरा, लकुटि, कांवरिया, गले में बैजयंती माला, रंग बिरंगी पोशाक पर जवाहरात के आभूषण पहने प्रभु पुष्प महल में विराजमान हो गए, मानो भक्तों की झोली भरने को गिरिराज प्रभु दरबार लगाए बैठे हैं। शाम से लेकर देर रात तक दर्शन करने वालों की कतार लगी रही।