कान्हा की धरती पर आस्था का समुंद्र, जानिए कैसे दुनिया की पूर्णिमा ब्रज की मुडि़या बनी Agra News
गोवर्धन परिक्रमा के लिए लाखों भक्त पहुंच रहे गिरिराज जी धाम। पांच दिनों तक उमड़ेगा आस्था का सैलाब।
आगरा, जेएनएन। ब्रज की रज, जितनी पावन उतनी ही भक्ति से पूरिपूर्ण। जो एक बार इस रज को चूम ले तो बार बार बस इसी धरती पर आने के लिए उतावला रहता है। भक्ति है यहां तो गुरु की शक्ति भी है यहां। तभी तो मुडि़या पूर्णिमा के लिए अभी से हजारों लाखों भक्त पहुंच रहे हैं। गिरिराज की सात कोस की परिक्रमा के लिए न उम्र का बंधन आड़े आ रहा है और न ही व्यवस्थाओं की उलझन परेशान कर रही है। तभी तो पांच दिवसीय मुडि़या पूर्णिमा आयोजन के लिए जनसमुंद्र उमड़ना आज से शुरु हो गया है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि दुनियाभर की गुरु पूर्णिमा मथुरा में मुडिय़ा क्याें हो गई।
दरअसल देश में व्यास पूर्णिमा और गुरु पूर्णिमा के नाम से विख्यात आषाढ़ शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा ब्रज में मुडिय़ा पूर्णिमा या पूनौ के नाम से विख्यात है। परिक्रमा की शुरूआत वृंदावन के साधक सनातन गोस्वामी के तिरोभाव के साथ हुई। ब्रज से जुड़ी पांडुलिपियों में उल्लेख है कि ठा. मदन मोहन के साधक एवं चैतन्य महाप्रभु के अनुयायी सनातन गोस्वामी प्रतिदिन आराध्य की सेवा पूजाकर गिरिराजजी की परिक्रमा करने जाते थे। जीवन के अंतिम पड़ाव में जब परिक्रमा करने में सक्षम न रहे सनातन को भगवान ने दर्शन देकर गिरिराज शिला प्रदान की और कहा कि वह उसी शिला की परिक्रमा करेंगे तो गिरिराज परिक्रमा का पुण्य मिलेगा।
राधा दामोदर मंदिर में यह शिला आज भी विद्यमान है। इसके बाद जब सनातन गोस्वामी का तिरोभाव हुआ तो उनके शिष्यों ने मुंडन कराकर सनातन गोस्वामी के पार्थिव शरीर को गिरिराज परिक्रमा हरिनाम संकीर्तन करते हुए कराई। उनके अनुयायी हर साल गुरु पूर्णिमा के दिन गिरिराज परिक्रमा संकीर्तन करते हुए करते हैं। बाद में इस पूर्णिमा का नाम मुडिय़ा पूर्णिमा पड़ गया। अब इसका स्वरूप बदल गया है। वृंदावन से मुडिय़ा संत अब गोवर्धन नहीं जाते, बल्कि गोवर्धन के ही गौडिय़ा संत मुंडन कराकर परंपरा का निर्वहन कर रहे हैंं।
धियो-धियो उत्सव नाम का भी है प्रचलन
सनातन गोस्वामी की तिरोभाव तिथि लोक परंपरा में धियो-धियो के नाम से भी प्रचलित है। ग्रंथों में तथा ब्रिटिश कलक्टर एफएस ग्राउस ने सनातन गोस्वामी जी की स्मृति में होने वाले इस उत्सव के बारे में अपनी पुस्तक में उल्लेख किया है।
लोक परंपरा में उपजा धियो-धियो और मुडिय़ा शब्द
वृंदावन शोध संस्थान के डॉ. राजेश शर्मा कहते हैं कि गौड़ीय भक्तों की कीर्तन शैली की अपनी विशेषता है। कीर्तन के मध्य होने वाले सूचक गान संग मृदंग की थाप से निकलने वाली धी..तथा ओ.. की ध्वनि ने इस मनोरथ को धीओ-धीओ नाम दिया, तो गुरु की स्मृति में मुंडन कराने पर मुडिय़ा पूनौ के नाम प्रचलित हुआ। विसं 1900 में वृंदावन निवासी गोपाल राय ने पांडुलिपि 'वृंदावन धामानुरागावली में लिखा है कि सनातन गोस्वामी की तिरोभाव तिथि पर मदन मोहन घेरे में बड़ी संख्या में संत, महंत एवं श्रद्धालु एकत्र होते थे, जो गिरिराज की परिक्रमा करने जाते और गाते थे -
व्यास पूनौ के दिन, यक धियो-धियो होई।
कहत सनातन कौ उत्सव तिहि जुरत सदा सब कोई।।
संत-महंत विरक्त सेवक, तहां हजारन जैमें।
कीर्तन ब्रजन नृत्य करि, विकल होत सदा यह नैमें।।
(अप्रकाशित पांडुलिपि-वृंदावन धामानुरागावली)
इतिहास के पन्नों में दानघाटी मंदिर
इस मंदिर की नींव 1957 में रखी गई। तब यहां रात का अंधेरा दूर करने के लिए एक लालटेन लटकी रहती थी। आज यह रोशनी में सराबोर विशाल मंदिर है। करीब चार दशक पूर्व प्रभु पर चुङ्क्षनदा पोशाक थीं। इस दर्शन में बदलाव आया और 1998 में मंदिर की मीनार पर स्वर्ण कलश और स्वर्ण ध्वज लगा दिया गया। साल 2003 में चांदी के बने दरवाजे पर नक्काशी की गई। साल 2005 में 51 किलो चांदी का छत्र और साल 2013 से चांदी के सिंहासन पर प्रभु विराजमान होकर दर्शन देने लगे। मान्यता है कि ब्रज गोपियां इसी रास्ते से मथुरा के राजा कंस को माखन का कर चुकाने जाती थीं। कन्हैया ग्वाल बाल के साथ माखन और दही का दान लेते थे। कान्हा की दान लीला मनुहार, प्रेम और खींचातानी में अनूठी भावमयी लीला है। दानकेलि कौमुदी ग्रंथ में लीला का वर्णन है। प्रभु की इस लीला के कारण ही इस स्थली को दानघाटी के नाम से पुकारा गया।
गिरिराजजी का श्रृंगार और सेवा
सेवायत पवन कौशिक दान लीला की कल्पना को सेवाभाव से साकार करने का प्रयास करते हैं। प्रभु को माखन और दही की याद न सताए, इसलिए प्रभु को रोजाना सुबह दूध, दही, शहद से पंचामृत अभिषेक कराया जा रहा है। प्रभु के बालभोग में माखन मिश्री, मीठा दूध का रोजाना भोग लगाया जा रहा है। दोपहर में प्रभु को आभूषण युक्त पोशाक धारण कराई जा रही है।
सुरक्षा व्यवस्था हुई चाक चौबंद
आज से शुरु होने जा रहे है पांच दिवसीय मुडिय़ा पूर्णिमा मेला के लिए गिरिराजजी महाराज धाम की तलहटी सज चुकी है। सुरक्षाकर्मियों ने नाकाबंदी कर ली है। सुपर जोनल, जोनल और सेक्टर मजिस्ट्रेटों ने टीम के साथ डेरा डाल लिया है। राजकीय मुडिय़ा मेला में पांच दिन तक गिरिराजजी की सात कोस की परिक्रमा लगाने के लिए लाखों परिक्रमार्थी देशभर से पहुंच रहे हैं। अंतिम तीन दिनों में यहां मानव शृंखला बन जाएंगी। कई सालों से यही सिलसिला चला आ रहा है। इसके लिए गिरिराजजी धाम पूरी तरह से तैयार है। परिक्रमार्थियों की सेवा के लिए लोगों ने परिक्रमा मार्ग में प्याऊ और भंडारे के लिए अपने तंबू डेरा तान दिए हैं। दानघाटी मंदिर, मुकुट मुखारविंद मंदिर, लक्ष्मी नारायण मंदिर, हर गोकुल मंदिर और जतीपुरा मुखारविंद को आकर्षक रंग-बिरंगी लाइट से सजाया गया है।
इससे पूर्व गुरुवार को बड़ी परिक्रमा मार्ग स्थित विनोद गार्डन में आइजी ए सतीश गणेश ने पुलिस फोर्स को ब्रीफ करते हुए कहा कि सुरक्षा व्यवस्था में कहीं कोई चूक नहीं होनी चहिए।
आइजी ने दिए निर्देश
- श्रद्धा के साथ श्रद्धालु का विश्वास रखे कायम
- श्रद्धालु के साथ अ'छा व्यवहार किया जाए
- बुजुर्ग, ब'चे, महिला और दिव्यांगों की करें मदद
- आपातकाल स्थिति से निपटने के लिए रहें तैयार
- कोई भी अप्रिय घटना न घटने दे और सतर्कता बरतें
- यातायात व्यवस्थाओं को लगातार सामान्य बनाए रखें
-सरकारी और प्राइवेट चिकित्सक को किया गया अलर्ट
- असमाजिक तत्वों के साथ सख्ती से निपटा जाए
-आपात काल में कंट्रोल रूम के नंबर 9454457987 पर संपर्क करें
वाट्सएप मिलाएगा बिछुड़ों को
- आइजी ए सतीश गणेश ने बताया कि इस बार अपनों से बिछुड़ों को मिलाने में पुलिस का वाट््सएप ग्रुप मददगार साबित होगा। मेला में तैनात कर्मियों के फोन पर बिछुड़ों का फोटो और डिटेल उपलब्ध रहेगी।
मेला में इनका भी रखें ख्याल
- भीड़ की अधिकता के कारण परिक्रमा की शुरुआत दंडवती से न करें
- संदिग्ध वस्तुओं को न छुएं
- परिक्रमा मार्ग में किसी भी तरह का वाहन प्रतिबंधित
- बीपी के मरीज धीमी चाल से चलें
- ढीले सूती वस्त्र पहन परिक्रमा लगाने से राहत मिलेगी
- मेले आभूषण पहनकर न आएं
- मंदिर में मोबाइल और पर्स संभाल कर रखें
- बीमार व्यक्ति दवा साथ लेकर चले
- बच्चों की जेब में नाम, पता फोन नंबर की पर्ची रखें
श्रद्धालुओं के लिए मुश्किल भरा आस्था का सफर
चकलेश्वर मंदिर के प्रवेश द्वार पर लगी लाइट खराब है। नाली पर रखे पत्थर टूट गए हैं तथा पीपल का सूखा पेड़ गिरने से एक संत के बैठने का स्थान क्षतिग्रस्त हो गया है। बड़ी परिक्रमा मार्ग में जलभराव अभी भी समस्या बन हुआ है। गंदगी और बेसहारा पशुओं के परिक्रमा मार्ग में न घूमने के दावों की भी पोल खुल रही है।
गुरुवार को चकलेश्वर मंदिर पर लगा पीपल का पेड़ समीप बनी संत की बैठक पर गिर गया। गनीमत रही कि रात में गिरने के कारण किसी प्रकार की हानि नहीं हुई। चकलेश्वर मार्ग के प्रवेश द्वार पर लगी लाइट खराब है। आन्यौर में संकर्षण कुंड के समीप सड़क पर जलभराव है। चरणामृत कुंड के समीप विचरण करते खुले में घूमते जानवर भक्ति मार्ग में गंदगी फैला रहे हैं।
स्थानीय जय मुखिया ने बताया कि चकलेश्वर मंदिर से होकर मुडिय़ा शोभायात्रा निकलती है, इसके बावजूद यहां सुविधाओं का अभाव है। सड़क क्षतिग्रस्त है। मल्लो बहन ने बताया कि मुडिय़ा पूर्णिमा मेला में यह क्षेत्र विकास से अछूता रहता है।
भक्ति की राह में सेवा के पुष्प
तमाम भक्तों ने परिक्रमा मार्ग में सेवा के पुष्प बिछा रखे हैं। खेड़ी करौली से आए मनीष और मान ङ्क्षसह ने बताया कि परिक्रमार्थियों के लिए पकोड़े, बूंदी, हलवा का प्रबंध किया गया है। करीब सात दर्जन प्याऊ श्रद्धालुओं की प्यास बुझा रही है।
भंडारा तो खाएं, लेकिन थोड़ा रुककर
जिला खाद्य सुरक्षा अधिकारी नागेंद्र सिंह ने बताया कि परिक्रमा के दौरान अचानक भंडारे का प्रसाद खाने से तबियत बिगड़ सकती है। उन्होंने श्रद्धालुओं से अपील की कि भंडारा स्थल पर कुछ देर आराम करें, फिर थोड़ा पेय पदार्थ लें। इसके बाद भंडारे का प्रसाद खाएं।