जानिए क्या था मोगली का सिकंदरा से नाता, डायना शिंचर से मोगली बनने की पूरी कहानी Agra News
सन 1867 में अंग्रेज शिकारियों को भेडि़यों का दूध पीता दिखा था बच्चा। अंग्रेजों ने 36 साल तक सिखाई थी इंसानी तहजीब।
आगरा, ऋषि दीक्षित। रुडयार्ड किपलिंग की विश्व प्रसिद्ध जंगल बुक का हीरो 'मोगली' कोई काल्पनिक पात्र नहीं था। हकीकत में वह आगरा के जंगलों में भेडिय़ों के साथ विचरण करता था। अंग्र्रेज शिकारियों ने उसे सन् 1967 में पकड़ा था और अकबर के मकबरे में कैद कर दिया था। अंग्र्रेजों ने उसे 'डायना शिंचर' नाम दिया और मानवता के खांचे में ढालने के बहुत प्रयास किए, लेकिन मरते दम तक वह अपना बचपन नहीं भुला पाया।
अकबर के मकबरे सिकंदरा के उद्यानों में आज सिर्फ हिरणों की धमाचौकड़ी दिखाई देती है। इससे पहले यहां लंगूर भी बड़ी संख्या में उछल-कूद करते देखे जाते थे, लेकिन अब वे नहीं रहे। खास बात ये है कि वन्य जीवों के लिए सिकंदरा का जंगल शुरू से ही महफूज रहा है। अंग्रेजी हुकूमत में सिंकदरा के आसपास बेहद घना जंगल था। इसमें दिन में भी जाना खतरे से खाली नहीं था। शहर से अंग्रेजी अधिकारी शिकार खेलने के लिए सिकंदरा के जंगल में आते थे। वे यहां अकबर के मकबरे में और उसके आसपास ही शिकार करते थे।
सन 1867 में एक दिन अंग्रेज शिकारियों को भेडिय़ों के झुंड में करीब 6 वर्षीय बालक दिखाई दिया जो मादा भेडिय़ा का दूध पी रहा था। अंग्रेज शिकारियों ने कई दिनों तक उसकी गतिविधियों पर नजर रखी और देखा कि वह बालक भेडिय़ों की तरह ही चलता और गुर्राता है, कच्चा मांस खाता है और भेडिय़ों के झुंड में ही रहता है। अंग्रेज शिकारियों ने जब उस बालक को पकडऩा चाहा तो मादा भेडिय़ा आक्रामक हो गई। शिकारियों ने बालक को छुड़ाने के लिए मादा भेडिय़ा को गोली मार दी, जिससे उसकी मौत हो गई। मादा भेडिय़ा की मौत और गोली की आवाज के बाद भेडिय़ों का झुंड तितर-बितर हो गया और अंग्रेज शिकारी स्टुअर्ट ने बालक को पकड़ लिया। भेडिय़ों के साथ रहकर बालक भी भेडिय़ों जैसा व्यवहार सीख गया था। वह भी गुर्राता था और काटने दौड़ता था। स्टुअर्ट ने बालक को पकडऩे के बाद अंग्रेज सरकार के आला अधिकारियों को इसकी सूचना दी और बालक को अकबर के मकबरे में एक स्थान पर बंद कर दिया। सिकंदरा में मानव भेडिय़ा पकड़े जाने की बात जंगल की आग की तरह फैल गई। अंग्रेजों ने यहां इस बालक को करीब 36 साल तक रखा और उसे आदमी बनाने का भरसक प्रयास किया लेकिन उसमें बहुत ज्यादा बदलाव नहीं आया। सन 1901 में करीब 40 वर्ष की उम्र में 'डायना शिंचर' की मौत हो गई। डायना शिंचर का अंतिम संस्कार भी सिकंदरा के जंगलों में किया गया था। डायना शिंचर की मौत की खबर भी पूरे देश में फैल चुकी थी। हालांकि उस समय संचार के इतने तेज माध्यम नहीं थे, परंतु माउथ पब्लिसिटी बहुत तेज होती थी। कोई इस पर विश्वास करता था तो कोई इस तरह की बातों को कपोल-कल्पनाओं की संज्ञा देता था, लेकिन 'डायना शिंचर' की कहानी का उल्लेख राजकिशोर 'राजे' की किताब तवारीख-ए- आगरा में भी मिलता है। यही नहीं आगरा में मानव भेडिय़ा की खबरें तत्कालीन अखबारों में भी प्रमुखता से छपी थीं।
'डायना शिंचर' कैसे बना जंगल बुक का हीरो
मुंबई में जन्मे जंगल बुक के लेखक जोसफ रुडयार्ड किपलिंग इलाहाबाद से प्रकाशित होने वाले अंग्र्रेजी समाचार पत्र पायनियर में 1882 में पत्रकारिता करते थे। तब वह असिस्टेंट एडीटर थे। उस समय आगरा में मानव भेडिय़ा पकड़े जाने की खबर दूर-दूर तक लोगों में उत्सुकता पैदा कर रही थी। किपलिंग का आगरा आना-जाना लगा रहता था। वे वास्तविकता से भी वाकिफ थे और उन्होंने डायना शिंचर को अपनी आंखों से देखा भी था। यही वजह है उन्होंने अपनी पुस्तक जंगल बुक का हीरो 'डायना शिंचर' को चुना और उसको मोगली नाम दिया। उसके संरक्षक वन्य जीवों को बघीरा, बल्लू आदि नाम दिए गए। जंगल बुक पर बना कार्टून सीरियल मोगली और उसका गीत (पंचलाइन) जंगल-जंगल बात चली है पता चला है चड्डी पहन के फूल खिला है फूल खिला है आम भारतीयों की जुबान पर चढ़ गया।
माता-पिता का पता लगाने की हुई थी कोशिश
अंग्रेजों ने 'डायना शिंचर' के असली माता-पिता का पता लगाने की बहुत कोशिशें की थीं, आसपास के गांवों में डुगडुगी भी पिटवाई गई थी, लेकिन अंतत: उसके माता-पिता का पता नहीं चल सका था। गांवों में कोई इस बालक को कुदरत का करिश्मा बताता था तो कोई किसी की अवैध संतान बताता था।