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इस मां को नमन, हौसले के धागे से बुनी अपने बच्चों की किस्मत

बच्चों की परवरिश को मां ने किया हर संघर्ष। सिलाई से की जख्मों की तुरपाई बच्चों को बनाया काबिल।

By Prateek GuptaEdited By: Published: Mon, 13 May 2019 12:37 PM (IST)Updated: Mon, 13 May 2019 12:37 PM (IST)
इस मां को नमन, हौसले के धागे से बुनी अपने बच्चों की किस्मत
इस मां को नमन, हौसले के धागे से बुनी अपने बच्चों की किस्मत

आगरा, विनीत मिश्र। लेती नहीं दवाई अम्मा, जोड़े पाई-पाई अम्मा। दुख थे पर्वत राई अम्मा, हारी नहीं लड़ाई अम्मा। इस दुनिया में सब मैले हैं, किस दुनिया से आई अम्मा। कवि योगेश छिब्बर की ये लाइनें शायद मधु शर्मा के लिए ही लिखी गई हैं। पति दुनिया छोड़ गए, तो बच्चों की जिम्मेदारी सिर पर आ गई। विषम हालात में भी हार नहीं मानी। कपड़े सिले, कढ़ाई की। सिलाई के इन्हीं धागों से न केवल अपने जख्म सिले बल्कि बच्चों की किस्मत भी बुनी।

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शहर के श्रीनगर मुहल्ले में रहने वाली मधु शर्मा के पति शैलेंद्र परिवहन निगम में संविदा परिचालक थे। वर्ष 2007 में बीमारी के चलते उनका निधन हो गया। संविदा पर होने के कारण विभाग से कोई आर्थिक मदद नहीं मिली। बड़ी बेटी पूजा की शादी शैलेंद्र के सामने हो गई थी, लेकिन तीन बच्चों की परवरिश की जिम्मेदारी मधु के कंधों पर आ गई। आर्थिक हालात अच्छे नहीं थे। लेकिन मां तो आखिर मां होती है, इसी फर्ज को निभाने के लिए मधु ने हर संघर्ष किया। इंटरमीडिएट पास थीं, सिलाई का काम आता था। ऐसे में उन्होंने दूसरों के कपड़े सिलने और उनमें कढ़ाई का काम करने लगीं। परिवार की गाड़ी कुछ चली, तो भगवान के पोशाक सिलने का काम शुरू कर दिया। बच्चों को अच्छे स्कूल में पढ़ाना था, ऐसे में इस काम से इतना पैसा नहीं मिल पाता था। मधु ने इलाके के ही एक प्राइवेट स्कूल में पढ़ाना शुरू कर दिया। दिन में स्कूल में पढ़ातीं और देर रात तक सिलाई करतीं। अपने सारे गम भूल चिंता थी तो बस बच्चों की। पति के निधन के समय छोटी बेटी आरती 16 साल की थी। उससे छोटा दीपक 14 साल का और सबसे छोटा आयुष महज चार साल का। सिलाई-कढ़ाई और स्कूल में पढ़ाई से जो पैसे मिलते मधु ने उससे बच्चों को पढ़ाना शुरू किया। आरती को एमए बीएड कराने के साथ ही एमफिल कराया और उसकी शादी की। आरती का चयन हाल में ही मिलिट्री स्कूल में हुआ है। जिस बेटी पूजा की शादी कर दी थी, उसे भी बाद में इंटर के आगे पढ़ाई कर एमए, बीएड कराया। आज पूजा इंटर कॉलेज में पढ़ाती हैं। बेटा दीपक एक प्राइवेट कंपनी में नौकरी करता है तो सबसे छोटा आयुष नौवीं कक्षा में पढ़ रहा है। मधु बताती हैं मेरा लक्ष्य केवल बच्चों के लिए बेहतर करना था। ऊपर वाले ने सुनी, मेरे लिए इससे बड़ी बात कोई नहीं हो सकती। बच्चे पूजा, आरती और दीपक कहते हैं कि मेरी मां ने हर संघर्ष किया, लेकिन कभी कमी नहीं खलने दी।

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