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कोरोना वायरस लॉकडाउन ने मुझे जीवन के बारे में क्या सिखाया

कोरोना वायरस के बारे में हम सब पढ़ रहे थे लेकिन उसका हम सबकी ज़िदगी पर ऐसा असर होगा यह शायद किसी ने नहीं सोचा था।

By Harshit HarshEdited By: Published: Fri, 19 Jun 2020 08:23 PM (IST)Updated: Sat, 27 Jun 2020 03:57 PM (IST)
कोरोना वायरस लॉकडाउन ने मुझे जीवन के बारे में क्या सिखाया
कोरोना वायरस लॉकडाउन ने मुझे जीवन के बारे में क्या सिखाया

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ब्रांड डेस्क। मैंने मुंबई में नौकरी इसीलिए ली थी कि कानपुर की संकरी गलियों से निकल कर खुले आसमान में सांस ले सकूं, लेकिन नौकरी बहुत बड़ी नहीं थी, इसीलिए घर छोटा था और आसमान की जगह घर की खिड़की से सामने वाले की दीवार दिखती थी, पर मैं खुश था। इतना तो मैं कमा ही लेता था कि खुद को संभाल सकूं और बाकी पैसे घर भेज देता था। पर मुंबई फुर्ती वाला शहर है और इसमें जो जितना तेज़ भागे उतना रेस में आगे,और इसी भाग दौड़ में मैं दो साल से घर नहीं गया था। सच बोलूं तो घर ना जा पाने का कोई ग़म भी नहीं था, क्योंकि माँ- बाबूजी का ध्यान तो मैं पैसे भेजकर रख ही रहा था, और हफ्ते में दो बार फोन पर बात भी हो जाती थी।

और फिर 24 मार्च को सब कुछ बदल गया।

कोरोना वायरस के बारे में हम सब पढ़ रहे थे, लेकिन उसका हम सबकी ज़िदगी पर ऐसा असर होगा, यह शायद किसी ने नहीं सोचा था। अगले ही दिन माँ का फोन आया और उन्होंने कहा कि मैं घर वापस आ जाऊं। लेकिन मैंने उनको धीरज बांधते हुए कहा कि पंद्रह के लॉकडाउन में चौदह दिन आइसोलेशन में बिताने पड़ेंगे, तो क्या फायदा ट्रेवल करने का। माँ को टेंशन इस बात की थी कि मैं अकेले कैसे रहूँगा और खाना क्या खाऊंगा। माँ बहुत मुश्किल से मानीं जब मैंने कहा कि मैं उन्हें रोज़ फ़ोन करूँगा और अपने खाने की सारी जानकारी दूंगा।

पहले कुछ दिन तो लॉकडाउन के आसानी से कट गए। लेकिन धीरे-धीरे पूरा दिन अकेले रहकर दिल में निराशा घर करने लगी। पहली बार ऐसा लगा जैसे माँ बाबूजी से बहुत दूर कहीं आ गया था मैं, और फिर एक-एक करके मुश्किलें घेरने लगीं। लेकिन जब एक दरवाज़ा बंद होता है, तो दो और खुलते हैं। यह कहानी उस सबसे बड़े सबक के बारे में है, जो मैंने लॉकडाउन के दौरान सीखा।

4 सबसे बड़े सबक जो मैंने लॉकडाउन के दौरान सीखे।

हमारे माता-पिता हमारे बिना भी रह सकते हैं: हाँ जी! बिल्कुल ठीक पढ़ा आपने। वो हमारे बिना अपने सारे काम कर सकते हैं, लेकिन अगर उनका हाथ हमारे सर से हट गया, तो हमारा क्या होगा पता नहीं। लॉकडाउन के दौरान मेरी माँ ने मुझे रोज़ वीडियो कॉल पर खाना बनाना सिखाया, और बाबूजी और मैं फिर से चेस खेलने लगे। वो सारी चीज़ें, जो मैं भूल गया था, वापस आ गयीं। अपने माता पिता की सिखाई चीज़ों के बिना हमारी शख्सियत क्या है? फिर क्यों हम काम का बहाना बनाकर उनको अकेला छोड़ देते हैं? और उनको चाहिए भी कितना कम। लॉकडाउन के दौरान जब मैंने अपनी माँ के लिए जोमैटो से खाना ऑर्डर किया, तो वो इतना खुश हुईं कि सबको उसके बारे में बताया। ऐसे ख़ुशी के पल फिर हम उन्हें क्यों न दें?

दूसरों की मदद दूसरों के लिए मत करो: दूसरों की मदद अपने लिए करें। एक चीनी मुहावरा है कि 'यदि आप एक घंटे के लिए खुशी चाहते हैं, तो झपकी लें। यदि आप एक दिन के लिए खुशी चाहते हैं, तो मछली पकड़ने जाएं। यदि आप एक साल के लिए खुशी चाहते हैं, तो विरासत में मिला पैसा खर्च करें। लेकिन यदि आप जीवन भर के लिए खुशी चाहते हैं, तो किसी की मदद करें। इस लॉकडाउन में मुझे इस बात का सच पता चला। एक दिन मेरे सिक्योरिटी गार्ड ने मुझे फ़ोन पर बात करते देख पूछा कि मैंने रीचार्ज कैसे किया, क्योंकि सारी दुकानें तो बंद हैं। मैंने उसे ऑनलाइन रीचार्ज के बारे में बताया। वो निराश हो गया कि उसके सस्ते फ़ोन पर तो ऑनलाइन रीचार्ज नहीं होगा। उसी रात मैंने यह एयरटेल की फिल्म देखी और सोचा कि मैं ही क्यों नहीं उसका रीचार्ज कर देता।

आखिरकार Airtel ने भी तो Help SMS व Airtel's Superhero नाम से कैंपेन चलाया, जहां उन्होंने लोगों से अपील की कि इस मुश्किल समय में Airtel Thanks app के जरिए जरूरतमंदों का फोन रिचार्ज करके उनकी मदद करें। तो अगले दिन मैंने यही किया। उस सिक्योरिटी गार्ड ने सबसे पहला फ़ोन पुणे में पढ़ रही अपनी बेटी को किया और बात करते-करते उसकी आँखों में आंसू आ गए। फिर मैंने और कई लोगों के लिए भी रिचार्ज किया, पर हर बार उनसे ज़्यादा ख़ुशी मुझे हुई, क्योंकि मुझे पहली बार लगा कि मैं एक समुदाय का हिस्सा हूँ। मैं आप सब से अपील करूंगा कि जैसे भी आपसे हो सके, दूसरों की मदद करें।

हम दूसरों को खुश रखने के लिए कितना पैसा खर्च करते हैं: आपने ठीक पढ़ा, लेकिन गलत समझा। लॉकडाउन के दौरान मुझे ये ज्ञात हुआ कि हम कितनी चीज़ें यह सोच के खरीदते हैं कि बाकी लोग क्या सोचेंगे। जैसे जब मैंने पिछले साल कार खरीदी थी तो मैंने अपने बजट से ऊपर की कार खरीदी, क्योंकि ऑफिस में लोग क्या कहेंगे और अब वो गाडी खड़ी है और किसी को उसके खड़े होने से फर्क नहीं पड़ता सिवाए मेरे, क्योंकि EMI मुझे देनी है। इसी तरह हम कितनी बार यह सोच के कपडे, घर का सामान, या खाने की जगह चुनते हैं, जिससे लोग हमारे बारे में अच्छा सोचें,लेकिन असल में इन चीज़ों से सिर्फ पैसा पानी की तरह बहता है और कुछ भी हासिल नहीं होता। मन को शान्ति अंदर से मिलती है, पैसा खर्च करके नहीं।

स्थिरता की उम्मीद बेवजह है: लॉकडाउन ने मुझे सिखाया कि जीवन में जो कुछ भी स्थिर है वह बदल सकता है। आज हमारे पास पैसा है, कल हो सकता है न हों। कल तक हम बाहर आज़ाद घूम सकते थे और आज दरवाज़े पर कोई आ जाये तो डर लगता है और इसीलिए इस उतार-चढ़ाव के बारे में हम जितना कम सोचें उतना अच्छा, और अपनी ख़ुशी हमें भौतिक चीजों पर नहीं बाँधनी चाहिए। कल क्या होगा मुझे नहीं मालूम, लेकिन मैं यह मानता हूं कि जीवन अभी भी एक सुंदर यात्रा है, और इसलिए मैं इस उम्मीद को बांधना पसंद करता हूं कि कल बेहतर होगा। और जब यह सब खत्म हो जाएगा, तो मैं अपने परिवार और दोस्तों से मिलूंगा, और हम सब कहीं घूमने जाएंगे। स्थिरता की जगह मैं एक नई मंज़िल की तलाश में, इस जीवन रूपी यात्रा का आनंद लेना चाहता हूं, अपने परिवार के साथ, अपनी गति पर, अपनी सोच से। और आप सब के लिए भी मैं यही उम्मीद करता हूँ।

Note - This is Brand Desk content. 


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