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Valmiki Jayanti 2021: आज है वाल्‍मीकि जयंती, जानें सही ​तिथि, पूजा मुहूर्त एवं महत्व

Valmiki Jayanti 2021 संस्कृत के आदिकवि महर्षि वाल्‍मीकि जी हैं। उनका जन्म आश्विन पूर्णिमा को हुआ था। हर वर्ष आश्विन पूर्णिमा के दिन वाल्‍मीकि जयंती मनाई जाती है। इस दिन मंदिरों ने महर्षि वाल्‍मीकि की विशेष पूजा की जाती है और जगत के कल्याण की कामना की जाती है।

By Kartikey TiwariEdited By: Published: Mon, 18 Oct 2021 10:49 AM (IST)Updated: Wed, 20 Oct 2021 06:55 AM (IST)
Valmiki Jayanti 2021: आज है वाल्‍मीकि जयंती, जानें सही ​तिथि, पूजा मुहूर्त एवं महत्व
Valmiki Jayanti 2021: आज है वाल्‍मीकि जयंती, जानें सही ​तिथि, पूजा मुहूर्त एवं महत्व

Valmiki Jayanti 2021: संस्कृत के आदिकवि महर्षि वाल्‍मीकि जी हैं। उनका जन्म आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को हुआ था। हर वर्ष आश्विन पूर्णिमा के दिन वाल्‍मीकि जयंती मनाई जाती है। इस दिन मंदिरों ने महर्षि वाल्‍मीकि की विशेष पूजा की जाती है और जगत के कल्याण की कामना की जाती है। महर्षि वाल्‍मीकि ने सबसे पहले संस्कृत के श्लोक की रचना की थी और उन्होंने संस्कृत रामायण महाकाव्य की भी रचना की थी, इस वजह से उनको संस्कृत के आदिकवि की उपाधि प्राप्त है। आइए जानते हैं कि इस वर्ष वाल्‍मीकि जयंती कब है, पूजा का मुहूर्त क्या है?

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वाल्‍मीकि जयंती 2021 तिथि

हिन्दू कैलेंडर के अनुसार, आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा ति​​थि का प्रारंभ 19 अक्टूबर दिन मंगलवार को शाम 07 बजकर 03 मिनट पर हुआ है। इस तिथि का समापन 20 अक्टूबर दिन बुधवार को रात 08 बजकर 26 मिनट पर होगा। उदयातिथि के अनुसार, इस वर्ष वाल्‍मीकि जयंती आज 20 अक्टूबर दिन बुधवार को मनाई जाएगी।

वाल्‍मीकि जयंती 2021 मुहूर्त

20 अक्टूबर को वाल्‍मीकि जयंती के दिन राहुकाल दोपहर 12 बजकर 06 मिनट से दोपहर 01 बजकर 31 मिनट तक है। ऐसे में आपको पूजा के लिए राहुकाल का ध्यान रखें। राहुकाल में पूजा करना वर्जित होता है। इस दिन अमृत काल दिन में 11 बजकर 27 मिनट से दोपहर 01 बजकर 10 मिनट तक है, वहीं विजय मुहूर्त दोपहर 01 बजकर 59 मिनट से दोपहर 02 बजकर 45 मिनट तक है।

वाल्‍मीकि जयंती का महत्व

महर्षि वाल्‍मीकि संस्कृत के आदिकवि यानी प्रथम कवि हैं। उन्होंने संस्कृत में महाकाव्य रामायण की रचना की, जिसमें 24000 श्लोक हैं। संस्कृत रामायण को वाल्‍मीकि रामायण भी कहा जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, एक बार महर्षि वाल्‍मीकि नदी के किनारे क्रौंच पक्षी के जोड़े को प्रेमालाप करते देख रहे थे, तभी एक बहेलिए ने नर क्रौंच पक्षी को मार दिया, जिससे मादा पक्षी विलाप करने लगी।

यह देखकर वाल्‍मीकि जी बहुत दुखी हुए। क्रोधवश उनके मुख से बहेलिए के लिए कुछ शब्द निकले, जो संस्कृत में थे।

मां निषाद प्रतिष्ठां त्वमगमः शाश्वतीः समाः।

यत्क्रौंचमिथुनादेकम् अवधीः काममोहितम् ॥

इसका अर्थ है कि तुमने प्रेमालाप करते इस क्रौंच पक्षी की हत्या की है। तुझे कभी प्रतिष्ठा नहीं मिलेगी, तुझे भी वियोग झेलना होगा। एक तरह से वाल्‍मीकि जी ने उसे श्राप दिया। उसके बाद ही वाल्‍मीकि जी ने संस्कृत रामायण की रचना की।

डिस्क्लेमर

''इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना में निहित सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्म ग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारी आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना के तहत ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी।''


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