आज इस व्रत को करके आप अपने मनवांछित फलों की प्राप्ति कर सकते है
श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के बाद यानी भाद्रपद कृष्ण एकादशी के दिन आती है 'अजा एकादशी'। इस दिन व्रत करने वाले जातक को निराहार या अल्प आहार करना चाहिए। कहते हैं इस दिन उपवास करने से लक्ष्य की तन्मयता मिलती है। इस एकादशी को जया एकादशी भी कहते हैं। इस वर्ष यह
श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के बाद यानी भाद्रपद कृष्ण एकादशी के दिन आती है 'अजा एकादशी'। इस दिन व्रत करने वाले जातक को निराहार या अल्प आहार करना चाहिए। कहते हैं इस दिन उपवास करने से लक्ष्य की तन्मयता मिलती है। इस एकादशी को जया एकादशी भी कहते हैं। इस वर्ष यह व्रत 9 सितंबर के दिन है।
अजा एकादशी अक्षय पुण्य देने वाली है। भाद्रपद मास के कृष्णपक्ष में आने वाली इस एकादशी के प्रताप से मनुष्य कायिक, वाचिक और मानसिक पाप से मुक्त हो जाता है। समस्त उपवासों में अजा एकादशी का व्रत श्रेष्ठ बताया गया है। इस एकादशी व्रत को करने वाले को अपने चित्त, इंद्रियों, आहार और व्यवहार पर संयम रखना होता है। इस अर्थ में यह व्रत व्यक्ति को अर्थ और काम से ऊपर उठकर मोक्ष और धर्म के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है। यह व्रत प्राचीन समय से यथावत चला आ रहा है। इस एकादशी के फलस्वरूप अश्वमेघ यज्ञ के समान फल की प्राप्ति होती है, मन निर्मल और पवित्र होता है।
अजा एकादशी की कथा श्रीराम के वंश में जन्मे सत्यवादी राजा हरिश्चंद्र से जुड़ी है। सत्य के प्रति निष्ठा और ईमानदारी के लिए ख्यात राजा हरिश्चंद्र ने अजा एकादशी के प्रभाव से ही अपने कष्टों का निवारण संभव पाया। पूरी कथा यूं है कि एक बार राजा हरिश्चंद्र ने स्वप्न में देखा कि उन्होंने ऋषि विश्वामित्र को अपना राजपाट दान कर दिया है।
अगले दिन प्रात: काल ऋषि उनके द्वार पर आकर बोले कि राजन तुमने अपना राज्य मुझे दान कर दिया है और अब इस संपत्ति पर मेरा अधिकार है। राजा ने स्वप्न के सत्य को मानते हुए संपूर्ण राज्य ऋषि विश्वामित्र को सौंप दिया।
दान के लिए दक्षिणा चुकाने हेतु राजा को पत्नी, बेटे और स्वयं को बेचना पड़ा। हरिश्चंद्र को एक डोम ने खरीद लिया जो श्मशान भूमि में लोगों के दाह संस्कार का काम करता था। डोम ने राजा को मसान में दाह संस्कार के लिए शुल्क वसूली का काम का सौंप दिया।
राजन पूरी निष्ठा से अपने काम को निभाने लगे। एक दिन उनकी भेंट गौतम मुनि से हुई और उन्होंने राजा को बताया कि उन्हें पूर्व जन्म के पाप के कारण यह कष्ट भोगना पड़ रहा है। इन कष्टों से मुक्ति का उपाय ऋषिवर ने भाद्रपद की अजा एकादशी का व्रत बताया। राजा ने ऋषि के बताए अनुरूप अजा एकादशी का व्रत किया। किंतु राजा की अंतिम परीक्षा बाकी थी। एकादशी के दिन उनके पुत्र का सांप ने काट लिया और मरे हुए पुत्र को दाह संस्कार के लिए राजा की पत्नी श्मशान में लेकर आई।
राजा ने सत्य धर्म का पालन करते हुए अपनी पत्नी से भी दाह संस्कार के लिए कर मांगा। पत्नी के पास चुकाने को धन नहीं था तो उसने अपनी साड़ी का आधा हिस्सा फाड़कर राजा को दे दिया। राजा की सत्य में इतनी निष्ठा देखकर देवता भी प्रसन्ना हो उठे और राजा को पूर्व जन्मों के सभी पापों से मुक्ति प्राप्त हुई।
अजा एकादशी के फलस्वरूप ही उन्हें अपना खोया राज्य और पुत्र-पत्नी की प्राप्ति हुई। जिस तरह अजा एकादशी ने राजा हरिश्चंद्र को कष्टों और पूर्व जन्म के पापों से मुक्त करवाया उसी तरह यह एकादशी सभी श्रद्धालुओं के कष्टों का निवारण उपस्थित करती है।
इस एकादशी का व्रत करके भगवान विष्णु का पूजन करने वालों के कष्ट श्रीहरि की कृपा से दूर होते हैं और उन्हें समृद्धि की प्राप्ति होती है। इस एकादशी व्रत की कथा के श्रवण मात्र से ही अश्वमेघ यत्र का फल प्राप्त होता है। इस एकादशी का प्रताप व्यक्ति का यह लोक और परलोक दोनों सुधारता है।
विष्णु नाम जपें
इस व्रत को करते हुए व्रती को चाहिए कि वह भगवान विष्णु का विधि विधान से पूजन करे। विष्णु सहस्त्रनाम का जाप करे। रात को भगवत भजन में जागरण करे और द्वादशी के दिन ब्राह्णों को भोजन कराकर उनका आशीर्वाद प्राप्त करे। विधिपूर्वक यह व्रत करने वाले बैकुंठ धाम जाते हैं।
व्रत के नियम
अजा एकादशी व्रत करने वाले व्रती को कांस, उड़द, मसूर, चना, कोदो, शाक, मधु, दूसरे का अन्ना, दो बार भोजन तथा सहवास इन दस वस्तुओं का परित्याग करें। एकादशी को जुआ खेलना, नींद लेना, पान खाना, दातुन करना, परनिंदा, चुगली, चोरी, हिंसा, क्रोध तथा झूठ से बचने का संकल्प करना चाहिए। एकादशी पर व्रत का पालन करके द्वादशी तिथि को व्रत पूर्ण करना चाहिए।
अजा एकादशी का व्रत करने से आत्मशुद्धि तथा आध्यात्मिकता का मार्ग खुल जाता है।