ब्रह्मबल: आत्मबल की प्राप्ति के लिए ईश्वर के सान्निध्य में जाना पड़ता है
आत्मबल की प्राप्ति के लिए ईश्वर के सान्निध्य में जाना पड़ता है। सान्निध्य पाने के लिए ईश्वर का विश्वास आवश्यक है। विश्वास पाने के लिए तप-साधना करनी पड़ती है। चूंकि आत्मबल में ईश्वर की शक्ति निहित होती है इसीलिए इसे ब्रह्मबल भी कहते हैं।
नई दिल्ली, मुकेश ऋषि। जब व्यक्ति किसी कार्य को करने चलता है, तो उसके मन-हृदय में बारंबार विचार-भाव उठते हैं कि वह कार्य करें या नहीं, उससे होगा या नहीं और परिणाम भी सफलता और असफलता के रूप में सामने आता है। किसी कार्य को करने के लिए बल की आवश्यकता होती है। इसके बिना उसको गति देना असंभव है।
कई बार किसी कार्य को करते समय नाना-प्रकार के संकट उसमें बाधा बन खड़े हो जाते हैं। ऐसे में कोई व्यक्ति उस कार्य को बीच में ही छोड़ देता है। परिणामस्वरूप उसे असफलता हाथ लगती है। असफलता यह सिद्ध करती है कि अमुक कार्य को पूरे मनोयोग से नहीं किया गया। मनोयोग का अर्थ होता है-तन, मन और हृदय से समर्पित होकर किसी कार्य को करना। किसी कार्य में सफल होने के लिए व्यक्ति में मानसिक संतुलन, विश्वास, जिज्ञासा, लगन, संघर्ष करने की क्षमता और तन्मयता जैसे गुणों का होना जरूरी होता है। इनकी प्राप्ति आत्मबल से होती है।
आत्मबल की प्राप्ति के लिए ईश्वर के सान्निध्य में जाना पड़ता है। सान्निध्य पाने के लिए ईश्वर का विश्वास आवश्यक है। विश्वास पाने के लिए तप-साधना करनी पड़ती है। चूंकि आत्मबल में ईश्वर की शक्ति निहित होती है, इसीलिए इसे ब्रह्मबल भी कहते हैं। आत्मबल से संपन्न मनीषी के लिए कोई कार्य असंभव नहीं रहता है। उसका कोई कार्य बीच में नहीं रुकता है। जब शरीरबल और मनोबल टूट जाता है तो उस समय आत्मबल सहारा देता है। आत्मबल से युक्त व्यक्ति कभी हाताश-निराश नहीं होता हं। उसके मन-हृदय में आस्था, उल्लास, उमंग, विश्वास, आशा, भरोसा एवं उम्मीद की किरणंे फूटती रहती हैं। इससे मन-हृदय को सांत्वना मिलती रहती है। फलस्वरूप उससे जीवन उल्लास बना रहता है। जीवन एक समरक्षेत्र है। कर्मयोद्धा बनना ही मानवता है, जिसमें प्रतिक्षण निज के दुगरुणों से लड़ना है। इसमें आत्मबल का हथियार लेकर संघर्षरत रहने से सफलता अवश्य मिलती है।