Move to Jagran APP

यह गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर के जीवन से जुड़ी एक खास घटना है

वह अकसर दैवीयता/दिव्यता, अस्तित्व, कुदरत व सौंदर्य सहित तमाम चीजों के बारे में बहुत कुछ कहते, जबकि खुद उन्हें इस चीज को कहीं कोई अनुभव नहीं था।

By Preeti jhaEdited By: Published: Thu, 30 Mar 2017 05:02 PM (IST)Updated: Thu, 30 Mar 2017 05:08 PM (IST)
यह गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर के जीवन से जुड़ी एक खास घटना है
यह गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर के जीवन से जुड़ी एक खास घटना है

गुरुदेव टैगोर की कविताओं में हमें अस्तित्व के असीम सौन्दर्य और भक्ति के दर्शन होते हैं। क्या इसी असीम का अनुभव उन्होंने अपने भीतर भी किया था? उनकी बहुत सी कविताएं प्रकृति के सौन्दर्य से जुड़ी हैं। पढ़ते हैं उनके जीवन की एक ऐसी घटना, जो तब घटित हुई जब वे प्रकृति के ही सम्पर्क में थे।

loksabha election banner

यह गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर के जीवन से जुड़ी एक खास घटना है। टैगोर ने ढेर सारी कविताएं लिखी हैं। वह अकसर दैवीयता/दिव्यता, अस्तित्व, कुदरत व सौंदर्य सहित तमाम चीजों के बारे में बहुत कुछ कहते, जबकि खुद उन्हें इस चीज को कहीं कोई अनुभव नहीं था। वहीं पास में एक बुजर्ग व्यक्ति रहा करते थे, जो खुद एक सिद्ध व्यक्ति थे। यह बुजुर्ग दूर से कहीं उनके रिश्ते में भी लगते थे। जब भी टैगोर कहीं भाशण या व्याख्यान देने जाते तो यह बुजुर्ग सज्जन भी वहां पहुंच जाते और उन्हें देखते रहते। जब भी रवींद्रनाथ उनकी तरफ देखते तो वह अचानक असहज हो जाते।

टैगोर सूर्यास्त देखने के लिए नदी के किनारे की ओर चले जा रहे थे। रास्ते में ढेर सारे गढ्ढे थे, जो पानी से भरे थे। टैगोर उन गढ्ढों से बचते हुए सूखी जगह तलाशते हुए आगे बढ़ रहे थे। दरअसल, वह बुजुर्ग को मौका मिलते ही टैगोर से सवाल करने लगते कि तुम इतना सत्य के बारे में बात करते हो, लेकिन क्या सचमुच तुम इसके बारे में जानते हो? टैगोर को पक्के तौर पर यह नहीं पता था कि वह बुजुर्ग जानते हैं कि उन्हें इस बारे में कुछ पता नहीं है। हालांकि, टैगोर इतने महान लेखक थे कि जब आप उनकी कविता पढ़ते हैं तो कहीं से भी यह नहीं लगता कि वह बिना अनुभव या बिना जानें उन्होंने ऐसी चीजें लिखी होंगी, लेकिन वह बुजुर्ग फिर भी उनसे इसे लेकर लगातार सवाल करते रहते। इसलिए जब भी गुरुदेव की नजरें उनसे मिलती, वह सकपका उठते। हालांकि धीरे-धीरे उनके भीतर भी इसे लेकर एक खोज जारी हो चुकी थी कि आखिर वो क्या है, जिसके बारे में मैं बात तो करता हूं, लेकिन उसे जानता नहीं हूं।

एक दिन बारिश हुई और फिर रुक गई। टैगोर को हमेशा नदी के किनारे सूर्यास्त देखना बहुत अच्छा लगता था। तो उस दिन भी टैगोर सूर्यास्त देखने के लिए नदी के किनारे की ओर चले जा रहे थे। रास्ते में ढेर सारे गढ्ढे थे, जो पानी से भरे थे। टैगोर उन गढ्ढों से बचते हुए सूखी जगह तलाशते हुए आगे बढ़ रहे थे। तभी उनकी नजर रास्ते के पानी भरे एक गढ्ढे में पड़ी, जहां प्रकृति का पूरा प्रतिबिम्ब उस सड़क के गढ्ढे में झलक रहा था।

हालांकि, टैगोर इतने महान लेखक थे कि जब आप उनकी कविता पढ़ते हैं तो कहीं से भी यह नहीं लगता कि वह बिना अनुभव या बिना जानें उन्होंने ऐसी चीजें लिखी होंगीउन्होंने उसे देखा और अचानक उनके भीतर कुछ बहुत बड़ी चीज घटित हो उठी। उसके बाद वह वहां से सीधे उस बुजुर्ग के घर गए और जाकर उनका दरवाजा खटखटाने लगे। बुजुर्ग ने दरवाजा खोला व एक नजर टैगोर को देखा और फिर बोले, 'अब तुम जा सकते हो। क्योंकि तुम सच जान चुके हो। यह तुम्हारी आंखों में साफ दिखाई दे रहा है।Ó

इस तरह से हम जीवन की हर छोटी से छोटी चीज में सत्य व दिव्यता की झलक पा सकते हैं।

गुरुदेव की कुछ कविताएं-

मुझे अपना लो

मेरे नाथ, मुझे अपना लो

अपना लो इस बार।

अबकी मत लौटो, बस जाओ,

उर पर पर अधिकार

बिना तुम्हारे बीते दिन जो

फिर से नहीं मांगता उनको

मिलें खाक में वे सब,

जगूं तुम्हारी जगमग द्युति में

जीवन सतत पसार

क्या धुन, कौन बात पर जानें

जहां-तहां भटका अनजाने

घाट-बाट में कितने।

अब वह मुख रख पास हृदय के

अपनी कहो पुकार।

कितने दाग दगा चालाकी

अब भी पड़े हुए हैं बाकी

इस कसूर पर लौटा मत दो

उन्हें बना दो छार।

मेरे नाथ, मुझे अपना लो

अपना लो इस बार।

ईश्वर से क्या मांगे

'विपत्तियों से रक्षा करÓ यह मेरी प्रार्थना नहीं,

मैं विपत्तियों से भयभीत न होऊं!

अपने दु:ख से व्यथित चित को सांत्वना देने की भिक्षा

नहीं मांगता, मैं दु:ख पर विजय पाऊं!

यदि सहायता न जुटे तो भी मेरा बल न टूटे,

संसार से हानि ही मिले, केवल वंचना ही पाऊं,

तो भी मेरा मन उसे क्षति न माने!

'मेरा त्राण करÓ यह मेरी प्रार्थना नहीं,

मेरी तैरने की शक्ति बनी रहे,

मेरा भार हल्का करके मुझे सान्तवना न दे,

यह भार वहन करके चलता रहूं!

सुख भरे क्षण में नतमस्तक मैं तेरा मुख पहचान पाऊं,

किन्तु दु:ख भरी रातों में जब सारी दुनिया मेरी वंचना करे,

तब भी मैं तुमसे विमुख न होऊं!


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.