Move to Jagran APP

दया के बगैर इस संसार का संचालन संभव ही नहीं है

गौतम ऋषि ने मनुष्य के लिए आवश्यक संस्कारों का निर्देश देते हुए आठ आत्म गुणों पर बल दिया है। उन्होंने 'दया सर्वभूतेषुÓ-यानी सभी मनुष्य मात्र पर दया को प्रथम स्थान प्रदान किया है। दया का भाव क्या है? दुखी जनों का दुख दूर करने की अभिलाषा को दया कहते हैं।

By Preeti jhaEdited By: Published: Mon, 11 May 2015 11:30 AM (IST)Updated: Mon, 11 May 2015 11:32 AM (IST)
दया के बगैर इस संसार का संचालन संभव ही नहीं है
दया के बगैर इस संसार का संचालन संभव ही नहीं है

गौतम ऋषि ने मनुष्य के लिए आवश्यक संस्कारों का निर्देश देते हुए आठ आत्म गुणों पर बल दिया है। उन्होंने 'दया सर्वभूतेषुÓ-यानी सभी मनुष्य मात्र पर दया को प्रथम स्थान प्रदान किया है। दया का भाव क्या है? दुखी जनों का दुख दूर करने की अभिलाषा को दया कहते हैं।

loksabha election banner

दया के बगैर इस संसार का संचालन संभव ही नहीं है। बालक का जन्म होते ही माता सर्वप्रथम उस पर दया करती है। माता की इच्छा रहती है कि मेरा बच्चा कभी भूखा न रहे, बीमार न पड़े, मुस्कराता व साफ-स्वच्छ रहे। इसी दया से प्रेरित होकर वह स्वयं अनेक कष्ट सहकर बच्चे का पालन-पोषण करती है। गुरु यदि दया कर दे, तो सामान्य शिष्य भी शास्त्र-पारंगत हो सकता है। दयावान के शासन में समस्त प्रजा अपने को सुखी स्वीकार करती है। हममें दया है, लेकिन वह सीमित है। मनुष्य ज्ञानवान अवश्य है, परंतु सर्वज्ञ नहीं। अज्ञानवश मनुष्य किसी से राग और किसी से द्वेष करता है। इसीलिए संसारी मनुष्य की दया की सीमा होती है। ज्ञान के संदर्भ में शास्त्र का मत है कि मनुष्य का ज्ञान सीमित होने से ईश्वर का अस्तित्व सिद्ध हो जाता है। आकाश सीमा में बंधा हुआ नहीं है। कहीं भी हम आकाश के अभाव का अनुभव नहीं कर सकते। जहां पर परिपूर्ण ज्ञान सिद्ध हो, वहीं ईश्वर है-ऐसा स्वीकार करना चाहिए। हमारी सीमित दया का भी कोई प्रतियोगी अवश्य है। जो अव्यक्त, नित्य और सर्वज्ञ है वही समान रूप से संपूर्ण जीवों का हित करता है।

लौकिक माता-पिता तो अपने परिवार पर ही दया करते हैं, परंतु प्रभु तो सर्वत्र दया करते हैं। प्रभु सारे संसार के पिता हैं। वे भक्तों के अंत:करण में बैठकर अपने ज्ञानदीप से हमें प्रकाश दे रहे हैं और हमारे कष्टों का निवारण कर रहे हैं। हम कष्ट आने पर दूसरों से दया चाहते हैं। वस्तुत: दया एक मानवीय गुण है। दूसरों के प्रति दया भाव रखने से व्यक्ति को आत्मिक शांति मिलती है और आत्मिक शांति एक ऐसी देन है, जिसे आप दुनिया के किसी बाजार में नहीं खरीद सकते। ईश्वर से भी हम यह मांगते हैं कि प्रभु हम पर तुम्हारी दया दृष्टि बनी रहे।

प्रभु भक्ति मात्र से संतुष्ट होकर कष्टों का निवारण करते हैं। भगवान की भव्य-भक्ति का आश्रय लेकर उनकी दया प्राप्त करने से ही हमारा मनुष्य जन्म सार्थक होगा।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.