सोच की सुंदरता: गलत सोच का चश्मा जितनी जल्दी हो, उतार देना चाहिए
हमारा चिंतन गुणों की ओर केंद्रित रहना चाहिए। जो अभाव को भाव तथा दुख को सुख में बदलने की कला जानता है उसी का जीना सार्थक है वही सफल इंसान है। वैसे भी भविष्य उनका होता है जो सपनों की सुंदरता पर भरोसा करते हैं।
नई दिल्ली, ललित गर्ग। जब सोच निषेधात्मक या गलत होती है, तब वह सुख को भी दुख में परिवर्तित कर देती है। गलत सोच का चश्मा जितनी जल्दी हो, उतार देना चाहिए। बुरे विचार जितना दूसरों का नुकसान करते हैं, उतना ही स्वयं का भी करते हैं। कारण अपनी ही सुरक्षा को लेकर डरा दिमाग ढंग से नहीं सोच पाता। हम स्वार्थी हो जाते हैं, केवल अपने बारे में ही सोचते हैं। कहा गया है कि आपके विचार वहां तक ले जाते हैं, जहां आप जाना चाहते हैं। पर कमजोर विचारों में दूर तक ले जाने की ताकत नहीं होती। हम जो हैं वह सब विचारों का फल है। जो हम सोचते हैं, वही बन जाते हैं।
मनुष्य अपने कार्यों से दूसरों को नुकसान पहुंचाता है और अपने विचारों से स्वयं को। गलत सोच एवं अनैतिक कार्यों में लिप्त लोगों को धनवान और प्रतिष्ठित होते देख आदमी में नकारात्मक चिंतन जागता है। अपनी ईमानदारी उसे मूर्खतापूर्ण लगती है। वह पुनर्चितन करता है-क्या मिला मुझे आदर्शों पर चलकर? यह नकारात्मक चिंतन उसे भी गलत सोच के दलदल में उतार देता है। समाज में भ्रष्ट और बेईमान लोगों की उत्पत्ति इसी तरह के गलत विचारों के संक्रमण से हुई। इस तरह का गलत सोच हमारी दुनिया को छोटा कर देता है। भीतर और बाहरी दोनों ही दुनिया सिमट जाती हैं। तब हमारी छोटी-सी सफलता अहंकार बढ़ाने लगती है। थोड़ा-सा दुख अवसाद का कारण बन जाता है। कुल मिलाकर सोच ही गड़बड़ हो जाता है।
अपने ही बोले हुए को सुनते रहना ज्यादा सीखने नहीं देता। हमारा चिंतन गुणों की ओर केंद्रित रहना चाहिए। इसमें हमें शांति और प्रसन्नता का अनुभव होगा। निराशावादी और अवगुणवादी मनुष्य अपने चारों ओर अभावों और दोषों का दर्शन करते हैं। जो अभाव को भाव तथा दुख को सुख में बदलने की कला जानता है, उसी का जीना सार्थक है, वही सफल इंसान है। वैसे भी भविष्य उनका होता है, जो सपनों की सुंदरता पर भरोसा करते हैं।