समस्त साधनाओं का लक्ष्य हर परिस्थिति में मन की शांति को बनाए रखना है
हम नीले आकाश को निहारते हैं। विचित्र बात यह है कि हमें दिव्य प्रकाश के बारे में कुछ भी पता नहीं है, फिर भी उसे नीला मान लेते हैं।
साधना और आध्यात्मिक प्रगति के बारे में कोई धारणा नहीं पालनी चाहिए। ऐसी धारणाएं ही मार्ग की बाधाएं बन जाती हैं। साधना के साथ-साथ दृष्टिकोण भी सही होना चाहिए। उदाहरण के लिए हम नीले आकाश को निहारते हैं। विचित्र बात यह है कि हमें दिव्य प्रकाश के बारे में कुछ भी पता नहीं है, फिर भी उसे नीला मान लेते हैं।
यह भी संभव है कि दिव्य प्रकाश देखने के बावजूद नीले प्रकाश की प्रतीक्षा करते रहते हों। समस्त साधनाओं का लक्ष्य हर परिस्थिति में मन की शांति को बनाए रखना है। अन्य बातें, जैसे-प्रकाश, ध्वनि या कोई रूप-आकार तो आते-जाते रहेंगे। यदि ऐसा कुछ अनुभव हो जाए, तो वह अस्थायी ही होगा। स्थायी अनुभव केवल पूर्ण शांति का ही है। शांति व समता का अनुभव ही आध्यात्मिक जीवन का वांछित परिणाम है। पर ऐसे अनुभवों की कामना करना जरूरी नहीं है, क्योंकि इससे व्यक्ति का आध्यात्मिक विकास धीमा हो जाता है। यदि ऐसे अनुभव अपने आप होते हैं तो होने दें, लेकिन उन्हें महत्व न दें। यह बहुत जरूरी है कि प्रारंभ से ही आध्यात्मिक जीवन के बारे में सुस्पष्ट, स्वस्थ एवं बुद्धिसम्मत धारणा बना ली जाए। ऐसा नहीं है कि आध्यात्मिक व्यक्ति कुछ अलग जीवन जीते हैं। अन्य लोगों की तरह उनका भी जीवन सामान्य होता है। सिर्फ जीवन और उनके अनभुवों को देखने की उनकी दृष्टि अलग होती है।