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तो इसलिए इसे कहते हैं रति कामदेव की पूजा का पर्व बसंत पंचमी

मान्यता है कि मदनोत्सव पर रति व कामदेव की उपासना पारिवारिक सुख-समृद्धि के लिए अत्यंत उपयोगी होती है। इसी दिन पाप नाश और स्वर्ग की कामना से ये अनुष्ठान शुरू किया जा सकता है।

By Preeti jhaEdited By: Published: Tue, 31 Jan 2017 04:01 PM (IST)Updated: Wed, 01 Feb 2017 02:58 PM (IST)
तो इसलिए इसे कहते हैं रति कामदेव की पूजा का पर्व बसंत पंचमी
तो इसलिए इसे कहते हैं रति कामदेव की पूजा का पर्व बसंत पंचमी

वसंत ऋतु में हर किसी में एक नई ऊर्जा का प्रभाव दिखाई देता है। ज्ञान की देवी सरस्वती की पूजा के द्वारा वसंतोत्सव मनाया जाता है। इस दिन कामदेव की पूजा की जाती है, क्योंकि प्रकृति नवशृंगार करके वातावरण को मादक बनाने लगती है।

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आमतौर पर ये मान्यता है कि माघ मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि, जिसको बसंत पंचमी के नाम से जाना जाता है, इस दिन विद्यारंभ के शुभ अवसर पर देवी सरस्वती की पूजा करनी चाहिए। मां सरस्वती की पूजा-अर्चना से इस दिन विद्या की देवी प्रसन्न होकर असीम विद्या का वरदान देती हैं। वहीं इस दिन को लेकर एक और विशेष बात है। वह ये कि हममें से कितने लोग ये जानते हैं कि इस दिन पर विद्या की देवी की पूजा अर्चना करने के साथ कामदेव और उनकी पत्नी रति का भी विशेष महत्व है। कई जगहों पर इस दिन इनकी भी पूजा होती है। आइए जानें दोनों तरह से बसंत पंचमी मनाने का महत्व, तरीका और फल।

देवी सरस्वती की आराधना का है विशेष महत्व

माघ मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को वसंत पंचमी का पर्व धूमधाम के साथ मनाया जाता है। इस दिन खास तौर पर विद्या की देवी मां सरस्वती की पूजा की जाती है। ऐसी मान्यता है कि जब ब्रह्मा ने सृष्टि की रचना की, तो खासतौर पर मनुष्यों की रचना करने के बाद उन्हें लगा कि कहीं तो कुछ कमी रह गई, जिसके कारण चारों ओर मौन छाया है। उस समय उन्होंने एक चतुर्भुजी स्त्री की रचना की। उनके एक हाथ में वीणा और दूसरे हाथ में वर मुद्रा थी। उनके अन्य दोनों हाथों में पुस्तक और माला थीं। ब्रह्मा जी ने देवी से वीणा बजाने का अनुरोध किया। जैसे ही उन्होंने वीणा का नाद शुरू किया, संसार के समस्त जीव-जन्तुओं को वाणी मिल गई। तब ब्रह्मा ने उस देवी को वाणी की देवी सरस्वती कहा। पुराणों के अनुसार, श्रीकृष्ण ने मां सरस्वती से खुश होकर उन्हें वरदान दिया कि वसंत पंचमी पर उनकी आराधना की जाएगी। उस समय से वसंत पंचमी को मां सरस्वती का जन्मदिन माना जाने लगा। इसीलिए इस दिन उनकी विद्या की देवी के रूप में आराधना की जाती है। ऐसे में इस दिन सच्चे मन से मां की आराधना करने वाले को असीम विद्या भंडार प्राप्त होता है।

मां सरस्वती की पूजन विधि

दिन की शुरुआत होते ही दैनिक कार्यों से निवृत्त होने के बाद मां सरस्वती की आराधना करनी चाहिए। नहा-धोकर पीले वस्त्र पहनकर आसन पर बैठ जाएं। पूजा सामग्री में पीले फूल, पीला नैवेद्य, पीले फल आदि चीजों को प्रमुखता से अपने पास ही रख लें। सबसे पहले पीले वस्त्र या ताम्र पात्र पर सरस्वती यंत्र कुमकुम, हल्दी और कर्पूर व गुलाब जल का मिश्रण करके अनार की कलम से अंकित करके चावल के ढेर को स्थापित कर लें। इसके बाद मां सरस्वती का चित्र या प्रतिमा रख लें। सुगंधित धूप और दीपक प्रज्वलित करें। मां सरस्वती का ध्यान करें। मंत्रों का उच्चारण करके पूजन सामग्री उनको अर्पित करें। इसके बाद अग्िन की 103 आहूतियां देकर शुद्ध गाय के घी में शहद और कपूर मिलाकर मिश्रण कर लें और पंचदीप से मां की आरती करने के बाद प्रसाद ग्रहण करें।

होती है कामदेव और रति की भी पूजा

इस दिन से मौसम का सुहाना होना इस मौके को और रूमानी बना देता है। वसंत को कामदेव का मित्र माना जाता है। गुनगुनी धूप, स्नेहिल हवा, मौसम का नशा प्रेम की अगन को और भी ज्यादा भड़काता है। ऐसे में तापमान न ज्यादा अधिक ठंडा होता है और न अधिक गर्म। सुहाना समय चारों ओर सुंदर दृश्य, सुगंधित पुष्प, मंद-मंद मलय पवन, फलों के वृक्षों पर बौर की सुगंध, जल से भरे सरोवर, आम के वृक्षों पर कोयल की कूक ये सब प्रीत में उत्साह भर देते हैं। यह ऋतु कामदेव की ऋतु है। कुल मिलाकर मान्यता है कि कामदेव इस दिन से मौसम को मादकता से भर देते हैं। इस दौरान मनुष्यों के शरीर में भी कई तरह के बदलाव होते हैं। इन कारणों से इस दिन को कई जगहों पर खास कामदेव और उनकी पत्नी रति की पूजा के साथ भी मनाया जाता है और नए खुशनुमा प्यार भरे मौसम का स्वागत किया जाता है।

भगवान विष्णु का भी है विशेष महत्व

वैसे वसंत पंचमी को अबूझ सावा भी बताया गया है। ऐसा इसलिए क्योंकि इस दिन समस्त वातावरण शुभ और शुद्ध हो जाता है। ऐसे में भगवान विष्णु के आदेशानुसार समस्त मंगल कार्य इस दिन बिना पूछे किए जा सकते हैं। पुराणों के अनुसार, भगवान श्रीकृष्ण ने मां सरस्वती से खुश होकर उन्हें वरदान दिया था कि वसंत पंचमी पर उनकी आराधना की जाएगी। इसके इतर ऐसा माना जाता है कि देवी सरस्वती की पूजा सबसे पहले भगवान श्री कृष्ण ने ही की थी। ऐसे में इस दिन को खास बनाने के पीछे भगवान विष्णु का भी विशेष महत्व है।

वसंत पंचमी का नाम लेने पर सबसे पहले विद्या की देवी सरस्वती और उनकी पूजा का ध्यान आता है। माता सरस्वती की पूजा सचमुच महत्वपूर्ण है लेकिन वैश्विक और सर्वकालिक रूप में यह अवसर उनकी पूजा से ज्यादा मदनोत्सव के रूप में प्रचलित रहा है। पौराणिक काल में इस दिन रति और कामदेव की पूजा की जाती थी। दुनिया के अन्य देशों में भी वसंत के अवसर पर विभिन्न तरीके से वसंतोत्सव से मिलता-जुलता उत्सव मनाया जाता है। वेलेनटाइन डे की भी इसी की एक कड़ी है। एक और कथा प्रचलित है कि इसी दिन भगवान शंकर का तिलकोत्सव और शिव रात्रि को विवाह हुआ था।

पुराण समुच्चय के अनुसार वसंत पंचमी के अवसर पर रति और कामदेव पूजन की ये है जानकारी। उनका पूजन गृहस्थ सुख में चार चांद लगाने वाला होता है। एक बार अवश्य प्रयोग करके देखिए।

माघ शुक्ल पूर्वविद्धा पंचमी को उत्तम वेदी पर वस्त्र बिछाकर अक्षतों का कमल दल बनाएं। उसके अग्र भा्ग में गणेश जी और पिछले भाग में वसंत (जौ व गेहूं की बाल का पुंज, जो जलपूर्ण कलश में डंठल सहित रखकर बनाया जाता है) स्थापित करें। फिर सबसे पहले गणेश जी का पूजन करें। इसके बाद पीछे वाले पुंज में रति और कामदेव का पूजन शुरू करें। पहले उन पर अबीर आदि के पुष्पोम छींटे लगाकर वसंत सदृश बनाएं।

इसके बाद-- शुभा रतिः प्रकर्तव्या वसंतोज्ज्वलभूषणा। नृत्यमाना शुभा देवी समस्ताभरणैर्युता।। वीणावादनशीला च मदकर्पूरचर्चिता। मंत्र से रति का और कामदेवस्तु कर्तव्यो रूपेणाप्रतिमो भुवि। अष्टबाहुः स कर्तव्यः शङ्खपद्मविभूषणः।। चापबाणकरश्चैव मदादञ्चितलोचनः। रतिः प्रीतिस्तथा शक्तिर्मदशक्ति-स्तथोज्ज्वला।। चतस्रस्तस्य कर्तव्याः पत्न्यो रूपमनोहराः। चत्वारश्च करास्तस्य कार्या भार्यास्तनोपगाः। केतुश्च मकरः कार्यः पञ्चबाणमुखो महान्। मंत्र से कामदेव का ध्यान करें। इसके बाद दोनों को विविध प्रकार के फल, फूल और पत्रादि समर्पित करें तो गार्हस्थ्य जीवन, खासकर दांपत्य जीवन सुखमय रहेगा और प्रत्येक कार्य में उत्साह से भरे रहेंगे।

मान्यता है कि मदनोत्सव पर रति व कामदेव की उपासना पारिवारिक सुख-समृद्धि के लिए अत्यंत उपयोगी होती है। इसी दिन पाप नाश और स्वर्ग की कामना से एक और अनुष्ठान शुरू किया जा सकता है। मन्दारषष्ठी नामक यह व्रत तीन दिवसीय होता है। भविष्योत्तर पुराण के अनुसार माघ शुक्ल पंचमी को संपूर्ण कामना का त्याग कर जितेंद्रिय होकर थोड़ा सा भोजन लेने के बाद एकभुक्त करें। षष्ठी को प्रातः स्नानादि के बाद ब्राह्मण से अनुमति लेकर दिन भर व्रत रखें और रात्रि में मंदार के पुष्प (आक) का भक्षण कर उपवास करे। सप्तमी सुबह में स्नान व ब्रह्मण पूजन कर मंदार फूल से अष्टदल कमल बनाकर स्वर्णनिर्मित सूर्यनारायण की मूर्ति की स्थापना कर पूजन करें। बाद में उस मूर्ति को किसी ब्राह्मण को दे दें। पुराण के अनुसार इससे सारे पाप नष्ट हो जाते हैं और व्यक्ति मृत्यु के बाद स्वर्ग में जाता है।


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