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योग्यता का अर्थ धन, पद नहीं, बल्कि त्याग है

मूल्यांकन की इच्छा मानव में निरंतर उपजती रहती है। अनजान व्यक्ति से मिलने पर क्षणभर में पूर्ण जीवनकथा जानने की छटपटाहट बड़ा संकट उत्पन्न करती है।

By Preeti jhaEdited By: Published: Mon, 17 Apr 2017 10:15 AM (IST)Updated: Mon, 17 Apr 2017 10:15 AM (IST)
योग्यता का अर्थ धन, पद नहीं, बल्कि त्याग है
योग्यता का अर्थ धन, पद नहीं, बल्कि त्याग है

 मूल्यांकन की इच्छा मानव में निरंतर उपजती रहती है। अनजान व्यक्ति से मिलने पर क्षणभर में पूर्ण जीवनकथा जानने की छटपटाहट बड़ा संकट उत्पन्न करती है। सामने वाले को तत्काल प्रभाव में लेने की शीघ्रता समस्या बढ़ाती है। किसी से पलक झपकते ही सर्वस्व ज्ञात करने का सूत्र अभी तक ज्ञात नहीं है। जिसे जिस क्षेत्र का कोई ज्ञान नहीं रहता वह उसी क्षेत्र का यक्ष प्रश्न करता है।

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शिक्षा संस्थाओं में विषय अनिवार्यता के अलावा अनेक क्षेत्र में धनोपार्जन करने के लिए नए-नए मार्ग खोजे गए हैं। परिश्रमी की भीड़ से अलग सफलता का सार्थक मानदंड खोजने वाले नियम परिवर्तन में विश्वास रखते हैं। समान योग्यता वालों में किसी को सेवा का अवसर मिलने पर ऊंचाई का शिखर मिलते देर नहीं नहीं लगती। द्वार से भगाए गए तुलसी की भांति गुरु नरहरिदास की खोज में जीवन गुजर जाता है। वरदानदाता के लिए पैर पकड़कर पीछे खींचने वाले भस्मासुर बन जाते हैं। अपनी सीमा से अधिक कोई पचाना नहीं जानता। समय की आंच में तपकर निखरना सामान्य व्यक्ति के बस की बात नहीं है। पग-पग पर प्रतिकूलता से जूझने वाले लोहा लेते-लेते पारस पत्थर बन जाते हैं। कोयला अधिक ताप के दबाव में हीरा बनकर गौरवान्वित होता है। संकट सहते-सहते सामान्य मनुष्य महापुरुष बन जाता है।

प्रशंसा का प्रोत्साहन कृतज्ञता बढ़ाता है। कृतज्ञता योग्यता पहचानने का तत्व है। उगते सूर्य को सभी प्रणाम करते हैं, पर अस्ताचल में जाते सूर्य को छठ पर्व में ही अघ्र्य चढ़ता है। पद का संबंध योग्यता से है। योग्य के स्थान पर अयोग्य को पद थोपकर योग्यता बढ़ाई जाती है। पद को भगवान बनाने के कारण अहंकार में वृद्धि होती है। प्रयास के बगैर प्राप्त फल अकर्मण्यता का पोषक है। अयोग्यता स्वयं से श्रेष्ठ को नकारती है। हाथी की पग-पग पर पूजा ही श्वान का दुख बढ़ाती है। दुर्जन सज्जनता को कायरता मानते हैं। सज्जन निश्छल परिश्रम में जीते हैं। प्रश्न पर अतार्किक प्रश्न करना मूर्खता का प्रतीक है। हर बात में प्रश्न अर्थ का अनर्थ करता है। भरत चित्रकूट में कहते हैं, ‘योग्यता के अनुसार मुझे शिक्षा दी जाए।’ योग्यता का अर्थ धन, पद नहीं, बल्कि त्याग है। औषधि की चर्चा नहीं, बल्कि औषधि रोगी के लिए उपयोगी है। प्रतिकूलता में अस्तित्व बचाने वालों को स्वयं की तुलना करके उनके भगीरथ प्रयास को बौना बनाया जाता है।


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