नई दिल्ली, डा. दलबीर सिंह मल्होत्रा | Guru Har Rai Prakasha Parv 2023: सिखों के सातवें गुरु हरराय जी आध्यात्मिक व राष्ट्रवादी संत एवं योद्धा थे। उनका जन्म वर्ष 1630 में माघ शुक्ल त्रयोदशी (इस बार तीन फरवरी) को कीरतपुर (पंजाब) हुआ था। गुरु हरगोविंद जी ने अपनी मृत्यु से पहले अपने पोते हरराय जी को 14 वर्ष की छोटी आयु में ‘सप्तम नानक’ के रूप में घोषित किया था। गुरु हरराय जी का शांत व्यक्तित्व लोगों को प्रभावित करता था। गुरु जी ने अपने दादा गुरु हरगोविंद जी के सिख योद्धाओं के दल को पुनर्गठित किया। उन्होंने सिख योद्धाओं में नवीन प्राण संचारित किए। वे आध्यात्मिक पुरुष होने के साथ-साथ एक राजनीतिज्ञ भी थे। आपके राष्ट्र केंद्रित विचारों के कारण मुगल बादशाह औरंगजेब को परेशानी हो रही थी। औरंगजेब का आरोप था कि गुरु हरराय जी ने दाराशिकोह (शाहजहां के बड़े पुत्र) की सहायता की है। गुरु साहिब का जीवन दर्शन यह था कि ‘अहिंसा परमोधर्मः’ का सिद्धांत अवश्य ही महत्वपूर्ण है, किंतु आत्मसुरक्षा के लिए शस्त्र भी आवश्यक हैं।
व्यक्तिगत जीवन में गुरु हरराय जी प्रायः सिख योद्धाओं को बहादुरी के पुरस्कारों से सम्मानित किया करते थे। गुरु हरराय जी ने कीरतपुर में एक आयुर्वेदिक चिकित्सा एवं अनुसंधान केंद्र की स्थापना भी की। इस अनुसंधान केंद्र में दुर्लभ जड़ी-बूटी आधारित औषधियां मिलती थीं। लोगों के दुख दूर करने के लिए उच्च कोटि के वैद्य भी रखे हुए थे। एक बार दाराशिकोह किसी गंभीर बीमारी से ग्रसित हुआ। बेहतरीन हकीमों की चिकित्सा से भी कोई सुधार नहीं हुआ। अंत में गुरु साहिब की कृपा से उसका इलाज हुआ। इस प्रकार दाराशिकोह मृत्यु के मुंह से बचा लिया गया। दाराशिकोह मुगल सल्तनत से संबंध रखता था, जिन्होंने हिंदुओं और सिख गुरुओं को बहुत सताया था। गुरु हरराय जी से इस मदद का कारण पूछा गया तो उन्होंने कहा था कि, ‘अगर कोई आदमी एक हाथ से फूल चढ़ाता है और अपने दूसरे हाथ का इस्तेमाल करके उसे छोड़ देता है तो दोनों हाथों को एक ही खुशबू मिलती है’। यह था उनका जीवन के प्रति दर्शन। गुरु साहिब ने अनेक धार्मिक केंद्रों की स्थापना की।
औरंगजेब ने सत्ता संघर्ष की स्थिति में दाराशिकोह की मदद को राजनैतिक बहाना बनाया। उसने गुरु साहिब पर बेबुनियाद आरोप लगाये। उन्हें दिल्ली में पेश होने का हुक्म दिया। गुरु साहिब के बदले रामराय जी दिल्ली गये और भ्रांतियों को स्पष्ट करने का प्रयास किया। रामराय ने बादशाह को खुश करने के लिए गुरु नानक देव जी की पंक्ति को उलट दिया तथा गलत व्याख्या करके बादशाह को सुना दी। बादशाह तो खुश हो गया, परंतु गुरु साहिब बहुत क्रुद्ध हुए और रामराय को तुरंत सिख पंथ से निष्कासित कर दिया। राष्ट्र के स्वाभिमान एवं गुरु घर की परंपराओं के विरुद्ध कार्य करने के कारण उन्हें यह कड़ा दंड दिया गया। सिख इस घटना के बाद अनुशासित हो गये। अपने सबसे छोटे पुत्र हरिकिशन जी को ‘अष्टम नानक’ के रूप में स्थापित कर 1661 में कीरतपुर में परलोक गमन कर गये।