नवरात्र के समय हम शक्ति की पूजा करते हैं
नवरात्र के अवसर पर सत्य, धर्म, प्रेम, करुणा जैसे आंतरिक धन, मानसिक स्वास्थ्य और अध्यात्मिक ज्ञान-इन तीनों शक्तियों को प्राप्त करने की प्रतिज्ञा हम लेते हैं। माता अमृतानंदमयी का चिंतन...
By Preeti jhaEdited By: Published: Tue, 21 Mar 2017 12:17 PM (IST)Updated: Fri, 24 Mar 2017 12:12 PM (IST)
नवरात्र के अवसर पर सत्य, धर्म, प्रेम, करुणा जैसे आंतरिक धन, मानसिक स्वास्थ्य और अध्यात्मिक ज्ञान-इन तीनों शक्तियों को प्राप्त करने की प्रतिज्ञा हम लेते हैं। माता अमृतानंदमयी का चिंतन...
नवरात्र के समय हम शक्ति की पूजा करते हैं। कुछ लोग इसे दशहरा के रूप में मनाते हैं, तो कुछ लोग दुर्गा पूजा तो कुछ लोग काली पूजा के रूप में मनाते हैं। इसे किसी भी रूप में मनाया जा सकता है। इन नौ दिनों के दौरान हम ब्रह्मांड की उत्पत्ति में सहायक, भरण-पोषण करने वाली और बुरी शक्तियों का नाश करने वाली उस परम शक्ति की उपासना एक साथ करते हैं। इस दौरान देवी मां की कृपा पाने के लिए पूजा से लेकर प्रतिज्ञा और उपवास जैसे विभिन्न तरीकों से उनकी प्रार्थना की जाती है।
हर सकारात्मक सृजन उस परम शक्ति द्वारा ही होता है। यदि कर्म के साथ-साथ उनका ध्यान भी किया जाए, तो किसी भी क्षेत्र में सफलता हासिल की जा सकती है।
इन नौ दिनों के दौरान देवी के नौ विभिन्न रूपों और भावों की पूजा की जाती है। आम तौर पर पहले तीन दिनों में स्वास्थ्य का प्रतिनिधित्व करने वाली महाकाली की पूजा की जाती है। अगले तीन दिनों में धन का प्रतिनिधित्व करने वाली महालक्ष्मी की पूजा की जाती है और अंतिम तीन दिनों में ज्ञान का प्रतिनिधित्व करने वाली महासरस्वती की पूजा की जाती है।
धन, स्वास्थ्य और ज्ञान, ये सभी जीवन में जरूरी हैं। उनके बिना खुश होकर नहीं रहा जा सकता है। जब ये तीनों कारक संतुलित और व्यवस्थित तरीके से एक साथ आते हैं, तो व्यक्ति और समाज दोनों ही फ लते- फू लते हैं। हालांकि बाहरी धन, स्वास्थ्य और ज्ञान अकेले पर्याप्त नहीं हैं। हम सभी को आंतरिक धन, आंतरिक स्वास्थ्य, और आंतरिक ज्ञान की भी जरूरत पड़ती है। आंतरिक धन में सत्य, धर्म, प्रेम और करुणा जैसे सार्वभौमिक मूल्यों में दृढ़ रहने की क्षमता होती है। आंतरिक स्वास्थ्य का तात्पर्य मानसिक स्वास्थ्य से है, जिसमें मन अच्छे विचारों से भरा होता है। आंतरिक ज्ञान आध्यात्मिक ज्ञान है - खुद की अंतरात्मा के बारे में ज्ञान। हम इन तीनों शक्तियों को प्राप्त करने की प्रतिज्ञा नवरात्र में लेते हैं। इस प्रकार, हम बाहरी और आंतरिक स्वास्थ्य के लिए पहले तीन दिनों तक दुर्गा की पूजा करते हैं। बीच के तीन दिनों में बाहरी और आंतरिक स्वास्थ्य के लिए लक्ष्मी की पूजा करते हैं।
जब ये तीनों शक्तियां एक साथ आती हैं, तो किसी भी व्यक्ति को पराजित नहीं किया जा सकता है। उनका एकीकरण और सम्मिश्रण बाहरी संसाधनों और आंतरिक गुणों में स्वाभाविक रूप से संतुलन पैदा करता है। इस प्रकार सूझ-बूझ में एकता का व्यक्तिपरक अनुभव होता है। इससे हमें हमारी आंतरिक दुनिया के मनोविकार के साथ-साथ बाहरी दुनिया पर विजय प्राप्त करने में मदद मिलती है।
जब हम हर चीज में अंतर्निहित एकता को देखते हैं, तो हमारे दिलों में करुणा पैदा होती है। हमें यह दृढ़ विश्वास रखना होगा कि किसी को भी दुख का अनुभव नहीं होना चाहिए। किसी को भूखा नहीं रहना चाहिए। किसी को भी शिक्षा, चिकित्सा देखभाल या अपने सिर पर एक छत के बगैर नहीं रहना चाहिए। वास्तव में अंतर्मन में इस भाव का जाग्रत होना ही देवी मां है। एक बार एक मां और उसका शिशु भूस्खलन में फं स गए। वे कुछ दिनों तक मलबे के नीचे दबे रहे। जब खोजी टीम ने उन दोनों को बचा लिया, तो वे बड़ी मुश्किल से सांस ले पा रहे थे। मां अपनी जान की परवाह किए बगैर बच्चे को स्वस्थ करने का हरसंभव प्रयास करने लगी। जब हम सही मायने में आध्यात्मिकता को समझ पाएंगे, तो मां द्वारा प्रदर्शित व्यवहार को न सिर्फ समझ पाने में सक्षम होंगे, बल्कि वैसे ही व्यवहार का प्रदर्शन करेंगे। बेशक यहां मां का वात्सल्य प्रेम अपने बच्चे के लिए था, लेकिन अध्यात्म की तरफ मुडऩे के बाद हमें हर व्यक्ति अपने बच्चे के समान दिखाई देने लगता है।
हम देवी की स्तुति शुद्ध ज्ञान, बुद्धि और मन से करते हैं, लेकिन इन सभी से अधिक दूसरों के प्रति प्रेम, दया का भाव दिखाना ही देवी की पूजा के समान है। दरअसल, उनके लिए पूरा संसार संतान के समान है। जब ज्ञान की रोशनी आती है, तो हर तरह का अंधकार मिट जाता है। हमें उस ज्ञान का यथोचित उपयोग करना चाहिए।
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