मर्दस डे: वात्सल्य का अनन्त गहरा सागर
मातृ दिवस, जो अंग्रेज देशों में मर्दस डे के रूप में मनाया जाता है। हम हिन्दुस्तानियेां का मानना है कि मां का दर्जा भगवान से ऊंचा है और मां के आदर सम्मान के लिये वर्ष का एक दिन नहीं पूरा जीवन कम पङता है। मां दुनिया को ईश्वर द्वारा प्रदत
मातृ दिवस, जो अंग्रेज देशों में मर्दस डे के रूप में मनाया जाता है। हम हिन्दुस्तानियेां का मानना है कि मां का दर्जा भगवान से ऊंचा है और मां के आदर सम्मान के लिये वर्ष का एक दिन नहीं पूरा जीवन कम पङता है। मां दुनिया को ईश्वर द्वारा प्रदत सबसे अनमोल उपहार है। मां के आंचल में पूरी श्रृष्टी समाहित है।
ममता व वात्सल्य का अनन्त गहरा सागर है माँ। माँ अपने जीवन की अंतिम श्वास तक अपनी पर अपना सब कुछ न्यौछावर कर देती है। इस धरती पर एक मात्र नि:स्वार्थ रिश्ता माँ का है। वो बच्चा इंसान हो ही नही सकता जो मां की गोद में हंसा न हो। मां की गोद होती ही कुछ ऐसी है कि बच्चा हर दुख तकलीफ भूलकर किलकारियां मारने लगता है। मां और बच्चे के रिश्ते को लफ्ज़़ों में बयां करना नामुमकिन है। मां का कजऱ् तो क्या कोई उतार पाएगा लेकिन हां हर साल एक दिन ज़रुर उसे खासतौर से याद किया जाता और ये दिन कहलाता है मदर्स डे। चलिए देखते हैं कि आशिर इसकी शुरूआत कहां कैसे हुई थी।
ग्राफटन वेस्ट वर्जिनिया में एना जॉर्विस ने माताओं और उनके गौरवमयी मातृत्व के लिए तथा विशेष रूप से पारिवारिक और उनके परस्पर संबंधों को सम्मान देने के लिए मर्दस डे शुरु किया था जो अब यह दुनिया के हर कोने में मनाया जाता है। यूरोप और ब्रिटेन में मां के प्रति सम्मान दर्शाने की कई परंपराएं प्रचलित हैं। उसी के अंतर्गत एक खास रविवार को मातृत्व और माताओं को सम्मानित किया जाता था। जिसे मदरिंग संडे कहा जाता था। मदरिंग संडे फेस्टिवल, लितुर्गिकल कैलेंडर का हिस्सा है। यह कैथोलिक कैलेंडर में लेतारे संडे, लेंट में चौथे रविवार को वर्जिन मेरी और मदर चर्च को सम्मानित करने के लिए मनाया जाता हैं।
वही कुछ विद्धानों का दावा है यह सर्वप्रथम पुराने ग्रीस में आरम्भ हुआ था स्य्बेले ग्रीक देवताओं की मां थीं और उनके सम्मान में यह दिन त्योहर की तरह मनाया जाता था। अमेरिका में सर्वप्रथम मदर डे प्रोक्लॉमेशन जुलिया वॉर्ड होवे द्वारा मनाया गया था। इसमें होवे का नारीवादी विश्वास था जिसके अनुसार महिलाओं या माताओं को राजनीतिक स्तर पर अपने समाज को आकार देने का संपूर्ण दायित्व मिलना चाहिए। 1912 में एना जॉर्विस ने सेकंड संडे इन मई फॉर मदर्स डे को ट्रेडमार्क बनाया और मदर डे इंटरनेशनल एसोसिएशन का गठन किया।
वही गूगल पर मदर्स डे के दो परिणाम सामने आते हैं, वो है, लेंट में मदरिंग संडे, ब्रिटिश कैलेंडर के चौथे संडे के रूप में और मई के दूसरे संडे के रूप में। बाद में इसे विभिन्न देशों में प्रचलित धर्मों की देवी के जन्मदिन या पुण्य दिवस को इस रूप में मनाया जाने लगा। जैसे कैथोलिक देशों में वर्जिन मैरी डे और इस्लामिक देशों में पैगंबर मुहम्मद की बेटी फातिमा के जन्मदिन की तारीखों से इस दिन को बदल लिया गया।
वैसे कुछ देश 8 मार्च वुमंस डे को ही मदर्स डे की तरह मनाते हैं। यहां तक कि कुछ देशों में अगर मदर्स डे पर अपनी मां को विधिवत सम्मानित नहीं किया जाए तो उसे अपराध की तरह देखा जाता है। जी करता है, तमाम घडि़यां तोड़ दू्ं, थाम लूं समय को और कह दूं, कि 'मांÓ तुम मेरी परिभाषा हो, अर्थ हो, ब्रहमांड हो... वाकई 'मांÓ वह दरख्त होती जिसकी छांव में हमारी दुनिया बसती है।
समय की रेखा पर मदर्स डे-
व्यक्त कीजिए 'मांÓ के प्रति अपनी कृतज्ञता, स्नेह, सम्मान और प्यार को...हमारी सहज अभिव्यक्ति 'मांÓ को जीवंत कर देती है। 'मांÓ की सुदृढ़ता के बारे में जरूर सोचें। फिर चाहे आर्थिक सक्षमता हो, मेडिकल प्लानिंग हो या उनका एकाकीपन। मदर्स डे को गिफ्ट्स की परिधि में न बांधें, बल्कि उन्हें भरोसा दिलाएं कि आप दुनिया का सबसे स्ट्रांग सपोर्ट सिस्टम हैं, जो बिना शर्त उनके साथ है।
यह जरूरी नहीं कि हम अपनी 'मांÓ के नजरिए को अपने अनुसार बदलें। एक बार उनकी नजरों से देखें, 'कहांÓ सुधार करना है स्पष्ट हो जाएगा। अपने जीवनसाथी को स्पष्ट तौर पर यह बताएं कि 'मांÓ आपके जीवन में कहां हैं, ताकि वह भी आपके समान ही व्यवहार कर सकें। कितना भी व्यस्त हों, पास हों, दूर हों.. अपनी धुरी मां को ही रखें... सफल हो जाएंगे। 'मांÓ समान हैं...जीवन का यह सत्य है जिसके बिना जीवन ही न था, एक दिन उसके बिना जीना पड़ता है... पर जरा गौर करेंगे तो बहुत सी ऐसी महिलाएं हैं जो 'मांÓ बनने के गौरव से परिपूर्ण हैं, पर मां होने के मायने उनके बच्चों ने कभी नहीं दिए...। आपके बेटे या बेटी होने की भूमिका की सबसे बड़ी सार्थकता तो यही है कि उन मजबूर मांओं को मजबूती दे पाएं, जो यह डिजर्व करती हैं...।
यकीनन यह समाज में सबसे बड़ा योगदान और अपनी 'मांÓ को सच्ची श्रद्धांजलि होगी...। बस निकल लीजिए घर से और किसी भी 'मांÓ को थोड़ी रोशनी दे भावों से कह डालिये 'हैप्पी मदर्स डेÓ। जीवन का हर 'पहला' मां से ही जुड़ा है... पहला आखर, पहली सीख और 'मांÓ की अनुपस्थिति से उपजा पहला नुकसान भी...। 'मांÓ नींव का वह पत्थर होती, जो कभी दिखती नहीं, पर मजबूती से हर पल खड़ी रहती। वाकई विस्तृत आकाश और असीमित धरा देने वाली 'मांÓ वक्त की दौड़ के साथ सीमित होती जाती है और हम चाहे न चाहे उन्हें समेट लेते हैं अपनी हथेलियों के बीच। कितनी भी मंजिलें पाई हो, अनगिनत चांद छुये हों, पर बेशकीमती तो वही पूंजी है, जो 'मांÓ के मुखौटे में हर पल साथ रहती है। कभी याद बनकर तो कभी सीख बनकर। कितने भी बड़े हो जाएं, पर हम हर पल 'मांÓ का ही प्रतिबिंब बनने की कोशिश करते हैं। क्योंकि 'मांÓ हमें मानसिक रूप से उम्र के आखिरी पड़ाव तक संजोती रहती हंै। जब तक मां होती हम जिंदगी पूरी तरह जीते उसके बाद जिंदगी सिर्फ काटते हैं। मां बिना कोई सुर नहीं है जीवन में... पर यथार्थ यही है कि बहुत सी ऐसी मांएं हैं, जो रोज बाट जोहती हैं अपने बच्चों की कि कब वो आयेंगे और मेरी भी सुनेंगे। सार्थक हो जायेगा वह दिन जब बिलखती 'मांÓ को बच्चे का संबल मिल पायेगा और सही मायने में वही मदर्स डे होगा