गुरु पूर्णिमा का संदेश: गुरु तत्व ही मानवीय चेतना की क्रांति है
गुरु हमारी ज्ञान शक्ति पर छाए विषय रूपी अंधकार को हटा देता है। तब ज्ञान स्वयं प्रकाशित हो उठता है। वही सत्य की अनुभूति कराता है। सत्य वह है जो एक है। असीम है। बस भेद बुद्धि के कारण अलग प्रतीत होता है।
नई दिल्ली, नीरजा माधव। जो हमारे अज्ञान रूपी अंधकार को दूर कर ज्ञान रूपी प्रकाश की ओर ले जाता है, वही गुरु होता है। भारतीय परंपरा में गुरु और शिष्य में कोई भेद नहीं। जब गुरु शिष्य को उपदेश या ज्ञान देता है तो इस भावना से कि नया शिष्य उसके भीतर जन्म ले रहा है। उस समय वह ब्रह्मा का स्वरूप होता है। वस्तुत: गुरु परंपरा वह होती है, जो सत्य का साक्षात्कार कर चुकी होती है। गुरु के भीतर साक्षात्कार की जो शक्ति है, उसे वह शिष्य में स्थानांतरित करने की क्षमता रखता है। इस रूप में वह शिव होता है। गुरु साक्षात शिव हो जाता है और उसके भीतर निहित गुरु परंपरा की शक्ति गौरी बन जाती है।
गुरु हमारी ज्ञान शक्ति पर छाए विषय रूपी अंधकार को हटा देता है। तब ज्ञान स्वयं प्रकाशित हो उठता है। वही सत्य की अनुभूति कराता है। सत्य वह है, जो एक है। असीम है। बस भेद बुद्धि के कारण अलग प्रतीत होता है। जैसे जलते हुए अनेक कोयलों में अग्नि एक ही प्रज्वलित होती है, परंतु वह हमें विभिन्न रूपों में दिखाई पड़ती है। यह भिन्नता कोयले के स्वरूप के कारण है। अग्नि तो एक है। इसी तरह ज्ञान में भेद नहीं है। विषय के कारण प्रतीत होता है। इसीलिए गुरु और ईश्वर में अभेद है। गुरु ही ईश्वर हो जाता है और अपने शिष्य के विषय विकारों को मिटाकर उसे भी ज्ञान और साधना परंपरा का संवाहक बनने के लिए दक्ष बनाता है।
यदि एक बार ज्ञान रूपी अग्नि प्रज्वलित हो गई और सत्य का दिग्दर्शन हो गया तो विषय-वासना उसके संपर्क में आकर भी समाप्त हो जाएंगे। ज्ञानी व्यक्ति निर्लिप्त हो जाएगा। यही मानव चेतना की क्रांति है और यही प्रत्येक गुरु पूर्णिमा का संदेश भी। इसी संदेश और समृद्ध परंपरा को देखते हुए ही भारत को आत्मसाक्षात्कार और ज्ञान की भूमि कहा गया है। भारतीय संस्कृति में ज्ञान की वह प्रज्वलित अग्नि सन्निहित है और ज्ञान के शिखर हैं गुरु। गुरु तत्व ही मानवीय चेतना की क्रांति है। यही गुरु तत्व भारत भूमि की समग्र विश्व को अनुपम देन है।