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मनुष्य की यात्रा श्मशान पर जाकर समाप्त होती है

आज का मानव चल नहीं रहा है, बल्कि वह दौड़ रहा है। पहले तो कई बार झिझक कर रुक जाता था कि आखिर मैं कहां जा रहा हूं, परंतु आज उसके पास यह समय भी नहीं है। कहां जा रहा है? क्यों जा रहा है? किधर तक जाएगा? जाने का

By Preeti jhaEdited By: Published: Wed, 07 Jan 2015 10:17 AM (IST)Updated: Fri, 24 Jun 2016 01:32 PM (IST)
मनुष्य की यात्रा श्मशान पर जाकर समाप्त होती है
मनुष्य की यात्रा श्मशान पर जाकर समाप्त होती है

आज का मानव चल नहीं रहा है, बल्कि वह दौड़ रहा है। पहले तो कई बार झिझक कर रुक जाता था कि आखिर मैं कहां जा रहा हूं, परंतु आज उसके पास यह समय भी नहीं है। कहां जा रहा है? क्यों जा रहा है? किधर तक जाएगा? जाने का कोई तात्पर्य भी है या नहीं? कोई विचार नहीं। कोई चिंतन व मनन नहीं।

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सांसारिक कर्मो में लीन लोग पद-प्रतिष्ठा, धन, मान, ऐश्वर्य और सुख प्राप्ति की दौड़ में हैं। वहीं कुछ लोग मोक्ष और स्वर्ग प्राप्ति की कामना करते हैं। कर्म बेशक अच्छे न हों, लेकिन इच्छा अच्छा पाने की जरूर होती है। किसी ने आज तक धन-प्रतिष्ठा को सदैव बनाए नहीं रखा। स्वर्ग और परमात्म प्राप्ति का मिलना भी यों समझे कि संशय ही है। यह संसार एक व्यवस्था है और बना ही इसलिए है कि सब यात्रा करें। व्यवस्थाएं भी इसीलिए हैं कि मनुष्य यात्रा करते-करते संसार का ही हो जाए।

जगत में चलते हुए इसके चक्रव्यूह को तोडऩा इतना आसान कार्य नहीं है। जगत तो एक खेल है, जिसमें भिन्न-भिन्न तरह की फसलें उगती हैं। कभी कम, कभी ज्यादा, परंतु खेत ने कभी अपेक्षा नहीं की। यह खेत रूपी जगत कभी किसी का हुआ नहीं। बेशक, लोगों ने इस पर कब्जा जमाने का प्रयास किया। इस दौड़ में लोगों ने संसार को ही सब कुछ समझ लिया। ठीक वैसे ही जैसे यह संसार झूठा है, यह आपका शरीर भी झूठा है। न ही यह संसार सतत रहने वाला है, और ध्यान रहे! न ही आपका यह शरीर।

मनुष्य की यात्रा श्मशान पर जाकर समाप्त होती है। इसलिए मैं एक बात स्पष्ट करना चाहूंगा कि यदि यात्रा करनी ही है तो ऐसी यात्रा करो जो आपसे प्रारंभ होकर आप में ही समाप्त हो जाए। जगत को यूं ही चलने दें। यह मनुष्य का कर्मक्षेत्र भी है और धर्म क्षेत्र भी। पशु-पक्षियों-जीवों के लिए भोग क्षेत्र भी। इस जगत में व्रत-उपवास, जप, तप, योग सब कुछ जगत के लिए ही होता है। मनुष्य पिंजड़े में बंद तोते की तरह है। तोता यदि पिंजड़े में व्रत, उपवास, योग करे तो क्या वह मुक्त हो जाएगा? तोते को भी पिंजड़े से बाहर निकलने के लिए, पिजड़े का द्वार खोलने के लिए कोई तो होना चाहिए। सद्गुरु ही पिंजड़े का द्वार खोलता है। जो दीवार नहीं, द्वार होता है। सद्गुरु मुक्ति का मार्ग प्रशस्त करने की सच्ची सीख देता है।


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