शत्रुता भी प्रेम का विकृत रूप है
प्रेम कहता है कि अगर प्रेम करना चाहते हो, तो मुझे पूरा स्वीकार करो। ऐसा इसलिए क्योंकि पूर्णता को ही प्रेम कहते हैं। हम देखते हैं कि प्रेमी अपनी प्रेयसी को आत्मसात कर लेना चाहता है, जब दो प्रेम करने वाले एक-दूसरे को आलिंगन में बांध लेते हैं, तो प्रेम
प्रेम कहता है कि अगर प्रेम करना चाहते हो, तो मुझे पूरा स्वीकार करो। ऐसा इसलिए क्योंकि पूर्णता को ही प्रेम कहते हैं। हम देखते हैं कि प्रेमी अपनी प्रेयसी को आत्मसात कर लेना चाहता है, जब दो प्रेम करने वाले एक-दूसरे को आलिंगन में बांध लेते हैं, तो प्रेम का चक्र पूरा होने लगता है। इसीलिए पशु-पक्षी भी जब एक-दूसरे को प्रेम करते हैं तो एक-दूसरे को स्वयं में आत्मसात करने लगते हैं। जब तक द्वैत बना रहता है, प्रेम का चक्र पूरा नहीं होता। जब तक चक्र पूरा नहीं होता, तब तक प्रेम घटित नहीं होता। यह भी सत्य है कि किसी पर आक्रमण करना, किसी को नष्ट करने का प्रयास करना प्रेम का ही पाशविक स्वरूप है। शत्रुता भी प्रेम का विकृत रूप है।
प्रेम में हम अपने प्रेमी को चाहते हैं, शत्रुता में भी अपने शत्रु को चाहते ही हैं। जिस संबंध में निरंतर सोचा जाए, वह प्रेम का ही स्वरूप है। घृणा भी उसी का एक रूप है। किसी वस्तु को ही घृणापूर्वक चाहने लगते हैं। अगर नहीं चाहते तो घृणा क्यों करते। क्रोध तो उसी पर किया जाता है, जिसे हम खूब चाहते हैं। अगर आप नहीं चाहते और उससे प्रेम नहीं करते तो उस पर क्रोध करने की क्या आवश्यकता थी? संसार में हजारों लोग हैं, आप उन पर क्रोध क्यों नहीं करते? इसका एक ही कारण है कि आप उनसे प्रेम नहीं करते। जिन-जिन लोगों से प्रेम करते हैं, आप उन्हीं पर क्रोध भी करते हैं, क्योंकि आप चाहते हैं कि वह भी आपसे प्रेम करे।
कभी-कभी लोग जिनसे अधिक प्रेम करते हैं, उन्हें मार भी देते हैं। यह उनके अतृप्त घृणित प्रेम का रूप है। पति एक अहंकारी जीव है। वह यह पसंद नहीं करता कि बच्चा होते ही पत्नी का प्रेम बंट जाए। उसी प्रकार पत्नी अपने पति के मां या बहन से प्रेम को भी पसंद नहीं करती। कई बार तो ऐसा देखा गया है कि पति अगर टीवी कार्यक्रमों में अधिक दिलचस्पी रखता है या पालतू पशु को अधिक प्यार करता है, तो अनेक पत्नी उसे भी बर्दाश्त नहीं कर पाती। ऐसा इसलिए क्योंकि पत्नी अपने पति का एकात्म प्रेम चाहती है। जहां कहीं भी विघ्न पड़ता दिखता है, उसका एकात्म प्रेम टूटता दिखता है, तो पति या पत्नी विद्रोह कर उठते हैं। किसी को बंटा हुआ प्रेम नहीं चाहिए। पिता-पुत्र का संबंध भी कुछ ऐसा ही है।