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Kabir Jayanti 2021: आज है कबीर जयंती, जानिए उनके दोहों में छिपा जीवन का सार

Kabir Jayanti 2021 संत कबीर आम जन- मानस में कबीर दास या कबीर साहेब के नाम से लोकप्रिय हैं। मान्यता अनुसार ज्येष्ठ मास पूर्णिमा को कबीर जंयती के रूप में मनाया जाता है। इस वर्ष यह तिथि आज 24 जून दिन गुरूवार को पड़ रही है।

By Jeetesh KumarEdited By: Published: Tue, 22 Jun 2021 09:00 AM (IST)Updated: Thu, 24 Jun 2021 07:12 AM (IST)
Kabir Jayanti  2021: आज है कबीर जयंती, जानिए उनके दोहों में छिपा जीवन का सार
Kabir Jayanti 2021: आज है कबीर जयंती, जानिए उनके दोहों में छिपा जीवन का सार

Kabir Jayanti 2021: संत कबीर , आम जन- मानस में कबीर दास या कबीर साहेब के नाम से लोकप्रिय हैं। कबीर दास का जन्म के संदर्भ में निश्चत रूप से कुछ कह पाना संभव नहीं है । मान्यता अनुसार ज्येष्ठ मास पूर्णिमा को कबीर जंयती के रूप में मनाया जाता है। इस वर्ष यह तिथि आज 24 जून दिन गुरूवार को है। किंवदंती के अनुसार संत कबीर ज्येष्ठ पूर्णिमा के दिन काशी में लहरतारा तलाब के कमल पुष्प पर अपने पालक माता-पिता नीरू और नीमा को मिले थे। तब से इस दिन को कबीर जयंती के रूप में मनाया जाता है।

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कबीर दास ने अपने दोहों, विचारों और जीवनवृत्त से मध्यकालीन भारत के सामाजिक और धार्मिक, आध्यात्मिक जीवन में क्रांति का सूत्रपात किया था। कबीर दास ने तत्कालीन समाज के अंधविश्वास, रूढ़िवाद, पाखण्ड का घोर विरोध किया। उन्होनें उस काल में भारतीय समाज में विभिन्न धर्मों और समाज के मेल-जोल का मार्ग दिखाया। हिंदू, इस्लाम सभी धर्मों में व्याप्त कुरीतियों और पाखण्ड़ो पर कड़ा प्रहार किया। एक ओर वो हिंदू धर्म में मूर्ति पूजा का विरोध करते हुए कहते हैं कि..

पाहन पूजे हरि मिले तो मैं पूजूं पहार, वा ते तो चाकी भली, पीसी खाय संसार।।

और इस्लाम की जड़ता पर चोट करते हुए कहते हैं कि..

कंकर पत्थर जोड़ कर मस्जिद लई बनाय, ता चढ़ि मुल्ला बांग दे, क्या बहरा हुआ खुदाय।

कबीरदास ने जात-पात,समाजिक भेद-भाव का भी जम कर विरोध किया और सभी मनुष्य को एक ही रचनाकार से उत्पन्न माना।

हिन्दू कहें मोहि राम पियारा, तुर्क कहें रहमाना, आपस में दोउ लड़ी-लड़ी मुए, मरम न कोउ जाना।

कबीर दास केवल एक समाज सुधार ही नहीं वरन् आध्यात्मिक रहस्यवाद के उच्चकोटी के कवि और संत थे...

जल में कुम्भ, कुम्भ में जल है, बाहर भीतर पानी।

फूटा कुम्भ जल जलहि समाना, यह तत सुनहु गियानी।।

कबीरदास ने आध्यात्मिक स्तर पर लोगों जाति, धर्म, पंत का भेद भुलाकर एक निराकार ब्रह्म की उपासना का मार्ग दिखाया। उनका कहना था कि..

प्रथम एक तो आयै आप। निराकार निर्गुण निर्जाप।

आज भी कबीरदास और उनके विचार आम जन का मार्गदर्शन करते हैं तथा समाज की बड़ी से बड़ी समस्या का हल प्रदान करते हैं।

डिसक्लेमर

'इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारियां आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त, इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी।' 


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