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कबीर जयंती

संत कबीर ने अध्यात्म का उपयोग मानव-व्यवहार को उत्तम बनाने और समाज की विसंगतियों के अंधेरों को दूर करने के लिए किया। उन्होंने बताया कि ईश्वर तक पहुंचने का रास्ता सत्कर्र्मो से होकर गुजरता है। कबीर जयंती (23 जून) पर विशेष..

By Edited By: Published: Sat, 22 Jun 2013 12:46 PM (IST)Updated: Sat, 22 Jun 2013 01:04 PM (IST)
कबीर जयंती

संत कबीर ने अध्यात्म का उपयोग मानव-व्यवहार को उत्तम बनाने और समाज की विसंगतियों के अंधेरों को दूर करने के लिए किया। उन्होंने बताया कि ईश्वर तक पहुंचने का रास्ता सत्कर्र्मो से होकर गुजरता है। कबीर जयंती (23 जून) पर विशेष..

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संत वही है, जो संपूर्ण मानवता के हित के लिए साहस के साथ सही राह दिखाए। कबीर दास ऐसे ही साहसी संत हैं। जिस समय भारतीय समाज में परस्पर घृणा और विद्वेष अपने चरम पर थे, विभिन्न जाति-धर्म के लोग आपस में लड़ रहे थे, धर्म के नाम पर समाज में अनेक प्रकार के पाखंड व समाज में कुरीतियां थीं, ऐसे संक्रमण काल में काशी में महात्मा कबीर का जन्म हुआ, जिन्होंने समाज को नई राह दिखाई।

मान्यता है कि कबीर को जन्म तो एक विधवा ब्राहमणी ने दिया था, किंतु लोकलाज के भय से तालाब के किनारे त्याग देने के कारण उनका पालन-पोषण नीरू-नीमा नाम के जुलाहा दंपत्ति ने किया था। उनके गुरु रामानंद थे। काशी में महात्मा कबीर जुलाहे यानी रुई धुनने का कार्य करते थे। समाज में व्याप्त बुराइयों को भी उन्होंने रुई के समान धुना। उन्होंने कभी किसी भी पक्ष के दोष व दुर्गुणों को छिपाया नहीं।

उनका दर्शन सभी को एक-सूत्र में बांधता है। वे कहते हैं, 'एक बूंद ते सृष्टि रची है को बाम्हन को सूदा' यानी परमात्मा ने एक ही बूंद से सारी सृष्टि रची है, तो फिर कौन ब्राहमण है और कौन शूद्र? उनके इस दर्शन से जाति, धर्म, वर्ग, भाषा, संप्रदाय और रंग जैसे सभी भेद ढह जाते हैं। उनका मानना है कि सभी को मिलकर सदैव नि:स्वार्थ भाव से सत्कर्म करना चाहिए। कबीर जानते थे कि जितने भी भेद हमारे समाज में व्याप्त हैं, सबके मूल में अहंकार ही है। अहंकार की तुष्टि के लिए ही हम अलग-अलग दायरे बना लेते हैं। इसीलिए वे कहते हैं कि जब जीवन से अहंकार पूर्ण रूप से हट जाता है, तभी परमात्मा आपके निकट आता है। तभी तो संत कबीर कहते हैं, जब मैं था तब हरि नहीं, अब हरि हैं तब मैं नाहिं। सब अंधियारा मिट गया जब दीपक देख्या मांहि।

आज के जीवन की विसंगति यह है कि सच्चे प्रेम की तलाश में हम भटकते रहते हैं, लेकिन वह हमें कहीं नहीं मिलता। कारण यह है कि संवेदनहीनता गहरा रही है। कबीर ने समाज से सच्चा प्रेम किया, तभी तो उन्होंने उस पर लगी विसंगतियों की कालिख को धोने का प्रयास किया। उन्होंने आपसी प्रेम के जरिये परमात्मा से प्रेम की राह दिखाई। उनकी दृष्टि में तो सारे ज्ञान के मूल में प्रेम ही तो है। इंसानों के आपसी प्रेम को उन्होंने परमात्मा से प्रेम करने का जरिया बताया। तभी तो कबीर कहते हैं कि आप चाहे जितनी पोथियां पढ़ लीजिए, आप विद्वान नहीं हो सकते। विद्वता तब है जब आप ढाई अक्षर के प्रेम को जीवन में उतारें। पोथी पढ़-पढ़ जग मुआ पंडित भया न कोय। ढाई आखर प्रेम का पढे सो पंडित होय।।

संत कबीर ने धर्म में बुरी तरह घुल चुकी विसंगतियों पर प्रहार करके लोगों को सजग किया। उन्होंने सभी धर्र्मो की बुराइयों को उजागर किया, जिसमें अंधविश्वासों के प्रति लोगों को चेताया। कबीर के पास निर्मल हृदय और ईश्वर पर विश्वास था, तभी तो उन्होंने बिना भय के समाज के अंधेरों पर प्रकाश डाला और लोगों को जागरूक किया।

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