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जीवन दर्शन: "सब नर करहिं परस्पर प्रीति", जानिए क्या है सभी चिंताओं से मुक्त होने का माध्यम

जीवन दर्शन हम प्रभु से ऐसी प्रार्थना करें कि हे प्रभु हमें ऐसी आंखें देना कि सारी सृष्टि हमें शिव रूप दिखाई दे। साथ ही जो भी शारीरिक या मानसिक बीमारियां हैं उनसे यदि मुक्त होना है तो इन चौपाइयों का पाठ अवश्य करें।

By Jagran NewsEdited By: Shantanoo MishraPublished: Mon, 06 Feb 2023 05:10 PM (IST)Updated: Mon, 06 Feb 2023 05:10 PM (IST)
जीवन दर्शन: "सब नर करहिं परस्पर प्रीति", जानिए क्या है सभी चिंताओं से मुक्त होने का माध्यम
जीवन दर्शन: जानिए क्या है चिंताओं और शारीरिक या मानसिक बीमारियां से मुक्त होने का माध्यम

नई दिल्ली, मोरारी बापू (प्रसिद्ध कथा वाचक)। जीवन दर्शन: जीवन का एक त्रिभुवनीय सत्य है कि ताल में जीने से तेज बढ़ता है। ताल में रहना यानी जीवन की एक गति... एक शरणागति। पहली है जप ताल। जप ताल हमेशा बनी रहे। फिर है हमें त्रिताल में रहना है। त्रिताल है जीवन में सत्य, प्रेम और करुणा में रहना। एक है गजताल। यह बहुत महत्व का है। लोग निंदा करेंगे, लोग हैरान करेंगे फिर उस समय गजताल रखना। हाथी की तरह चाल। कुत्ते भौंकते रहें, मगर आप अपनी मंजिल पर पहुंच जाना। त्याग करने से तेज बढ़ता है। जितना तुम त्यागो, उतना तुम में सूरज उतरता है। अपने को जितना खाली करो, किरणों को अंदर आने का मौका मिलता है। इससे अंदर का भी तेज बढ़ता है और बाहर का भी। तप से भी तेज आता है। आदमी जितना तपस्वी होगा, उतना ही तेजस्वी होगा। तृप्ति भी तेज देती है। आकांक्षाएं बढ़ते-बढ़ते हमें मलिन कर देती हैं। जब तृप्ति आती है तो तेज आता है। गीता कहती है-'संतुष्टः सततं योगी यतात्मा दृढ़निश्चयः। इसलिए मेरी व्यासपीठ कहती है कि जो प्राप्त है, वही पर्याप्त है। तितिक्षा से तेज बढ़ता है। तितिक्षा का सीधा-सादा अर्थ है सहन कर लो। मैं अक्सर कहता हूं कि सहना ही तप है। जीवन में कोई भी बाधा आए तो उसको मौका बना लेना। हर एक घटना हमारे लिए एक अवसर है। रोओ मत। हर घटना को जो सहन कर ले, वो साधु है।

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चिंताओं से मुक्त होने के लिए

जगद्गुरु आदि शंकराचार्य जी ने विवेक चूड़ामणि में कहा है-'सहनं सर्व दु:खानां अप्रतिकारपूर्वकं चिंता विलापरहितं सा तितिक्षा निगद्यते!' जीवन में जो भी दुख आए, उसका प्रतिकार किए बिना सहन करना। दुख भी विट्ठल है... सुख भी विट्ठल है.. योग भी विट्ठल है.. भोग भी विट्ठल है। सम्मान आए तो विट्ठल का है.. अपमान आए तो देने वाला विट्ठल है। जो यह एक बात समझ लेता है, वह आदमी भूतकाल के विलाप और भविष्य की चिंता से मुक्त हो जाता है। उसी को जगद्गुरु कहते है। द्वेष करने से तेज चला जाता है। ईर्ष्या आंखों में रहती है और द्वेष दिल में रहता है। आंख तो कृष्ण दर्शन के लिए है। कोई हमारे प्रति द्वेष करे तो अभ्यास करें कि वह द्वेष हमें दिखाई ही न दे। हम रामायण में इतने रम जाएं कि किसको जवाब देना है, इस पर ध्यान ही न जाए। यही है रामराज्य है 'सब नर करहिं परस्पर प्रीति।' हम प्रभु से ऐसी प्रार्थना करें कि हे प्रभु, हमें ऐसी आंखें देना कि सारी सृष्टि हमें शिव रूप दिखाई दे। एक काम करो। लौकिक-अलौकिक जो भी शारीरिक या मानसिक बीमारियां हैं, उनसे यदि मुक्त होना है तो एक भरोसे के साथ उत्तरकांड की इन चौपाइयों का प्रसन्न गांभीर्य के साथ पालन करो-

सदगुर बैद बचन बिस्वासा।

संजम यह न बिषय कै आसा॥

तीन चीजें देख लो- एक चिकित्सक, एक उसका निदान और फिर पथ्य यानी परहेज क्या है। इन तीन के साथ में विश्वास भी हो तो कौन बीमारी टिक सकती है। अक्सर हम बीमार नहीं होते, लेकिन रस्सी को सांप मान बैठते हैं। गोस्वामी जी कहते है- सद्गुरु हमारा वैद्य है। उसके वचन पर दृढ़ विश्वास करना। सद्गुरु कहे कि बेटा बीमार हो मानसिक रूप से तो थोड़ा संयम रख, ज्यादा विषय सेवन की इच्छा मत कर। तंदुरुस्त हो जाओगे तो मैं ये ही कहूंगा.. जाओ बेटा, मौज करो। विश्व में ईश्वर से भी ज्यादा कोई उदार होता है तो वह सद्गुरु होता है, बुद्धपुरुष होता है। जब हमको बुखार होता है तो हमें भूख नहीं लगती। जब भूख लगने लगे तो समझो बुखार उतर गया है। इसी तरह से जब हमें दूसरों का शुभ करने की, शुभ कामना करने की, सद्बुद्धि की भूख लगे तो समझना हमारे मन का बुखार उतर गया है। गोस्वामी तुलसीदास ने 'राम नाम' को औषधि बताया है। यदि राम नाम औषधि है तो पथ्य निभाना ही होगा। पहला पथ्य है कि असत्य नहीं बोलना। दूसरा है किसी की निंदा नही करनी। तीसरा है, अपने मुख से अपनी प्रशंसा करना बंद करना। ये सब पथ्य निभा सको तो राम नाम औषधि है।


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