सत्य के प्रति जागने में ही है 'जीवन की महत्ता'
जगे रहने में जिंदगी के विकास उत्थान और महान प्राप्ति का संयोग है और वहीं सोए रहने में मौत पतन अवनति निंदा दुखभरी स्थिति है। इसका मतलब यह हुआ कि जागने में भलाई है और सोने में बुराई है। यह पतन की ओर ले जाने वाला है।
नई दिल्ली, मुकेश ऋषि। प्रत्येक व्यक्ति का इस जगत में आना एक संयोग है और यह संयोग परमात्मा की कृपा की देन है, लेकिन संसार में सभी के आने का संयोग कुछ पाने के लिए है, खोने के लिए नहीं। इसलिए कि खोना आसान है, परंतु पाना बहुत ही कठिन है। संसार में प्राय: लोग सोने वाले हैं, जागने वाले कम। जागने वाले ही कुछ पाते हैं और सोने वाले सब कुछ खो देते हैं। जागने वाले ही इस संसार में जीवित हैं और सोने वाले मृत। सच्चाई के लिए जागना ही है, जड़ता का त्याग। जड़ता के त्याग के बिना पशुता की स्थिति से उबरना संभव नहीं है। जड़ता सुषुप्ति की अवस्था है और जड़ता का त्याग जागृतावस्था। जागृतावस्था में जीवन के उत्थान, विकास, महानता प्राप्ति का संयोग है और सुषुप्तावस्था में मृत्यु, पतन, अवनति, निंदा, दुखभरी स्थिति है। जागने में भलाई है और सोने में बुराई है। यह पतन की ओर ले जाने वाला है।
व्यक्ति जन्म के समय न कुछ लेकर आता और न ही मृत्यु के समय कुछ लेकर जाता है। झूठ बोलकर की गई सारी कमाई यहीं रह जाती हैं, लेकिन सत्य की कमाई सदा साथ रहती है। त्याग, प्रेम, सत्य, जिम्मेदारी के प्रति जागना ही जीवन में सत्कर्म है और यह सत्कर्म ही पुण्य की कमाई है, जो कभी नष्ट नहीं हो सकती। परमात्मा तो सिर्फ सत्य मार्ग पर चलने वाले का साथ देता है और कुमार्गगामी को दंड भी देता है। सत्य के प्रति सजगता ही चेतना का ऊध्र्वमुखी होना होता है।
इसके विपरीत असत्य के प्रति चेतना की जागृति विनाश, पतन का मूल है। परमात्मा प्रदत्त यह काया क्षणभंगुर है, पर इसके अंदर स्थित आत्मा अविनाशी है। आत्मिक उत्थान जीवन का सवरेपरि लक्ष्य है। इस लक्ष्य की पूर्ति सिर्फ चेतना की जागृति द्वारा ही संभव है। चेतना की जागृति और जड़ता का त्याग प्रत्येक मनुष्य के जीवन के लिए अहम है। इसमें सफल होना ही जीवन के लिए कल्याणकारी है। जीवन की महत्ता सत्य के प्रति जागने में है। जीवन के प्रति नहीं जागने से संयोग वियोग में बदल जाता है।