Move to Jagran APP

श्री श्री रविशंकर से जाने गौतम बुद्ध के मौन का महत्‍व

मौनी अमावस्‍या पर विशेष लेख में पढ़ें श्री श्री रविशंकर ने कैसे स्‍पष्‍ट किया कि बोध होने के बाद गौतम बुद्ध द्वारा धारण किए मौन का आखिर क्या था महत्व।

By Molly SethEdited By: Published: Mon, 15 Jan 2018 03:55 PM (IST)Updated: Tue, 16 Jan 2018 10:14 AM (IST)
श्री श्री रविशंकर से जाने गौतम बुद्ध के मौन का महत्‍व
श्री श्री रविशंकर से जाने गौतम बुद्ध के मौन का महत्‍व

बुद्ध का मौन 

loksabha election banner

गौतम बुद्ध को जब बोध प्राप्त हुआ, तो कहा जाता है कि वे एक सप्ताह तक मौन रहे। उन्होंने एक भी शब्द नहीं बोला। पौराणिक कथाएं कहती हैं कि इससे सभी देवता चिंता में पड़ गए। उनसे बोलने की याचना की। मौन समाप्त होने पर वे बोले, जो जानते हैं, वे मेरे कहने के बिना भी जानते हैं और जो नहीं जानते, वे मेरे कहने पर भी नहीं जानेंगे। जिन्होंने जीवन का अमृत ही नहीं चखा, उनसे बात करना व्यर्थ है, इसलिए मैंने मौन धारण किया था। जो बहुत ही आत्मीय और व्यक्तिगत हो उसे कैसे व्यक्त किया जा सकता है? तब देवताओं ने उनसे कहा, जो आप कह रहे हैं वह सत्य है, परंतु उनके बारे में सोचें जिनको पूरी तरह से बोध भी नहीं हुआ है और पूरी तरह से अज्ञानी भी नहीं हैं। उनके लिए आपके थोड़े से शब्द भी प्रेरणादायक होंगे। तब आपके द्वारा बोला गया हर शब्द मौन का सृजन करेगा।

हर ओर मौन व्‍याप्‍त है

बुद्ध के शब्द निश्चित ही मौन का सृजन करते हैं, क्योंकि बुद्ध मौन की प्रतिमूर्ति हैं। मौन जीवन का स्रोत है। जब लोग क्रोधित होते हैं, तो पहले वे चिल्लाते हैं और फिर मौन हो जाते हैं। जब कोई दुखी होता है, तब वह भी मौन की शरण में जाता है। जब कोई ज्ञानी होता है, तब भी वहां पर मौन होता है। शुरुआत से ही बुद्ध ने संतुष्ट जीवन का निर्वाह किया। हर सुख-सुविधा किसी भी समय उनकी इच्छानुसार उनके सामने हाजिर हो जाती थी। एक दिन उन्होंने कहा कि मुझे बाहर जाकर यह देखना है कि दुनिया क्या है। जब उन्होंने एक बीमार, एक वृद्ध और एक मृत व्यक्ति को देखा, तो उन्होने जीवन के बारे में विचार करना शुरू किया। ये दृश्य यह ज्ञान देने में पर्याप्त थे कि जीवन में दु:ख है।

बुद्ध के चार सत्‍य

बुद्ध ने अकेले सत्य की तलाश शुरू की। इसके लिए उन्होंने अपना महल, पत्‍‌नी और बेटे को छोड़ दिया। उन्होंने वह सब कुछ किया, जो लोगों ने उन्हें बताया। इसके बाद ही वे चार सत्य जान पाए। पहला सत्य है कि दुनिया में दु:ख है। जीवन में सिर्फ दो संभावनाएं हैं- पहली यह कि अपने आसपास के संसार में औरों के दु:ख के अनुभव को देखकर समझ जाना। दूसरी यह कि स्वयं उसका अनुभव करके समझना कि संसार दु:ख है। दूसरा सत्य यह है कि दु:ख के लिए कोई कारण होता है। आप बिना किसी कारण सुखी रह सकते हैं, परंतु दु:ख का कोई कारण अवश्य होता है। तीसरा सबसे महत्वपूर्ण सत्य यह है कि दु:ख का निवारण संभव है। चौथा सत्य यह है कि दु:ख से बाहर निकलने के लिए एक पथ है।

मौन में निहित हैं सारी भावनायें

उस समय इतनी अधिक समृद्धि थी कि बुद्ध ने अपने मुख्य शिष्यों को भिक्षा का पात्र पकड़ा दिया और उनसे भिक्षा मांगने को कहा! उन्होनें राजाओं के शाही वस्त्र उतरवाकर उनके हाथ में भिक्षा का कटोरा दे दिया। यह इसलिए नहीं था कि उन्हें भोजन की आवश्यकता थी, परंतु वे उन्हें कुछ होने से कुछ नहीं होने के पाठ की सीख देना चाहते थे। यह बताना चाहते थे कि आप कुछ नहीं हैं। आप इस विश्व में निरर्थक हैं। जब उस समय के राजाओं और ज्ञानियों को भिक्षा मांगने को कहा गया, तो वे करुणा की मूर्ति बन गए। अपने सच्चे स्वभाव को देखें कि वह क्या है? वह शांति, करुणा, प्रेम, मित्रता, और आनंद है। मौन में इन सब का उदय होता है। दुख, पछतावे और कष्ट को मौन निगल लेता है और आनंद, करुणा और प्रेम को जन्म देता है।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.