गंगा दशहरा 2023 विशेष: अमृतत्व का प्रवाह है गंगा
गंगा अत्यंत महनीय एवं अलौकिक नदी है। वह ईश्वरीय द्रव है जिसके अवतरण के लिए राजा भगीरथ और उनके पूर्वजों ने निरंतर कठोर श्रम किया। धरा पर गंगा का अवतरण हमारे पूर्वजों के असीम श्रम साधन का ही परिणाम है।
नई दिल्ली, स्वामी अवधेशानंद गिरि (आचार्य महामंडलेश्वर, जूनापीठाधीश्वर एवं अध्यक्ष, हिंदू धर्म आचार्य सभा); सनातनी संस्कृति में गंगा को मोक्षदायिनी और पवित्रतम नदी माना गया है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को दस दिव्य योगों में मां गंगा का धरा पर अवतरण हुआ था। उनके प्राकट्य दिवस को गंगा दशहरा के नाम से जाना जाता है। इस दिन गंगा जल में स्नान करने से मनुष्य के दस प्रकार के पापों का क्षरण होता है। शास्त्रों में वर्णित दस प्रकार के प्रमुख पापकर्मों में तीन दैहिक, चार वाणी के द्वारा किए हुए व तीन मानसिक पाप सम्मिलित हैं। गंगा दशहरा पर्व पर किए गए स्नान-दान आदि की अक्षय और अनंत फलश्रुति है। मान्यता है कि इस दिन गंगा नदी में स्नान करने से पितरों को अक्षय तृप्ति प्राप्त होती है और सकल दैव सत्ता हमारे अनुकूल हो जाती है।
यद्यपि सत्कर्मों का संपादन करते समय साधक को मुहूर्त आदि का विचार नहीं करना चाहिए, तथापि ज्योतिष के अनुसार, किसी विशेष योग और खगोलीय अनुकूलताओं के काल में हमारे सत्कर्म अधिक प्रभावी हो जाते है। भारतीय जनमानस में गंगा के लिए असीम श्रद्धा और मान्यता है। गंगा हमारे लिए मात्र नदी नहीं, अपितु अमृतत्व का प्रवाह है। ऐसा माना जाता है कि सूर्य की किरणों से निकलने वाले जीवन तत्व को अवशोषित करने की सामर्थ्य केवल गाय और गंगा में ही है, इसलिए गंगा का स्मरण, पूजन और संस्पर्श करने से हमारे देवता और पितृ स्वत: तृप्त हो जाते हैं।
मां गंगा त्रय योग सिद्धि कारक है। वह ब्रह्मा के कमंडल से निकलकर ज्ञान योग, भगवान विष्णु के चरणों का स्पर्श करते हुए भक्ति योग और शिव की जटाओं से धरा धाम पर अवतरित होती है, इसलिए वैराग्य योग सिद्ध करती है। मृत्युलोक में गंगा का अवतरण ही पतितों के उद्धार के लिए हुआ है। मां गंगा को लेकर हम भारतीयों में श्रद्धा और विश्वास इतना प्रबल है कि मृत्यु के अनंतर भी जीव अपने तारण के लिए गंगा के आश्रय में रहना चाहता है। गंगाजल में मृतकों की अस्थि प्रवाहित कर परिजन उनके भोग, भाग्य और मुक्ति को लेकर निश्चिंत हो जाते हैं।
वर्तमान में गंगा की दशा अत्यंत व्यथित करने वाली है। आज क्षणिक भौतिक सुखों की संसिद्धि के लिए गंगा के प्रवाह को बाधित किया जा रहा है। हमें यह समझने की आवश्यकता है कि गंगा अत्यंत महनीय एवं अलौकिक नदी है। वह ईश्वरीय द्रव है, जिसके अवतरण के लिए राजा भगीरथ और उनके पूर्वजों ने निरंतर कठोर श्रम किया। धरा पर गंगा का अवतरण हमारे पूर्वजों के असीम श्रम साधन का ही परिणाम है, इसलिए हमें गंगा की शुचिता, सातत्य, अविरलता व प्रवाहमानता के प्रति सचेत और संवेदनशील रहने की आवश्यकता है। प्रदूषण से युक्त और पथ बाधित गंगा मनुष्यत्व के लिए अभिशाप है।
आइए! गंगा की अविरलता सुनिश्चित करने के लिए सामूहिक प्रयत्न करें, क्योंकि गंगा सबकी है। वह अपने उदर में अनेक जैव प्रजाति, वनस्पति और संस्कृतियों को युग-युगांतर से पोषित करती आई है। गंगा के नष्ट होने से मानवता की एक गौरवशाली सांस्कृतिक परंपरा का भी अंत हो जाएगा। इस बात की प्रसन्नता है कि प्रधानमंत्री के नेतृत्व में "नमामि गंगे" योजना के माध्यम से गंगा की स्वच्छता और अविरलता के लिए अनेक सार्थक प्रयत्न किए जा रहे हैं। लेकिन, सरकारी कार्यों और योजनाओं से हटकर भी गंगा की पवित्रता बनाए रखने के लिए सामूहिक सहभागिता एवं जन जागरण की आवश्यकता है। गंगा दशहरा पर गंगा की स्वच्छता के लिए अपने उत्तर दायित्व की अनुभूति करें।
प्रस्तुति : अनूप कुमार सिंह, हरिद्वार