Eid al-Fitr: सामाजिक सद्भाव का पर्व
मूल रूप से ईद मानवता और सामाजिक सद्भाव को बढ़ावा देने का त्योहार है। इसलिए हजरत मुहम्मद साहब ने इसे सभी धर्म के लोगों के साथ मिलकर मनाने और सबके लिए सुख-शांति व समृद्धि की प्रार्थना करने की शिक्षा दी है।
रामिश सिद्दीकी | रमजान के महीने के समाप्त होने के बाद आने वाले ‘शव्वाल’ के महीने के पहले दिन ईद-उल-फितर का त्योहार मनाया जाता है। ईद-उल-फितर का नाम ’फितरा’ शब्द से लिया गया है। फितरा ईद की नमाज पढ़ने से पहले जरूरतमंदों को दान में दी जाने वाली एक निर्धारित राशि है। ईद की नमाज़ अदा करने से पहले परिवार के मुखिया अपने परिवार के प्रत्येक सदस्य के लिए इस तय राशि को निकालते हैं, जिसे जरूरतमंदों को देना अनिवार्य होता है।
एक हदीस में उल्लेख है कि हज़रत मुहम्मद साहब ईद की नमाज पर जाने से पहले खजूर खाते थे। यही कारण है कि इस दिन कुछ मीठा खाकर लोग ईद की नमाज़ के लिए निकलते हैं। वे ईद की सामूहिक नमाज अदा कर अपने पड़ोसियों और संबंधियों से मिलते हैं। ईद एक प्रकार से सामाजिक पर्व है। पर्व की इसी प्रकृति के कारण मुस्लिम समुदाय के लोग ईद मिलन जैसे कार्यक्रमों का आयोजन करते हैं, जिसमें सभी समुदायों के लोग सम्मिलित होते हैं।
मूल रूप से ईद मानवता और सामाजिक सद्भाव को बढ़ावा देने का त्योहार है। इसलिए हजरत मुहम्मद साहब ने इसे सभी धर्म के लोगों के साथ मिलकर मनाने और सबके लिए सुख-शांति व समृद्धि की प्रार्थना करने की शिक्षा दी है। ईद का दिन रमजान में सीखी गयी बातों को अपने जीवन में ढालने का भी है।
रमजान आत्मविश्लेषण का महीना है, तो उसके बाद आया ईद-उल-फित्र मानो एक नये प्राण और नयी चेतना के साथ जीवन के आरंभ का दिन है। रमजान के रोजे आध्यात्मिक प्रशिक्षण हैं। ईद रमजान माह के अंत का प्रतीक अवश्य है, किंतु यह रमजान में प्राप्त किए गए गहन प्रशिक्षण को अपने व्यवहार में लाने का समय भी है।