बुद्ध पूर्णिमा पर विशेष: सरल और जागरूक बनो
प्रत्येक वर्ष वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि के दिन बुद्ध पूर्णिमा मनाई जाती है। इस दिन को बौद्ध धर्म के अनुयायिओं के साथ-साथ हिन्दू धर्म में भी महत्वपूर्ण माना जाता है। भगवान बुद्ध को विष्णु जी अवतार भी माना जाता है।
नई दिल्ली, ओशो | बुद्ध पूर्णिमा 2023: बुद्ध कभी यह नहीं कहते कि यह काम बुरा है और यह काम अच्छा है। बुद्ध कहते हैं, जो बोधपूर्वक किया जाए, वह अच्छा है, जो बोधहीनता से किया जाए, वह बुरा। बुद्ध यह नहीं कहते कि हर काम हर स्थिति में भला हो सकता है या कोई काम हर स्थिति में बुरा हो सकता है। कभी कोई बात पुण्य हो सकती है, कभी वही बात पाप हो सकती है। इसके निर्णय का बुद्ध ने आधार दिया-बोध अर्थात जागरूकता का।
जो मनुष्य जागरूकतापूर्वक जो भी काम कर पाए, वही पुण्य है और जो बात बेहोशी में ही की जा सके, वही पाप है। जैसे, तुम पूछो, क्रोध पाप है या पुण्य? तो बुद्ध कहते हैं, अगर तुम क्रोध जागरूकतापूर्वक कर सको, तो वह पुण्य है। अगर क्रोध मूर्छित होकर करोगे, तो पाप है। इसका मतलब यह हुआ कि हर क्रोध पाप नहीं होता और हर क्रोध पुण्य नहीं होता। कभी मां जब अपने बेटे पर क्रोध करती है, तो जरूरी नहीं है कि पाप हो। शायद पुण्य भी हो। शायद बिना क्रोध के बेटा भटक जाता। लेकिन इतना ही बुद्ध का कहना है कि जो भी काम किया जाए, वह जागरूकता या होश के साथ किया जाए।
गौतम बुद्ध सहजता के उपदेष्टा हैं। वह कहते हैं, कठिन से आकर्षित मत होना, क्योंकि उसमें अहंकार का लगाव है। जितनी कठिन बात हो, लोग उसे करने को उतने ही उत्सुक होते हैं। क्योंकि कठिन बात में अहंकार का रस आता है, मजा आता है कि करके दिखा दूं। अब जैसे पूना की पहाड़ी पर कोई चढ़ जाए, तो इसमें कुछ मजा नहीं है, एवरेस्ट पर चढ़ जाऊं तो कुछ बात है। पूना की पहाड़ी पर चढ़कर कौन तुम्हारी फिकर करेगा, तुम वहां लगाए रहो झंडा, खड़े रहो चढ़कर! न अखबार खबर छापेंगे, ना कोई वहां तुम्हारा चित्र लेने आएगा।
बुद्ध ने कहा कि अहंकार अक्सर ही कठिन और दुर्गम में उत्सुक होता है। इसलिए कभी-कभी ऐसा हो जाता है कि जो सहज और सुगम है, जो नजदीक है, वह चूक जाता है और दूर के तारों पर हम चलते जाते हैं। आदमी चांद पर पहुंच गया, लेकिन अपने भीतर नहीं पहुंचा। चांद पर पहुंचना तकनीक और विज्ञान की अद्भुत विजय है।
जो आदमी चांद पर पहुंच गया, वह अभी छोटी-छोटी चीजें करने में सफल नहीं हो पाया है। सर्दी-जुकाम का इलाज नहीं खोज पाए, पर चांद पर पहुंच गए! सर्दी-जुकाम से छुटकारे का भी उपाय नहीं है, क्योंकि चिकित्सक कैंसर की दवा खोज रहे हैं। बड़ी चीज अहंकार की चुनौती बनती है। आदमी अपने भीतर नहीं पहुंचा, जो निकटतम है और चांद पर पहुंच गया। मंगल पर भी पहुंचेगा, किसी दिन और तारों पर भी पहुंचेगा। बस, अपने को छोड़कर सब जगह पहुंचेगा। पर बुद्ध कहते है, सहज पर ध्यान दो।
जो सरल है, सुगम है, उसे जियो। जो सुगम है, वही साधना है। बुद्ध ने कहा छोटे बच्चे की भांति सरल जीवन जियो। साधु होने का अर्थ बहुत कठिन और जटिल हो जाना नहीं कि सिर के बल खड़े हैं या लंबे उपवास कर रहे हैं या धूप में खड़े हैं। बुद्ध ने कहा कि यह सब तो अहंकार की ही दौड़ है। जीवन तो सुगम है, सरल है। सत्य सुगम और सरल ही होगा। तुम नैसर्गिक बनो और अहंकार के आकर्षणों में मत उलझो।