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महाबोधि की छांव में पितरों की पूजा

शनै:शनै: पितृपक्ष का मेला अपने परवान पर चढ़ रहा है। यात्रियों की भीड़ वेदियों से लेकर बुद्ध भूमि तक दिखने लगी है। धर्ममय माहौल में गया-बोधगया एक हो गया है। पितृ पूजा के पंचकोसी क्षेत्र के अंतर्गत भीड़ के अतिरिक्त बोधगया के पांच महत्वपूर्ण पिंडवेदियों पर तर्पण और पिंडदान का कर्मकांड चल रहा है। इन सबों में सबसे महत्वपूर्ण बात है कि

By Edited By: Published: Mon, 15 Sep 2014 12:25 PM (IST)Updated: Mon, 15 Sep 2014 12:41 PM (IST)
महाबोधि की छांव में पितरों की पूजा

गया। शनै:शनै: पितृपक्ष का मेला अपने परवान पर चढ़ रहा है। यात्रियों की भीड़ वेदियों से लेकर बुद्ध भूमि तक दिखने लगी है। धर्ममय माहौल में गया-बोधगया एक हो गया है। पितृ पूजा के पंचकोसी क्षेत्र के अंतर्गत भीड़ के अतिरिक्त बोधगया के पांच महत्वपूर्ण पिंडवेदियों पर तर्पण और पिंडदान का कर्मकांड चल रहा है।

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इन सबों में सबसे महत्वपूर्ण बात है कि भगवान विष्णु के नवें अवतार तथागत की ज्ञान स्थली महाबोधि मंदिर के पूरे परिसर में पितरों की पूजा पिंडदान के माध्यम से की जा रही है। बोधगया की भूमि पर इस पखवारे के दौरान हिन्दू और बौद्ध धर्मालम्बी एक ही छत के नीचे तथागत की पूजा कर रहे हैं। एक अच्छे माहौल में हो रहे कर्मकांड इस बात का गवाह है कि धर्म अलग-अलग नहीं है। दोनों एक ही भगवान के साधक हैं। भले ही उनके साधना के कार्य प्रणाली अलग-अलग हो।

महाबोधि मंदिर परिसर के उत्तर और दक्षिण भूखंड पर सैकड़ों श्रद्धालु प्रतिदिन पिंडदान का कर्मकांड करते हैं। तदोपरांत मंदिर के गर्भगृह में जाकर तथागत को नमन भी करते हैं। वहां भगवान विष्णु और बुद्ध दोनों की जयकारे होते हैं। कहीं कोई भेदभाव नहीं है।

गौरतलब है कि प्रतिदिन सैकड़ों की संख्या में पिंडदानियों की सेवा में महाबोधि मंदिर प्रबंध कार्यकारिणी समिति लगी है। मंदिर परिसर में सफाई, पेयजल एवं अन्य सुविधाएं समिति द्वारा उपलब्ध कराई जा रही है। समय बदला है। 80 के दशक में इस बुद्ध भूमि पर हिन्दू और बौद्ध के बीच खाई बनाने का काम बाहर से आए नव बौद्धों ने किया। भले ही ये अपने मनसूबे में सफल नहीं हुए। लेकिन उनकी आवाज बोधगया से चलकर दिल्ली के तख्त गई। लेकिन शांति का संदेश देने वाला भूमि आज पूरी तरह एका है। कहीं से कोई अलगाव की बात नहीं दिखती। सभी पिंडदानी पिंडदान उपरांत बोधगया के विभिन्न महाबिहारों में घूम-घूमकर तथागत को नमन कर रहे हैं। वहीं मंदिर के बाहर आने के उपरांत महाबोधि सोसाइटी पंचशील ध्वज से सज रहा है। गांव गिरांव से आए कुछ पिंडदानी पांच रंगों के बने इस पताके की जानकारी लेना चाहते हैं।

उन्हें बताया जाता है कि भगवान बुद्ध ने पंचशील का संदेश दिया है वहीं संदेश पांच रंग के झंडे में समाहित है। महाबोधि सोसाइटी की यह तैयारी अन्ना गरिक धर्मपाल के वर्षगांठ के रूप में मनाने की चल रही है।

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